Thursday, April 25th, 2024 Login Here
प्रसंगवश
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( ब्रजेश जोशी )
यह सही है कि हमारे क्षेत्र में कोरोना के मरीज जिस गति से बढ़े हैं उसी गति से ठीक भी हो रहे हैं और मृत्यु दर भी फिलहाल बहुत कम है लेकिन केवल यही स्थिति हमारे लिए संपूर्ण राहत की बात नहीं हो सकती कोरोना की इस महामारी ने पूरे परिवेश और वातावरण को अपनी जद में ले लिया है और आमजनों को कोरोना की कीमतें चुकाना पड़ रही है।
अब आज का दिन हिंदू समाज का सबसे बड़ा सबसे बड़े पर्व रक्षाबंधन पर्व का दिन है, कोरोना के इस काल में रक्षाबंधन का पर्व कितना प्रभावित हुआ है यह कहने लिखने की जरूरत नहीं आम जनों के लिए कहर बनकर आए इस कोरोना काल में यातायात के साधनों के अभाव में देश का बड़ा वर्ग जिसमें निम्न मध्यम व गरीब होते हैं वे राखी की परंपरा को नहीं निभा पाएंगे कई भाइयों की कलाई सुनी रहेगी और अनेक बहनों के हाथों में राखी और पूजा की थाली नहीं होगी। इसके पहले के भी कई पारंपरिक उत्सव सभी धर्मों के त्यौहार कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं।
लेकिन इस विषमता में और अधिक ग्लानि तब उत्पन्न होती है जब कोरोना की महामारी से बचने के मापदंड में भी राजनीति क्षेत्रवाद, प्रभाव, और भ्रष्टाचार यह सब होने लगे। जब रक्षाबंधन के 1 दिन पूर्व संक्रमित क्षेत्रों में पूरा लाकडाउन शासन स्तर पर घोषित किया गया तो प्रदेश के रसूखदार शहरों के सत्तायुक्त नेताओं ने अपने प्रभाव से शाम 4:00 बजे से अचानक राखी मिठाई और नमकीन की दुकानें खुलवा दी और मंदसौर शहर में भी एकदम से यह छूट प्रशासन द्वारा जारी की गई । यदि इस जानलेवा महामारी के दौर में भी इस तरह की विकृतियां होने लगे तो देश की हालत कोरोना से बाद में लेकिन इसकी वजह से जो अराजक स्थितियां बनेगी उससे पहले चरमरा जाएगी।
यह बात आम लोंगों को बड़ी खलती है कि नियमों की जद में केवल आम जनों को ही लिया जा रहा है दंड जनता ही भर रही है यहां फिर से यही कहना पड़ेगा कि *"समरथ को नहिं दोष गुसाईं"*
नेताओं को कोई कुछ नहीं कहता चाहे वे रेलिया निकालें, सभाएं करें कार्यकर्ताओं के हुजूम में रहे प्रशासन तो प्रोटोकॉल में उनकी हर हिमाकत को सर झुका कर सहन करता है और नियमों की जद में आते हैं सभी धर्मों के पारंपरिक पर्व त्यौहार और उत्सव
उधर बाजारों को खोलने और बंद कराने के पीछे जो खेल होते हैं उससे भी आम जनता अनभिज्ञ नहीं है।
बहरहाल कोरोना की कीमत आम जनता को ही चुकानी पड़ रही है रसूखदारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा वह चाहे जो और चाहे जैसा करें वे सर्वोपरी हैं।
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( ब्रजेश जोशी )
यह सही है कि हमारे क्षेत्र में कोरोना के मरीज जिस गति से बढ़े हैं उसी गति से ठीक भी हो रहे हैं और मृत्यु दर भी फिलहाल बहुत कम है लेकिन केवल यही स्थिति हमारे लिए संपूर्ण राहत की बात नहीं हो सकती कोरोना की इस महामारी ने पूरे परिवेश और वातावरण को अपनी जद में ले लिया है और आमजनों को कोरोना की कीमतें चुकाना पड़ रही है।
अब आज का दिन हिंदू समाज का सबसे बड़ा सबसे बड़े पर्व रक्षाबंधन पर्व का दिन है, कोरोना के इस काल में रक्षाबंधन का पर्व कितना प्रभावित हुआ है यह कहने लिखने की जरूरत नहीं आम जनों के लिए कहर बनकर आए इस कोरोना काल में यातायात के साधनों के अभाव में देश का बड़ा वर्ग जिसमें निम्न मध्यम व गरीब होते हैं वे राखी की परंपरा को नहीं निभा पाएंगे कई भाइयों की कलाई सुनी रहेगी और अनेक बहनों के हाथों में राखी और पूजा की थाली नहीं होगी। इसके पहले के भी कई पारंपरिक उत्सव सभी धर्मों के त्यौहार कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं।
लेकिन इस विषमता में और अधिक ग्लानि तब उत्पन्न होती है जब कोरोना की महामारी से बचने के मापदंड में भी राजनीति क्षेत्रवाद, प्रभाव, और भ्रष्टाचार यह सब होने लगे। जब रक्षाबंधन के 1 दिन पूर्व संक्रमित क्षेत्रों में पूरा लाकडाउन शासन स्तर पर घोषित किया गया तो प्रदेश के रसूखदार शहरों के सत्तायुक्त नेताओं ने अपने प्रभाव से शाम 4:00 बजे से अचानक राखी मिठाई और नमकीन की दुकानें खुलवा दी और मंदसौर शहर में भी एकदम से यह छूट प्रशासन द्वारा जारी की गई । यदि इस जानलेवा महामारी के दौर में भी इस तरह की विकृतियां होने लगे तो देश की हालत कोरोना से बाद में लेकिन इसकी वजह से जो अराजक स्थितियां बनेगी उससे पहले चरमरा जाएगी।
यह बात आम लोंगों को बड़ी खलती है कि नियमों की जद में केवल आम जनों को ही लिया जा रहा है दंड जनता ही भर रही है यहां फिर से यही कहना पड़ेगा कि *"समरथ को नहिं दोष गुसाईं"*
नेताओं को कोई कुछ नहीं कहता चाहे वे रेलिया निकालें, सभाएं करें कार्यकर्ताओं के हुजूम में रहे प्रशासन तो प्रोटोकॉल में उनकी हर हिमाकत को सर झुका कर सहन करता है और नियमों की जद में आते हैं सभी धर्मों के पारंपरिक पर्व त्यौहार और उत्सव
उधर बाजारों को खोलने और बंद कराने के पीछे जो खेल होते हैं उससे भी आम जनता अनभिज्ञ नहीं है।
बहरहाल कोरोना की कीमत आम जनता को ही चुकानी पड़ रही है रसूखदारों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा वह चाहे जो और चाहे जैसा करें वे सर्वोपरी हैं।