Thursday, March 28th, 2024 Login Here
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प्रश्न गंभीर है कि राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में ‘तबलीगी’ जमात के इज्तमा (समागम) को मिली इजाजत  महाराष्ट्र के ‘वसई इज्तमा’ की तर्ज पर भारत में ‘कोरोना’ की दस्तक देने के बावजूद क्यों नहीं खारिज की गयी? दिल्ली में अभी तक जितने भी कुल 384 मामले कोरोना वायरस के हैं उनमें से 259 तबलीगी जमात से जाकर जुड़ते हैं और दिल्ली में जो कुल पांच लोग इस बीमारी से मरे हैं उनमें से एक का तार तबलीग से जुड़ता है। इस पांचवें व्यक्ति की मौत कल ही हुई है। यह आंकड़ा दिल्ली की सरकार का है जिसे खुद मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने खोला है। हालांकि पूरे भारत में कोरोना से मरने वाले लोगों में तबलीग से जुड़े लोगों की संख्या 25 प्रतिशत के आसपास मानी जा रही है। निजामुद्दीन का ‘तबलीगी इज्तमा’ 13 मार्च से शुरू हुआ था।
मैं याद दिला रहा हूं कि 10 मार्च की होली थी। इस बार होली का त्यौहार लोगों ने कोरोना की वजह से दूर-दूर रह कर डर-डर कर मनाया था कि कहीं कोरोना का असर न हो जाये। होली वाले दिन ‘वीर’ ज्योतिरादित्य सिन्धिया कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये।
जब मध्य प्रदेश में राजनीतिक उठा-पटक चल रही थी तो कोरोना इससे बेखौफ होकर अपना काम कर रहा था। देश के छितरे इलाकों से इक्का-दुक्का संक्रमण ग्रस्त होने की खबरें बढ़ रही थीं, हम चिन्तित हो रहे थे। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में 2 मार्च को दो कोराना मामलों की खबर मिलने पर राज्य की शिवसेना नीत उद्धव  ठाकरे सरकार के कान खड़े हो गये और इसने मुम्बई से करीब ‘वसई’ में होने वाले तबलीगी जमात के 13 व 14 मार्च को इज्तमा को करने की मनाही कर दी। यह फैसला 6 मार्च को होली से पहले ही ले लिया गया।  इस पर तबलीग के आयोजकों ने पहले ‘फुंकार’ मारी और कहा कि वे आयोजन को रद्द नहीं करेंगे तो महाराष्ट्र के गृहमन्त्री अनिल देशमुख ने चेतावनी दी कि ‘फिर आप कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहिये। सरकार ने इजाजत को खारिज कर दिया है।’ 13 व 14 मार्च के वसई  इज्तमा में पचास हजार लोगों के आने के उम्मीद जताई गई थी। तबलीगी जमात ऐसे ही इज्तमा इसके बाद इसी महीने में राज्य के अन्य शहरों रायगढ़, रत्नागिरी व पुणे में भी करना चाहती थी।
इधर दिल्ली में ही ‘तबलीगी इज्तमा’ चलता रहा और भारत के विभिन्न राज्यों से लोग इसमें शिरकत करने आते रहे और वापस भी जाते रहे और उन 1300 के लगभग विदेशी  दानिशमन्दों से मिलते-जुलते रहे जो इसमें शिरकत करने पहले से ही निजामुद्दीन के तबलीगी मरकज में आये हुए थे। ये इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, सऊदी अरब, फिलीपींस आदि देशों से आये थे और अपने साथ कोरोना की ‘सौगात’ भी लाये थे। ये सब पर्यटक वीजा पर हिन्दोस्तान तशरीफ लाये थे इसलिए इज्तमा में भी शिरकत करते रहे और भारत के अलग-अलग शहरों की सैर करने भी जाते रहे। 22 मार्च को ‘लाॅकडाऊन’ की घोषणा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने की तो इस इज्तमा के आयोजकों को इसका पालन करना भारी लगने लगा और वे मरकज में ही ठहरे रहे। जब कोराना फैलने के पीछे मरकज में शामिल लोगों की खबरें आनी शुरू हुईं तो इज्तमा में हिस्सा लेने वाले भारतीय शहरियों की खोज खबर शुरू हुई और पाया गया कि उनमें कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत बड़ी संख्या में होने का अन्देशा है। यह अन्देशा ही होता तो ठीक था मगर पिछले चार दिनों में जिस तरह संक्रमणग्रस्त लोगों की संख्या एक हजार से बढ़ कर दो हजार तक पहुंची उनमें से 558 लोग इज्तमा में शिरकत करने वाले ही निकले। अब मरकज को इनसे खाली कराना भी भारी होने लगा तो स्वयं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को कमान संभालनी पड़ी लेकिन क्या सितम हुआ कि इन लोगों ने अस्पतालों में पहुंच कर खिदमतगार डाक्टरों व दूसरे साथ के कर्मचारियों के मुंह पर थूकने की नीच हरकत की और अस्पताल में गन्दगी तक फैलाने की हरकतें की। दरअसल यह बताता है कि हम मजहब के तास्सुब में किस हद तक गिर सकते हैं, लेकिन भारत वह देश है जिसमें धार्मिक कट्टरता को यहां के लोग ही अस्वीकार कर देते हैं। स्वतन्त्र भारत में न आज कहीं मुस्लिम लीग है और न हिन्दू महासभा। ‘सर्वधर्म समभाव’ हर हिन्दोस्तानी के रक्त में ‘समागम’ की तरह दौड़ता है।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह पहले अपील की थी कि लोग सफाई कर्मचारियों से लेकर चिकित्सा कर्मियों द्वारा कोरोना से लड़ने में किये जा रहे पुरुषार्थ का सम्मान करें और उनके लिए प्रशंसा में ताली या थाली बजाएं, उसी तरह उन्होंने मजहबी कट्टरपंथियों की परवाह न करते हुए पुनः अपील की है कि लाॅकडाऊन की सफलता के लिए प्रत्येक व्यक्ति को 5 अप्रैल को रात्रि नौ बजे नौ मिनट तक अपने घरों के प्रवेश द्वारों पर रोशनी को जगमग करना चाहिए और घरों की बिजली बन्द करके यह काम करना चाहिए जिससे हम अंधकार से प्रकाश की ओर चलें। लाॅकडाऊन की सफलता का यह माध्यमिक पड़ाव होगा जो प्रत्येक व्यक्ति के आत्मविश्वास को पक्का करते हुए उसके संकल्प को संपुष्ट करने का प्रतीक होगा। यह बेवजह ही श्री नरेन्द्र मोदी के बारे में प्रचलित नहीं हुआ है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। 130 करोड़ देशवासी उनकी एक आवाज पर कोरोना के खिलाफ अपना संकल्प प्रस्तुत करने को उद्यत हैं।
Chania