Saturday, April 20th, 2024 Login Here
- आशीष सिंहल ,उदयपुर-
आत्मविश्वास का संबंध आत्म सम्मान से होता है या यूं कहें आत्म सम्मान आत्मविश्वास का पूर्वगामी है। जिसके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं है या जो स्वयं अपनी नजरों में गिरा हुआ है उसका आत्मविश्वास भी कम होता है। जबकि जो अपने जीवन और विचारों का स्वयं आदर करता है उसका आत्मविश्वास उसकी बातों और उसकी भाव- भंगिमाओं में झलकता है। जिस व्यक्ति के जीवन में उच्च आदर्श और सिध्दांत होते हैं, जीवन के लक्ष्य होते हैं और वह उन लक्ष्यों के लिए प्रयास करता है उसका आत्मसम्मान सुरक्षित रहता हैं और ऐसा व्यक्ति अनेक समस्याओं के आने के बाद भी अपने अनुभवों से निरंतर सीखते हुए उच्च आत्मविश्वास को प्राप्त करता है ।
जरूरी नहीं कि आत्मविश्वास जन्मजात हो। बहुत थोड़े से लोग होते हैं जो स्वभाविक रूप से आत्मविश्वासी होते है ज्यादातर लोग अपने अनुभवों और प्रयासों से आत्मविश्वास को प्राप्त करते हैं। दुनिया की अनेक महान वक्ता और नेता अपने प्रारंभिक जीवन में बहुत ही शर्मीले और इंटोवर्ट प्रवृत्ति के थे लेकिन उन्होंने संघर्ष के द्वारा आत्मविश्वास के उच्चतम स्तरों को ना केवल प्राप्त किया बल्कि पूरी दुनिया को एक नई दिशा भी दिखाइए। आत्मविश्वास भी दो तरह का होता है एक वह जो व्यक्ति के अंतर्मन से प्रकट होता है और जिसका संबंध इस बात से है कि वह व्यक्ति जो कह रहा है या कर रहा है वह पूरी तरह सत्य व उचित है और उसमें किसी भी प्रकार से कोई मिलावट नहीं है यह वास्तविक आत्मविश्वास है। जैसे कि जब जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया तब भी वे अपनी शिक्षाओं से पीछे नहीं हटे और ना ही अपने जीवन को बचाने के लिए विरोधियों से समझौता किया अपितु उनके लिए भी ईश्वर से क्षमा की प्रार्थना की। यह उनका वास्तविक आत्मविश्वास था, इसके विपरीत एक सेल्समैन जो कि अपने प्रोडक्ट की कमियों को जानते हुए भी आत्मविश्वास के साथ ग्राहक को ऊंची दर पर वस्तु को बेच देता है उसका आत्मविश्वास नकली या झूँठा है जो उसको भौतिक लाभार्जन तो करा सकता है परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उसे कोई लाभ नहीं होगा।
जब हम अपने परिवार या मित्रों के साथ बातचीत करते हैं तो हमारा आत्मविश्वास अधिक होता है परंतु जब हमें अपरिचित लोगों से व्यवहार करना होता है तो आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है। इसका कारण है जिनको हम अपना मानते हैं उनके प्रति मन में एक आश्वासन का भाव होता है और यह भाव हमें आत्मविश्वास से भर देता है। जब हम सभी को अपना स्वीकार करने लगते है और सभी में एक ही ईश्वर को देखते हैं तो हमारे लिए कोई भी अजनबी नहीं रहता और हमारा आत्मविश्वास दृढ़ रहता है।
जब हम छोटे बच्चों से बातचीत करते हैं तो हमें आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्या का अनुभव नहीं होता है लेकिन यदि किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे हमने अपने से बहुत अलग और बड़ा आदमी मान लिया है जैसे बड़े उद्योगपति, अधिकारी या राजनेता से व्यवहार करने का मौका मिलता है तो एक प्रकार की घबराहट का अनुभव होता है। इसके विपरीत उनकी अपने आप से तुलना करने के बजाय वे जैसे है उनको वैसे ही स्वीकार कर लेने से उनके सामने भी किसी भी प्रकार के आत्मविश्वास की कमी महसूस नहीं होती है। यह अनुभव करना चाहिए कि सभी व्यक्ति वास्तव में तो मनुष्य ही हैं और हमारा कार्य उस व्यक्ति के जीवन में भी कल्याण और प्रसन्नता लेकर आएगा। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया जिसका अर्थ है पूरा विश्व एक परिवार के समान है। जो व्यक्ति अपने अंतरतम की गहराई से ऐसा ही अनुभव करता है वह जीवन में किसी भी परिस्थिति में आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित नहीं होता है।