Thursday, April 18th, 2024 Login Here
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दुनिया में फैले कोरोना वायरस को लेकर भारत समेत 123 देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सामने संक्रमण का निष्पक्ष, स्वतंत्र और व्यापक मूल्यांकन का प्रस्ताव रखा है। लॉकडाउन के चलते भारत ने वायरस की उत्पत्ति को लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय फोरम में सवाल खड़ा किया है। स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए आस्ट्रेलिया की तरफ से यह प्रस्ताव तैयार किया गया है। जिस तरह से पूरे विश्व में कोरोना का वायरस कहर ढा रहा है, मौतों की संख्या सवा तीन लाख तक जा पहुंची है, लाखों लोग संक्रमित हैं, इसलिए वायरस की उत्पत्ति और स्रोत को लेकर जांच तो होनी ही चाहिए।

भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन में अहम पद पर आसीन होने वाला है। भारत 22 मई को संगठन की कार्यकारी बोर्ड की पहली बैठक में प्रमुख पद संभालेगा, वह जापान की जगह लेगा जिसका एक वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। डब्ल्यूएचओ के दक्षिण पूर्व समूह ने सर्वसम्मति से ​पिछले साल संगठन के कार्यकारी बोर्ड में भारत काे तीन वर्ष का कार्यकाल दिए जाने की सहमति जताई थी। इस समूह ने क्षेत्रीय समूहों के बीच एक वर्ष तक कोटेशन के माध्यम से चेयरपर्सन के पद के लिए भारत को नामांकित भी किया था।

मौजूदा परिस्थितियों में भारत को अब महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन का गठन संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के तौर पर हुआ था। इसका उद्देश्य वैश्विक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है और विश्व युद्ध के बाद डब्ल्यूएचओ जैसे संगठन बनाने पर जोर दिया गया था।

अति संवेदनशील या कमजोर देशों में संक्रमित बीमारियों को फैलने से रोकना इस संगठन का काम है। हैजा, पीला बुखार और प्लेग जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ने के लिए इस संगठन ने अहम भूमिका निभाई है। कोरोना वायरस फैलने के मामले में डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल भी उठे हैं।

अमेरिका ने कोरोना विषाणु फैलाने का ठीकरा चीन  पर फोड़ते हुए डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर कई प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं। समय रहते महामारी के बारे में चेतावनी नहीं देने पर अमरीका ने डब्ल्यूएचओ की फंडिंग तक रोक दी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसस को चीन का दुमछल्ला करार देते हुए जानकारियां तक छिपाने का आरोप लगाया है।

अमरीका के 9 सांसदों ने तो कोविड-19 जवाबदेही अधिनियम भी संसद में पेश कर दिया है। यदि यह अधिनियम पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चीन पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार मिल जाएगा। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी यह कह चुके हैं कि चीन की वजह से दुनिया में पांच महामारियां फैल चुकी हैं इसलिए चीन पर अंकुश लगाना भी जरूरी है।

यद्यपि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना वायरस का विषाणु स्वतः पैदा हुआ है या फिर उसे किसी प्रयोगशाला में तैयार किया गया है। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि यह मानव निर्मित है और चीन के वुहान शहर की ही किसी प्रयोगशाला से फैलना शुरू हुआ है। अगर चीन ने समय रहते इससे जुड़ी जानकारियां  सांझा की होती और वुहान से आवाजाही रोक दी होती तो यह इतने बड़े पैमाने पर नहीं फैलता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को जांच की मांग पहले ही कर देनी चाहिए थी, इसके विपरीत वह चीन की बोली बोलने लगा। चीन लगातार यही कह रहा है कि वायरस स्वतः पैदा हुआ है और मानव निर्मित नहीं है। अब कुछ रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि चीन ने कोरोना वायरस के शुरुआती सैम्पल नष्ट कर दिए हैं।

चीन के खिलाफ जांच के प्रस्ताव को भारत, जापान, ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, तुर्की, रूस, इंडोनेशिया, मैिक्सको, ब्राजील और सभी 27 यूरोपीय संघ के सदस्यों द्वारा समर्थन दे दिया ​गया है। इस प्रस्ताव पर पाकिस्तान, नेपाल, मालदीव और अफगानिस्तान ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वहीं सार्क देशों में से बंगलादेश और भूटान ने हस्ताक्षर​ किए हैं।

पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव तो चीन के पालू बन चुके हैं। चीन अपने खिलाफ किसी तरह की जांच नहीं होने देगा और वह ऐसे प्रस्ताव को रोकने की हर संभव कोशिश करेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना वायरस से मौतों को लेकर चीन ने बहुत कुछ छिपाया है। कोरोना वायरस के बारे में चेतावनी देने वाले वैज्ञानिक और सच जानने वालों का कोई अता-पता नहीं है। मृतकों और संक्रमितों का कोई वास्तविक आंकड़ा सामने नहीं आया है।

दुनिया के कई देश चीन की भूमिका के खिलाफ मुखर हो उठे हैं और दुनिया में इस विकराल महामारी के लिए चीन की जवाबदेही तय करने की मांग उठाने में लगे हैं। चीन की छवि दानव के रूप में उभर चुकी है। जहांं तक भारत का सवाल है, कोरोना महामारी से बचाव के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समय रहते कारगर उपाय किए हैं जिससे जानी नुक्सान अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है लेकिन कोरोना वायरस के स्रोत की जानकारी तो मिलनी ही चाहिए।

चीन के खिलाफ वैश्विक नियमों के तहत जांच हो, अगर वह दोषी पाया जाता है तो फिर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने से भी समूची दुनिया को कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक को भी सदस्य देशों का सम्मान करते हुए काम करना चाहिए।

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