Saturday, April 20th, 2024 Login Here
केवल 4 घंटे बैठेंगे सरकारी अस्पताल में, प्रत्येक डॉक्टर एक-एक घंटा भी देता तो 24 घंटे हो सकती थी सेवा
मंदसौर निप्र। वैश्विक महामारी के संकट में शहर के तमाम निजी डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया लेकिन छोटे-छोटे मामलों को लेकर हमेशा आलोचना और जनता का गुस्सा झेलने वाले सरकारी डॉक्टर निरंतर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। दैनिक जनसारंगी ने इस गंभीर मामले को उठाया और ध्यान आकर्षित किया तो सोमवार की सुबह सेवा का दिखावा करने के लिए यह निजी चिकित्सक आगे आये और जिला अस्पताल में 4 घंटे बैठने के लिए सहमति दी,लेकिन सवाल यह कि शहर में इतने निजी चिकित्सक है यदि एक- एक चिकित्सक एक 1 घंटे भी बैठे तो 24 घंटे तक अस्पताल में सेवा दे सकता है, ऐसे में केवल 4 घंटे बैठना तो केवल एक दिखावा ही हैं।
कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए देश के साथ ही मंदसौर शहर भी पूरी तरह से लॉक डाउन है।सरकारी अस्पताल का पूरा अमला कोरोना से बचने
को लेकर जागरूकता और घर- घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य परीक्षण जैसे महत्वपूर्ण काम में जुटा हुआ है।जिला अस्पताल की ओपीडी में भी निरन्तर सेवाएं दे रहा है। लेकिन आम दिनों में शहर में अपनी दुकानें सजाने वाले तमाम निजी डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ कर गायब हो गए ।बताया जाता है कि डॉक्टरों के संगठन ने लॉक डाउन से 1 दिन पहले ही अपने सभी डॉक्टरों को घर बैठने के लिए कह दिया था। ऐसे में कई डॉक्टर तो अपने आप को शहर से बाहर बता कर,तो कई अपना मोबाइल बंद कर अपने घर में ही दुबक कर बैठ गए। जबकि कई छोटे-छोटे लोग इस समय शहर वासियों की सेवा के लिए पूरे जुनून के साथ काम कर रहे हैं। कोई गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन करा रहा है तो कोई उन्हें कच्ची भोजन सामग्री उपलब्ध करा रहा है, कोई सब्जी की उपलब्धता करा रहा है, तो कोई दवाइयों और अन्य आवश्यक वस्तुओं का इंतजाम कर रहा है।
वैश्विक महामारी में सबसे ज्यादा सेवा की आवश्यकता डॉक्टरों की थी लेकिन शहर के तमाम निजी डाक्टर अपनी इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को छोड़कर गायब हो गए। हालांकि अपवाद स्वरूप कुछ चिकित्सक और अस्पताल निरंतर जनता की सेवा में जुटे हुए हैं और शासन को भी मदद के हाथ बढ़ाएं हैं
इस गंभीर मसले को लेकर दैनिक जनसारंगी ने अपने सोमवार के अंक में प्रमुखता के साथ खबर को प्रकाशित किया तो शहर के इन तमाम निजी डॉक्टरों में खलबली मच गई । जबकि दो दिन पहले प्रशासन ने इन डॉक्टरों के संगठन प्रमुख को बुलाकर सरकारी अस्पताल में निशुल्क सेवाएं मांगी थी लेकिन इनकी तरफ से कोई सकारात्मक जवाब ही नहीं पहुंचा था। सोमवार को जब खबर प्रकाशित हुई और पूरे शहर में इन डॉक्टरो की आलोचना शुरू हुई तो ताबड़तोड़ इन डॉक्टरों ने 4 घंटे अस्पताल में बैठने की सहमति दे दी प्रतिदिन सुबह 11 से 1 बजे तक और दोपहर 2 से 4 बजे तक यह डॉक्टर जिला अस्पताल के कक्ष क्रमांक चार में बैठेंगे।
