Friday, March 29th, 2024 Login Here
लालच को बुरी बला
कहा जाता है। इसकी वजह से सुखी जीवन में भी परेशानियां बढ़ने लगती है। ये
बुरी आदत हमारी सोचने-समझने की शक्ति को कमजोर कर देती है। इसे जल्दी से
जल्दी छोड़ देना चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। जानिए ये
कथा...
प्रचलित लोक कथा के अनुसार गांव में पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे। पति
दिनभर राजा के महल में मेहनत करके एक स्वर्ण मुद्रा कमा लेता था। वह
व्यक्ति बहुत ईमानदार था, इस कारण राजा का प्रिय था। उसकी पत्नी भी
बुद्धिमानी से घर चलाती थी। एक दिन महल से घर लौटते समय में उस व्यक्ति को
एक यक्ष मिला। यक्ष ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं तुम्हारी ईमानदारी और
मेहनत से बहुत खुश हूं। इसलिए मैं तुम्हें सोने के सिक्कों से भरे सात घड़े
दे रहा हूं। तुम्हें ये घड़े में अपने घर में मिल जाएंगे। व्यक्ति बहुत
खुश हुआ।
घर पहुंचकर पूरी बात पत्नी को बताई। अंदर कमरे में जाकर देखा तो वहां
सात घड़े रखे हुए थे। उनमें से 6 घड़े तो सोने के सिक्कों से पूरे भरे थे,
लेकिन एक घड़ा थोड़ा खाली था। सातवें घड़े को देखकर पति को गुस्सा आ गया और
बोला कि यक्ष ने धोखा दिया है। पति गुस्से में उसी जगह पर पहुंचा, जहां
उसे यक्ष मिला था। यक्ष प्रकट हुआ और उसने कहा कि सातवां घड़ा तुम अपनी
कमाई से भर लेना।
व्यक्ति ने सोचा कि थोड़ा सा घड़ा भरने में कुछ ही दिन लगेंगे, मेरे पास
बाकी 6 घड़े तो पूरे भरे हैं। घर आकर उसने पत्नी से कहा कि सातवां घड़ा हम
खुद भर देंगे। अगले दिन से पति-पत्नी ने बचत करनी शुरू कर दी और खाली खड़े
में सोने के सिक्के डालना शुरू कर दिए। बहुत दिनों के बाद भी सातवां घड़ा
भरा ही नहीं रहा था। धीरे-धीरे पति बहुत कंजूस हो गया, वह खाली घड़े को
जल्दी से जल्दी भरना चाहता था। घर में पैसों की कमी आने लगी।
व्यक्ति की पत्नी ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। कुछ
ही दिनों में घर की शांति भंग हो गई। बात-बात लड़ाई-झगड़े होने लगे। सुख के
दिन दुख में बदल गए। जब राजा को मालूम हुआ कि सेवक के घर में धन की कमी हो
गई है तो उन्होंने दो स्वर्ण मुद्राएं रोज देना शुरू कर दी, लेकिन इसके
बाद भी सेवक का सुख-चैन वापस नहीं आया। एक दिन राजा ने सेवक से पूछा कि
क्या तुम्हें किसी यक्ष ने सात घड़े दिए हैं? सेवक ने कहा कि जी महाराज।
सेवक ने पूरी बात राजा को बताई।
राजा ने सेवक से कहा कि तुम अभी जाकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो,
क्योंकि सातवां घड़ा लोभ का है। ये कभी भी भरेगा नहीं। लोभ की भूख कभी शांत
नहीं होती है। सेवक को राजा की बात समझ आ गई और उसने सातों घड़े यक्ष को
लौटा दिए। इसके बाद पति-पत्नी दोनों सुखी हो गए। इस कथा की सीख यही है कि
लालच को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए, वरना जीवन में समस्याएं बढ़ने
लगती हैं।