Saturday, April 20th, 2024 Login Here
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भोपाल। झाबुआ विधानसभा का चुनाव कांग्रेस द्वारा जीतने के बाद निगम, मंडल और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में राजनीतिक नियुक्तियों की सुगबुगाहट के बीच सरकार ने इनकी पहले आर्थिक हालत की पड़ताल करने का फैसला किया है। वित्त विभाग एक-एक संस्था के लेखा-जोखा की बारीकी से जांच करेंगे।
साथ ही संस्था के जिम्मेदार अधिकारियों से यह भी पूछा जाएगा कि आखिर इनकी गतिविधियों को जारी क्यों रखा जाए। जनहित में इसकी क्या उपयोगिता है। माना जा रहा है कि बढ़ते खर्च के कारण अब सरकार का पूरा फोकस मितव्ययिता के उपायों पर है, इसलिए राजनीतिक नियुक्तियों से पहले संस्थाओं की आर्थिक नब्ज टटोली जा रही है।
सूत्रों के मुताबिक वित्त विभाग की इस पूरी कवायद का घोषित मकसद भले ही निगम, मंडलों के लाभ-हानि का पता लगाना हो पर इसके पीछे दूसरा गणित राजनीतिक नियुक्तियों से पहले वित्तीय प्रबंधन को देखना भी है।
जाहिर है कि राजनीतिक नियुक्तियां होंगी तो संस्थाओं का खर्च भी बढ़ेगा। वैसे भी मुख्यमंत्री कमलनाथ सत्ता संभालने के साथ ही कह चुके हैं कि शोभा की सुपारी बनी हुई संस्थाओं को बंद किया जाए ताकि वित्तीय संसाधनों को दूसरी जगह बेहतर इस्तेमाल हो सके।
उधर, वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि भारत के नियंत्रक महालेखाकार ने वर्ष 2017 के प्रतिवेदन में सिफारिश की थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की समीक्षा की जानी चाहिए। कुछ निगम, मंडलों ने ऑडिट की कार्रवाई पूरी नहीं की है तो कुछ की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जाना बाकी है। बताया जा रहा है कि अधिकांश निगम, मंडलों की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है।
कुछ की योजनाएं सिर्फ कागजों में सिमटकर रह गई हैं। बैठक में 31 मार्च 2020 की स्थिति में निगम, मंडल के आय-व्यय की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। समीक्षा महत्वपूर्ण है इसलिए उपसचिव स्तर से नीचे के अधिकारी को नहीं भेजने के निर्देश विभागों को दिए गए हैं।
इन बिन्दुओं पर होगी समीक्षा
    उपक्रम बनाने का उद्देश्य क्या था, जनहित के मद्देनजर गतिविधियों को जारी रखना जरूरी है या नहीं और खर्च कितना आ रहा है।
    वर्ष 2016-17 से 2018-19 में लाभ या हानि क्या रहा।
    बैंक खाते में कितनी राशि है और खर्च नहीं होने वाली राशि कितनी है।
    यदि संस्था घाटे में है तो उसे फायदे में लाने की योजना क्या है।
    महालेखाकार की तीन साल की ऑडिट रिपोर्ट और आपत्ति पर की कार्रवाईयों का ब्योरा।
    शासन से तीन साल में कितना अनुदान, अंशपूंजी मिली। कुल कर्ज कितना है।
    बीते तीन साल में सरकार को कितना लाभांश दिया।
    कर्मचारियों को सातवां वेतनमान और एरियर्स दिया या नहीं।
    कर्मचरी को भरे और खाली पद। संविदा पदों की स्थिति।
इनकी होगी समीक्षा
सड़क विकास निगम, ऊर्जा विकास निगम, जल निगम, राज्य इलेक्टानिक्स विकास निगम, वित्त निगम, लघु उद्योग निगम, आदिवासी वित्त विकास निगम, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विकास निगम, कृषि उद्योग विकास निगम, हस्तशिल्प विकास निगम, नागरिक आपूर्ति निगम, राज्य वन विकास निगम, खनन विकास निगम, पुलिस आवास निगम,पर्यटन विकास निगम, मेट्रो रेल कंपनी, स्मार्ट सिटी विकास निगम, सभी विद्युत कपंनियां, पॉवर प्रोजेक्ट कंपनियां, औद्योगिक विकास निगम सहित अन्य।

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