हालांकि बात यहीं खत्म नहीं होती। शहर में इतने निजी चिकित्सक है, लगभग पूरे शहर के हर मोहल्ले हर कॉलोनी में एक निजी चिकित्सक बैठता है ऐसे में यदि 1 डॉक्टर 1 घंटे का समय सेवा के लिए देता तो शायद ऐसे विकट समय मे 24 घंटे तक जिला अस्पताल में जनता को निजी चिकित्सक अपनी सेवाएं दे सकते थे। ऐसे में लगता है आलोचना से बचने के लिए इन डॉक्टरोंं ने औपचारिकता को पूरा अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है।
पहले से ही सेवा में जुटे चिकित्सकों को अस्पताल भेजकर संगठन ने कर दिया दिखावा
सोमवार को जिला अस्पताल में मरीजों की भीड़ थी जिन्हें देखने के लिए सरकारी चिकित्सक कम संसाधनों में भी लगातार सेवा में जुटे हुए थे सरकारी अस्पताल के चिकित्सक डॉक्टर के.सी. दवे, डॉ वैभव जैन, डॉक्टर अभिषेक मादलिया, डॉक्टर वर्षा चौहान, डॉक्टर पुष्पराज मंडलोई,डॉक्टर दिलावर कौशल,डॉ एस कुमार वाघेला, और डॉक्टर पूनम कुमार नामदेव जनता की सेवा में जुटे हुए थे। निजी डॉक्टरों की तरफ से आई एम ए के अध्यक्ष डॉ प्रदीप चेलावत,वरिष्ठ चिकित्सक डा व्ही, एस. मिश्र पहुँचे बाद में सुबह डॉ प्रह्लाद पाटीदार और दोपहर में डॉ योगेंद्र कोठारी मौजूद थे। जबकि डॉक्टर योगेंद्र कोठारी और डॉक्टर प्रहलाद पाटीदार पहले से ही सेवा कार्यों में सिद्धिविनायक हॉस्पिटल के माध्यम से जुटे हुए थे। उन्होंने पहले ही अपने नंबर आम जनता को दे दिए थे कि किसी भी दिक्कत में उन्हें फोन किया जाए वह फोन पर ही उपचार कर देंगे। अति आवश्यक होने पर ही अस्पताल आए ऐसे में लगता है निजी डॉक्टरों के संगठन ने शहरवासियों की आलोचनाओं से बचने के लिए केवल औपचारिकता मात्र निभाई है।
डायलिसिस के लिए उमड़ रही थी भीड़
मंदसौर में डायलिसिस की सुविधा जिला अस्पताल के साथ दो-तीन प्रायवेट नर्सिंग होम में ही है। लॉक डाउन के चलते मंदसौर का सड़क और रेल संपर्क अन्य जगहों से कट चुका है। कोरोना से जारी इस जंग में उन लोगों की मुसीबत हो गई है , जो किडनी के रोगों से पीड़ित हैं। ऐसे मरीजों को नियमित अंतराल में डायलिसिस की आवश्यकता होती है। सामान्य दिनों में तो ऐसे लोग इंदौर , उदयपुर, अहमदाबाद आदि जगहों पर जाकर डायलिसिस करवा लेते हैं, लेकिन लॉक डाउन की दशा में अब वे जिला अस्पताल पर निर्भर होकर रह गए हैं। जिला अस्पताल में पहले से ही पूरी टीम कोरोना के इलाज में लगी हैं। उनके साधन भी सीमित है ऐसे में वहां डायलिसिस के लिए 100 से ज्यादा लोगों की भीड़ जमा हो रही है। ऊपर से कोरोना संदिग्ध मरीजों की जांच के लिए रेस्पिरिटी ओपीडी भी वहीं है। ऐसी स्थिति आगे चलकर स्थिति विस्फोटक हो सकती है। याद रहे कि किडनी और मधुमेह के रोगी कोरोना के लिए ज्यादा संवेदनशील होते हैं। ऐसे में ये निजी चिकित्सको में सेवा की भावना होती तो वे इन मरीजों की डायलिसिस कर देते।