Thursday, April 25th, 2024 Login Here
क्या तस्वीर है.!!!इतनी अद्भुत... इतनी निराली... मानवता के नए प्रतिमान गढ़ने वाली....! उस पर से सर्टिफिकेट यह कि सरकारी मशीनरी ने जारी किया है! वक्त ने क्या कम सितम ढाया? जो प्रशासन के कारिंदे एक मासूम की बदकिस्मती का मजाक उड़ाने आ गए? एक छोटा सा बच्चा जो अभी अपने दर्द से भी ऊबर नहीं पाया था कि उसे अब सरकारी सिस्टम का दर्द झेलना पड़ गया! कहने को बात यह है कि प्रदेश के मुखिया ने कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों की मदद के लिए नई योजना की घोषणा की है। इस योजना के पीछे उद्देश्य है अनाथ बच्चों की मदद का, उन्हें बेसहारा ना छोड़े जाने का। लेकिन, स्थानीय प्रशासन जैसे इस योजना में भी प्रचार खोजने लगा है! शुक्रवार को जारी हुए प्रशासन के एक फोटो से सिस्टम की बदनियति साफ नजर आई! कोरोना में अपने माता-पिता को खो चुके एक बच्चे को सरपंच प्रतिनिधि साहब चार बिस्किट के पैकेट देते हुए फोटो खींच आते हैं और यह फोटो सरकारी सिस्टम बड़ी शान से जारी कर देता है! दूसरा फोटो शामगढ़ का है जिसमें सहायता से ज्यादा तो लोग एकत्र हो गऐ। अजब है सिस्टम को चलाने वाले लोग, अजब है उनकी मानवता, अजब है उनकी सोच और उससे भी गजब है उनका दिखावा!!
कोरोना की विकराल विपदा ने देश दुनिया पर तो कहर ढाया ही है पर सबसे ज्यादा विपदा उन परिवारों पर आई है जिन्होंने इस महामारी में अपना कुछ, कईयों बहुत कुछ ओर कुछ ने अपना सबकुछ खो दिया हैं और इस सबकुछ में आते है वे बच्चें जिनके सर से कोरोना ने माता या पिता अथवा दोनो का साया ही सर से छीन लिया है। वह भी उस अबोध अवस्था में जिसमें अभी उन्होंने अपने भविष्य के सपने देखना शुरू ही किए थे। उन्हें अपने माता-पिता की मजबूत नींव के सहारे अपने उज्जवल भविष्य की राह को आसान बनाना था ।लेकिन काल के प्रहार ने खेलने और पढ़ने की उम्र में इन बच्चों के कांधों पर जिम्मेदारियों को बोझ डाल दिया ।कुछ दिन पहले तक जो बच्चें अपने माता-पिता के प्यार भरे आंचल में अपने को महफूज रख रहे थे अब उन्हें अपने हाथों की लकिरों को खुद खिंचना है। आपदा में बेसहारा हुए बच्चों की मासुमियत के अंदर छीपे इस दर्द को समझ पाना आसान नहीं है। इसी बीच प्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चैहान ने इन बच्चों की मदद के लिए सरकारी हाथ आगे बढ़ाएं है। इसमें एक कदम मंदसौर के प्रशासन ने आगे बढाया और मंदसौर के समाजसेवियों और दानदाताओं से इन बच्चों की मदद का आव्हान किया है। इससे पहले प्रशासन ने कोरोना में अपनों को खोने वाले 125 बच्चों को चिन्हित किया है जिसमें 45 से 50 बच्चों के परिवारों में माता या पिता का अवसान हो गया है और 5 परिवारों के लगभग 8 बच्चों का सर्वश्रव यानी माता और पिता दोनो ही इस महामारी की भेंट चढ़ गऐ है।
लेकिन लगता है इस आव्हान के बाद इन बच्चों की वास्तविक मदद के बजाय दिखावे का ढकोसला शुरू हो गया। शुक्रवार को जो तस्वीर सामने आई है वह तो यहीं बयां करती है कि प्रशासन ने खुद बच्चों की बदकिस्मति को मजाक बना दिया है। जबकी हमारे ग्रंथों में भी यह लिखा है कि दान या सेवा करों तो ऐसे करों कि दाऐ हाथ से करांे और बायंे को भी मालुम नहीं पड़े और यही भगवान पशुपतिनाथ की पवित्र नगरी की तासिर भी है कि यहां के कई ऐसे समाजसेवी है जो हर आपदा में संकटमोचक बनकर मदद तो करते है लेकिन कभी अपना नाम उजागर नहीं करते है। बावजूद इसके सरकारी तंत्र ने बच्चों की मदद को दिखावट में तब्दिल किया ,क्या यह दिखावा इन बच्चें की बदकिस्मती को बदलकर खुशकिस्मति में बदल देगी? जैसे यह चार बिस्किट के पैकेट उसके जीवन को नई दिशा दे देंगे? जैसे चार बिस्किट के पैकेट सारी भूख गरीबी और परेशानी को बदल डालेंगे? वास्तव में शुक्रवार को सामने आई मंदसौर जिले की दोनो तस्वीरे मन को कचोटने वाली है, तस्वीरों में बच्चों के चेहरे उनके दर्द को बयां कर रहे है। इसलिए इन बच्चों के दर्द को दिखावटी ढकोसला बनाने की बजाय मदद हो तो ऐसी होनी चाहिऐ कि इन बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस ना पहुंचे, मदद हो तो ऐसी होनी चाहिए कि वो इन बच्चों के सुखद भविष्य की कल्पना को साकार कर सकें। मदद हो तो ऐसी हो जो बच्चें के जीवन से माता या पिता की कमी को पूरा कर सकें।