Friday, March 29th, 2024 Login Here
मंदसौर जनसारंगी।
जिला ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश में इस साल मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं की उपज संकट में है। सर्दी ने गेहूं की फसल का साथ जल्दी छोड़ दिया। यही कारण है कि इस बार जिले के गेहूं उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। गेहूं की कटाई और गहाई के शुरुआती रुझान बताते हैं कि जिले में गेहूं की पैदावार 15-20 फीसद कम रह सकती है। गिरावट का ज्यादा असर मंदसौर जिले जही नहीं, बल्कि मालवा और निमाड़ में देखा जा रहा है। जिस इलाके में प्रति एकड़ 15-16 क्विंटल गेहूं पैदा होता था, वहां इस बार 10-11 क्विंटल पर जाकर पैदावार ठहर गई है।
पिछले साल गेहूं का उत्पादन जिले में अच्छा रहा। इस बार यह आंकड़ा छू पाना मुश्किल है। यदि 15 फीसद गिरावट भी हुई तो पिछले साल के मुकाबले काफी कम पैदावार हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फरवरी के आरंभ में जिस समय गेहूं की बाली निकलने और दानों में दूध भरने का समय था, उस समय अचानक मौसम में बदलाव आ गया। सर्दी कम होने और तापमान बढऩे से गेहूं की बालियों को झटका लगा। पैदावार की गिरावट का बड़ा कारण मौसम को ही माना जा रहा है, लेकिन कुछ इलाकों में फंगस और बाद में इल्ली ने भी गेहूं की पैदावार को नुकसान पहुंचाया। भानपुरा क्षेत्र के किसान दिलीपसिंह पंवार ने बताया कि हमारे सात बीघा के एक खेत में केवल 55 क्विंटल गेहूं निकला, जबकि इसी खेत में हर साल 110-112 क्विंटल गेहूं निकलता है। सरकार को सर्वे करवाकर किसानों को फसल बीमा की राशि उपलब्ध करानी चाहिए। सीतामऊ क्षेत्र के कैलाश पटेल बताते हैं, यहां कई किसान एक एकड़ पर 20 क्विंटल तक भी उत्पादन लेते हैं, लेकिन इस साल 11-12 क्विंटल पर जाकर गाड़ी रुक जाएगी। गेहूं पर इस साल इल्ली का भी प्रकोप देखा गया। इंदौर के चिकलोंडा गांव के अर्जुनसिंह चौहान का कहना है कौन-सा कीट था, हमारी आंखों से तो सब ओझल रहा। जब गेहूं निकाला तब आश्चर्य हुआ कि एक बीघा में छह-सात क्विंटल उपज ही मिली।
समय से पहले पक गया गेहूं
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं को ठंड पसंद है, लेकिन इस साल गर्मी 10-15 दिन पहले ही आ गई। साथ ही गेहूं पर इल्ली के अलावा बाली और पत्ते को खाने वाले फंगस का असर भी रहा। तापमान बढऩे से गेहूं समय से पहले ही पक गया। इसका असर उत्पादकता पर पड़ रहा है। अनुमान है कि इस साल 15-20 प्रतिशत उत्पादन कम होगा। सर्दी के मौसम में तापमान का उतार-चढ़ाव भी काफी रहा। कभी 25-30 डिग्री तो कभी अचानक सात-आठ डिग्री सेल्सियस पर तापमान चला जाता था। इससे गेहूं की फसल पर विपरीत असर पड़ा। गेहूं के पौधों में कल्ले भी अधिक नहीं फूटे।
किसानों की जल्दबाजी और नासमझी से भी नुकसान
- मौसम तो दगाबाज हो ही रहा है, लेकिन कई किसानों की नासमझी और जल्दबाजी के कारण भी फसलों को नुकसान हो रहा है। जानकार बताते हैं, दो साल से खरीफ में सोयाबीन की फसल में फंगस और अन्य बीमारियां आ रही हैं। किसानों ने इस साल सोयाबीन कटने के बाद जल्दी खेत तैयार कर गेहूं बो दिया। इस कारण खेत को पर्याप्त धूप नहीं मिली और सोयाबीन का फंगस गेहूं में चला आया।
- किसान यूरिया का अधिक उपयोग कर रहे हैं। इस कारण गेहूं में भी रसचूसक कीड़े बढ़ रहे हैं। वास्तव में यूरिया को कम करके मिट्टी में पोटाश और जिंक की मात्रा बढ़ाना चाहिए।
- कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि इस साल उन्होंने जिस खेत में गेहूं लगाया था, वहां अगले रबी सीजन में फसल परिवर्तित कर दें। साथ ही खरीफ सीजन में भी सोयाबीन की जगह कोई और फसल लगाना चाहिए। इससे मिट्टी से फंगस और इल्ली के अंडे नष्ट हो जाएंगे।