Thursday, April 25th, 2024 Login Here
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आरटीओं की चैकिंग का भी भय नहीं बचा, बेखौफ चल रहीं ओव्हरलोड और सामान से लदी बसे
मंदसौर जनसारंगी।

प्रदेश में राज्य परिवहन निगम क्या बंद हुआ, बस माफिया खड़ा हो गया है यहीं कारण है कि सेंधवा और हाल ही में हुए सिंधी बस हादसे से के बाद भी बसों के नियक-कायदों को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिख रहीं है। भले ही सिंधी हादसे के बाद परिवहन विभाग लगातार बसों की चैकिंग कर रहा है लेकिन फिर भी बसें ठूंस-ठूंसकर भरी जा रही हैं। नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। गति पर नियंत्रण नहीं है ना ही बसों की फिटनेस का कोई अता-पता है। मंदसौर जिले में भी आऐ दिन हादसे हो रहे है लेकिन इन्हें देखने वाला कोई नहीं है। हर बड़े हादसे के बाद प्रदेश के साथ ही मंदसौर में भी हलचल मचती है लेकिन बाद में सब कुछ ढांक के तीन पात...!
सेंधवा हादसे के बाद सरकार ने दावा किया था कि अब दो दरवाजे के बिना बस नहीं चलेंगी लेकिन ये बस वाले किसी के बस में नहीं रहे। इमरजेसी गेट की बात भी हुई थी। यह भी कहा गया था माल ढुलाई नहीं होगी। सब कुछ हो रहा है। जिम्मेदारों को छोड़कर आम आदमी तक को भी यह दिख रहा है। ऐसे में दो बातें हैं, या तो जिम्मेदार कुछ करना नहीं चाहते या बस ऑपरेटर इतने रसूखदार हैं कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं होती। मंदसौर में करीब 300 से ज्यादा बसें रजिस्टर्ड हैं, जो जिले के विभिन्न मार्गों पर दौड़ रही हैं। शहरी तो ठीक लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो बसों का इतना बुरा हाल है, जिसे भुक्तभोगी यात्री ही अपनी मालवी अदा में बयां कर सकते हैं और वे करते भी हैं। प्रतिदिन सैकड़ों यात्री असुरक्षित यात्रा करते हैं। बसों में ना फर्स्ट एड बॉक्स है ना अग्निशमन यंत्र । बसों के पीछे फोल्डिंग कांच भी नहीं है जिसके जरिए कोई अनहोनी होने पर यात्री अपनी सुरक्षा कर सके और इमरजेंसी निकासी से बाहर निकल सके।
अबकी बार भी सिंधी में हुए बस हादसे के बाद मंदसौर में बसों की चैकिंग तो शुरू हुई है लेकिन इनकी मनमानी पर लगाम नहीं लग पाई है। बसों के उपर बेरोकटोक माल का लदान हो रहा है। क्षमता से ज्यादा यात्री लगातार बिठाऐ जा रहे है। बसों की फिटनेस का कोई उल्लेख बसों पर नहीं है। प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था का तो सवाल ही नहीं उठता। बसों के चालक, क्लिनर की वर्दी का अता-पता नहीं है और ना ही बसों की गति पर कोई नियंत्रण है। जबकि सिंधी हादसे के बाद प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक बस के चालक का मोबाईल पर बात करते हुए तेज गति से चालन ही हादसे का कारण सामने आ रहा है बावजूद इसके मंदसौर जिले में भी मंदसौर से गरोठ तक के मार्ग पर तेजी से बसें दोड़ना आम बात है।वजह साफ है कई बसों के परमीट एक या दो मिनिट के अंतर से ही है ऐसे में बस चालक एक दूसरे से आगे बड़कर सवारियां लेने के चक्कर में बसों को तेज रफ्तार से दौडाते है वह भी बसों में क्षमता से ज्यादा यात्री और नियम कायदों को ताक पर रखकर सामान लदान करते हुए ऐसे में हादसा हो जाए तो भूगतना आम जनता को ही होता है। बस मालिकों पर इसका कोई असर नहीं होता है।
सेंधवा हादसे के बाद दिखावटी कार्रवाहीं हुई थी बाद में सारे कायदे हवा हो गए अब सिंधी हादसे के बाद भी उम्मीद बंधी थी कि बसों की मनमानी पर लगाम लगेगी लेकिन लगता है जिम्मेदारों ने इस हादसे से भी कोई सबक नहीं लिया जिसके कारण केवल दिखावटी कार्रवाहीं हो रहीं है इसका बसों के संचालन पर कोई असर नहीं हो रहा है।
क्या होना चाहिऐ और क्या हो रहा है
अधिकांश बसों में दोनों तरफ गेट है लेकिन ऑपरेटर दो-तीन अतिरिक्त यात्रियों के लिए एक गेट बंद कर यहां यात्री खडे कर देते है या फिर सीट लगा देते हैं। 100-200 रुपए की अतिरिक्त कमाई के लिए ऑपरेटर यात्रियों को असुरक्षित यात्रा करवाते हंै।
मंदसौर से संचालित अधिकांश बसों में योग्य ड्राइवर नहीं हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के तहत बस ड्राइवर के पास हेवी लाइसेंस और बेच होना अनिवार्य है लेकिन कई ड्राइवरों के पास हेवी लाइसेंस तो है लेकिन बेच नहीं है।
यात्री बसों का उपयोग मालयान के रूप में किया जाता है। जबकि बसों में केवल यात्रियों का ही सामान रखा जाना चाहिए। परिणाम बसों की छत पर सामान रखते हैं। संतुलन बिगड़ने पर बस पलट जाती हैं।
ड्राइवर, क्लीनर और कंडेक्टर का पुलिस वेरिफिकेशन किया जाना चाहिए।
यात्री बसों में दाएं तरफ इमरजेंसी गेट होना अनिवार्य है। ड्राइवर का गेट स्लाइडिंग होना चाहिए। बाएं तरफ दो गेट होना अनिवार्य है।
वॉल्वो बसों में यात्रियों के चढ़ने और उतरने का एक ही गेट है। दाएं तरफ इमरजेंसी गेट नहीं है। ऐसा अन्य बसों में भी है।

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