Thursday, March 28th, 2024 Login Here
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भारत का इतिहास और परंपराएं साक्षी हैं कि इसके लोग जब अपने सामूहिक प्रयासों पर एकमत होते हैं तो बड़ी से बड़ी कठिनाई पर भी पार पा लेते हैं मगर कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ा जाने वाला युद्ध संभवतः मानव इतिहास का अजीब युद्ध माना जायेगा जिसमें शत्रु सर्वत्र अदृश्य है मगर पूरी तरह सजग है, इसमें ‘रक्तबीज’ सदृश विनाशक शक्ति है। चिन्ता का मुख्य कारण यही है जिसकी वजह से ‘लाॅकडाऊन’ घोषित करके इसे परास्त करने के ‘एकान्त वास’ के रास्ते को अपनाया गया है। एकान्त वास ही एकमात्र ऐसा अस्त्र है जिससे कोरोना को पराजय दी जा सकती है। अतः जीवन जीने के इस ढंग को अपनाने में किसी भी भारतीय को कम से कम तकलीफों का सामना करना पड़े, इसका ध्यान रखना उन्हीं की चुनी हुई सरकारों का काम है जिन्होंने लाॅकडाऊन को लागू किया है। यह युद्ध इसलिए कठिन है क्योंकि यह प्रकृति जन्य मानव प्रवृत्ति के विरुद्ध है। इसके बावजूद प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर 130 करोड़ लोगों ने एकजुटता के साथ संकल्प लिया कि वे कोरोना को हराने के लिए अपनी जीवन शैली को ही बदल डालेंगे।

 संकटकालीन समय में यह नेतृत्व की बहुत बड़ी उपलब्धि इसलिए है क्योंकि भारत एक वाचाल ‘शोर -शराबे’ का लोकतन्त्र है। इसका आंकलन हमें कम करके नहीं करना चाहिए। यदि तबलीगी जमात के कारकुनों की कारगुजारियों को एक तरफ कर दिया जाये तो हर हिन्दू-मुसलमान ने प्रधानमन्त्री की अपील का स्वागत किया है और हर स्तर पर सरकारी प्रबन्धन के साथ सद-व्यवहार व सहयोग का परिचय दिया है।

 जिस भारत के बारे में पिछली सदी तक कभी यह प्रचलित था कि यह ‘सांप-सपेरों, अन्धविश्वासों और झाड़-फूंक करने वाले तान्त्रिकों-मान्त्रिकों’ का देश है वह आज अमेरिका जैसे अति विकसित देश को कोरोना से लड़ने वाली दवाई को निर्यात कर रहा है। तबलीगी जमातियों के बारे में कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री हुसैन दलवी ने प्रधानमन्त्री को एक खत लिख कर दरख्वास्त की है कि इस जमात के लोगों को अलग-थलग न किया जाये क्योंकि वे स्वयं कोरोना के शिकार बने हुए हैं। उन्हें पीडि़तों  की तरह दिखाया या लिखा जाये न कि प्रताडि़त करने  वालों की तरह। उनका कहना सही था, यदि जमाती अन्य कोरोना संदिग्ध नागरिकों की तरह चिकित्सा व अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों के साथ सम्मानजनक सद-व्यवहार करते। जुल्म ढहाने वाले की भूमिका उन्होंने खुद ही चुनी है और अपनी मजहबी पहचान को आगे करके यह काम करने की हिमाकत की है। बेहतर होता कि दलवी साहब जमातियों से अपील करते कि वे खुदा के बन्दे बन कर अपनी जान बचाने वाले डाक्टरों को फरिश्ता समझें। दलवी साहब बहुत ज्ञानवान सांसद माने जाते रहे हैं और ‘हिन्दू-मुस्लिम’ एकता के लिए उन्होंने हर कठिन समय में अपनी सेवाएं देने से कभी गुरेज भी नहीं किया। अकेले दलवी साहब को ही नहीं बल्कि हर राजनीतिक दल के नेता को यह दिल से स्वीकार करना चाहिए कि अमेरिका को कोरोना रक्षक दवाएं देना  भारतवासियों के लिए गौरव से कम नहीं है परन्तु इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत की साठ प्रतिशत आबादी आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है और इसमें दिहाड़ी मजदूर, छोटे-मोटे कामगार व दस्तकार भी शामिल हैं।

