Saturday, April 20th, 2024 Login Here
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आधुनिक स्वतन्त्र भारत का यह पुख्ता इतिहास है कि किसी भी संकट का पूरे देश के लोगों ने एकजुट होकर मुकाबला किया है और विपरीत समय में आपसी भाईचारे की मिसाल कायम की है। हकीकत यह है कि आजाद होने के बाद भारत ने जिस संविधान को अपनाया, उसमें यह तत्व पूरे भारत को एक सूत्र मे पिरोये रखने के लिए ‘आक्सीजन’  की तरह काम करे, इसकी व्यवस्था हमारे संविधान निर्माताओं ने इतनी खूबसूरती के साथ की कि पृथक-पृथक भाषा-भाषी व विभिन्न क्षेत्रों के बहुधर्मी ‘देशज’ लोग एक ‘भारतीय’ नागरिक पहचान से जुड़े रहें।
हमारे पुरखों ने भारत को ‘राज्यों का एक संघ’ कहा और संवैधानिक व्यवस्था दी कि सभी राज्यों का प्रबन्धन वहां के लोगों द्वारा चुनी गई अपनी सरकारें करेंगी जिनकी जवाबदेही भारतीय संघ के राज प्रमुख  राष्ट्रपति के प्रति होगी। राष्ट्रपति प्रत्येक राज्य में अपना एक प्रतिनिधि​ ( राज्यपाल) नियुक्त करके सुनिश्चित करेंगे कि चुनी हुई सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चले। जबकि केन्द्र अर्थात देश की एक पृथक सरकार होगी जिसका चुनाव भी आम जनता ही करेगी और यह सरकार राष्ट्रपति की अपनी सरकार होगी मगर यह उस सदन के प्रति सीधी जवाबदेह होगी जिसके सदस्यों (सांसदों) का चयन प्रत्यक्षतः आम जनता करेगी और इसे ‘लोकसभा’ कहा जायेगा। इतनी बारीक ‘कशीदाकारी’ के साथ  हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत की एकता व संप्रभुता के ‘सितार’ के तारों को झंकृत किया कि इससे निकला ‘सुर’ हर राज्य के नागरिकों का ‘स्वर’ लगे।  इस सितार से जब कोई बेसुरा स्वर निकलता है तो वह अलग से पहचाना जाता है और सितार से निकले सुर को ‘कसैला’ बना डालता है।
 कोरोना के खिलाफ चल रही लड़ाई को जब  देश के सभी राज्य अपनी-अपनी क्षमता और सामर्थ्य के साथ जीतने की कोशिश में हैं तो प. बंगाल की ममता दीदी की सरकार के कार्यों के बारे में रात-दिन छींटाकशी का माहौल क्यों बनाया जा रहा है? इसकी वजह आम जनता की समझ में नहीं आ पा रही है और अनावश्यक रूप से केन्द्र व राज्य में टकराव का माहौल बनता दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे अधिक विवादास्पद भूमिका महामहिम राज्यपाल जगदीप धनखड़ निभा रहे हैं जो जब चाहे तब अपनी वीणा से अर्ध रात्रि में राग भैरव छेड़ देते हैं। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई आंकड़ों की लड़ाई नहीं है बल्कि यह लोगों को सुरक्षित रखने की लड़ाई है। इस लड़ाई को न तो केन्द्र की आलोचना करके जीता जा सकता है और न राज्य सरकार को रात-दिन कोस कर।
 ममता दीदी को प. बंगाल के लोगों ने अपना प्रचंड बहुमत उसी प्रकार दिया है जिस प्रकार केन्द्र सरकार को मगर राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों व प्रबन्धन को आलोचना के घेरे में लेकर केवल राज्य के लोगों को ही शर्मसार किया जा रहा है। यह शीशे की तरह साफ है कि ममता दीदी की राजनीति का तरीका लीक से हट कर इस तरह रहा है कि वह अपनी जनसभाओं में ‘वन्दे मातरम्’ का उद्घोष सभी प्रकार की सीमाओं को तोड़ कर इस तरह लगाती हैं कि समूचा बंगाली समाज सभी भेदभावों से स्वतः ऊपर उठ जाये। उनकी सियासत बंगाली अस्मिता की सियासत रही है। अतः उनके विरोध में जब कोई विमर्श खड़ा करने की कोशिश की जाती है तो उसका सन्दर्भ तकरार ठानने की प्रक्रिया बन जाता है। उनकी सरकार कोरोना पीड़ितों से लेकर प्रवासी मजदूरों को मदद करने और चिकित्सीय ढांचे के बारे में जो आंकड़े पेश कर रही है उन्हें चुनौती देकर  कोरोना का असर कम नहीं किया जा सकता। जरूरत इस बात की है कि केन्द्र द्वारा किये जा रहे प्रयासों व मदद का लाभ भी प. बंगाल की जनता को भरपूर मिले और इस सिलसिले में राज्य सरकार की जिम्मेदारी तय की जाये। लाॅकडाऊन में रियायतें देना राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है बशर्ते कि वे केन्द्र द्वारा लागू नियमों का उल्लंघन न करती हों। इस मामले में कर्नाटक के मुख्यमन्त्री श्री बी.एस. येदियुरप्पा ने अपने राज्य के गरीब लोगों के लिए विशेष मदद योजना घोषित करके अन्य राज्य सरकारों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने कामगर तबके के लोगों के बैंक खातों में तीन-तीन हजार रुपए डाल कर राहत देने का अद्भुत कार्य किया है। राज्य के नाई, धोबी से लेकर राज-मिस्त्रियों व बेलदार तथा टैक्सी चालकों को यह मदद मिलने से उनमें कोरोना से लड़ने का नया उत्साह जागृत होगा और अपने परिवारों का पेट पालने में मदद मिलेगी।
 इसी तरह का काम कुछ अन्य राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने भी किया है। एक बात समझी जानी चाहिए कि मुसीबत के समय राज्यों की सरकारें किसी विशेष राजनीतिक पार्टी की सरकारें नहीं होती बल्कि वे जनता की सरकारें होती हैं और इन सरकारों का धर्म केवल जनसुरक्षा प्रदान करना होता है। जनता के बीच भेदभाव करने का किसी को भी कोई अधिकार नहीं है। बेशक जनता के बीच ही किसी समुदाय में कोरोना को लेकर कुछ भ्रांतियां हो सकती हैं मगर सरकारें इन भ्रांतियों को समाप्त करने का ही कार्य करती हैं। जिस प्रकार महाराष्ट्र में अल्पसंख्यक समुदाय में कोरोना से संक्रमित होने के मामले बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए समूचे समुदाय को और अधिक संवेदनशील बनाने की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है। हमारा लक्ष्य आपस में ‘उलझना’ नहीं बल्कि आपसी ‘मनमुटाव’ को दूर करते हुए कोरोना पर विजय प्राप्त करनी होनी चाहिए क्योंकि संकट काल में ‘वोट बैंक’ की नहीं बल्कि ‘वोटर’ की चिन्ता की जाती है।

Chania