लाॅकडाऊन ने इनकी आर्थिक शक्ति को निचोड़ कर रख दिया है। लगातार रोजाना कमा कर खाने वाले ये लोग घरों में रह कर अपने परिवारों के पेट की क्षुधा को शान्त करने में समर्थ नहीं हो सकते।  सरकार की तरफ से जो मदद पैकेज घोषित किया गया है वह खंडवार स्थिति के अनुरूप लागू होगा। प. बंगाल के 24 परगना जिले के एक कस्बे में लाभार्थी गरीब महिलाओं, पुरुषों व बुजुर्गों की अपने जनधन खाते से पांच सौ रुपये स्टेट बैंक की शाखा से निकालने की छपी तस्वीरों को देख कर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जमीन पर गरीब के घर में रोटी के बन्दोबस्त की हालत क्या है? बेशक स्वयंसेवी सामाजिक संस्थाओं समेत कई राज्यों में सरकारें बीच में फंसे हुए कामगारों व मजदूरों को भोजन खिला रही हैं मगर याद रखना चाहिए कि भारतीय संविधान इन सब लोगों को एक वोट का वह एक समान अधिकार देता है जिसकी ताकत पर सरकारें बनती और बिगड़ती हैं।

 कितना बेहतर होता यदि जनधन खातों के साथ आधारकार्ड में दर्ज आर्थिक स्थिति को जोड़ कर सभी जरूरतमन्द कमजोर लोगों के खाते में एकमुश्त रूप से पांच हजार रुपए की रकम जमा कर दी जाती। अब कोरोना के कहर को देखते हुए लाॅकडाऊन को आगे बढ़ाने की मंशा सभी राज्य सरकारें व्यक्त कर रही हैं। यह बहुत जरूरी भी है क्योंकि कोरोना ऊपर से नीचे उतरने की मुद्रा में आ रहा है और  झुग्गी-झोपड़ियों व गरीब बस्तियों में दस्तक दे रहा है। इसे व्यावहारिकता से परास्त करना होगा और व्यावहारिकता यह है कि गरीब आदमी के घर में ‘आटे-दाल’ की कमी न होने पाये और उसका मनोबल ऊंचा बना रहे।

राज्य सरकारों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे गरीब के जनधन खाते में जरूरी धन पहुंचायें। भारत के लोग प्रधानमन्त्री मोदी के साथ चट्टान की तरह एक साथ खड़े हुए हैं और उनका ‘संकल्प’ है कि वे कोरोना को हरा कर ही चैन लेंगे। इस संकट के समय मीडिया खास कर अखबार आम जनता के लिए रोशनी का काम कर रहे हैं क्योंकि वे उन्हें कदम-कदम पर आगाह कर रहे हैं कि कोरोना का असर किस तरीके से हो रहा है और साथ ही सरकार को भी हकीकत का आइना दिखाते चल रहे हैं। इस संस्थान के भरोसे भी लाखों परिवार अपना जीवन बसर करते हैं और राष्ट्र सेवा में अपने आराम की परवाह तक नहीं करते। पं. जवाहर लाल नेहरू के अमर वाक्य ‘आराम-हराम है’ पर अमल करने वाला हर परिस्थितियों में अकेला मीडिया ही होता है जो आज भी अपनी जान जोखिम में डाल कर आम जनता को सजग रख रहा है और उसका मनोबल बढ़ा रहा है। भोर में उठकर घर-घर अखबार पहुंचाने वाले हॉकर भी कोरोना से जंग में एक यौद्धा की भूमिका निभा रहे हैं। मीडिया किसी भी मुल्क का ऐसा ‘थर्मामीटर’ होता है जिससे लोगों के सही  तापमान का पता चलता है। यह बीमारी का सही इलाज करने का पहला अमली नुस्खा पेश करता है।
Chania