Thursday, April 25th, 2024 Login Here
प्रसंगवश
( ब्रजेश जोशी)
कैसी खामोशी थी...कितना अनमना सा था मेरा शहर कोरोना ने एक ऐसी इबारत लिख दी कि सन्नाटे ही शहर के स्वर हो गए थे...और वीरानी ही यहां की नियति बन गई थी। पिछले डेढ़ माह की अवधि में मुस्कुराने की कोई वजह ही नहीं मिल रही थी...क्या-क्या मंजर नहीं देखे मन्दसौर ने भी...ओह कैसा कठिन समय था मौत के साये में बीते ये दिन कई अपनों को लील गये... सदा उत्सवों की उमंग में डूबे रहने वाले मन्दसौर में मातम ही मातम नजर आया...!
कितनों को खो दिया ..मन्दसौर का श्मसान कभी इतना व्यस्त नहीं रहा। कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन में 3 दर्जन शवों अन्तिम संस्कार होगा किन्तु इस कोरोना काल ने हमें वह सब कुछ दिखा दिया जो कोई भी शहर कभी नहीं देखना चाहेगा। अस्पतालों में बेड नहीं चारों तरफ हाहाकार... आक्सीजन की कमी का कोहराम ...सब हैरान..परेशान..!मौत का मानो ताण्डव ही चल रहा
था। सरकारी-निजी डॉक्टर रात-दिन लगे रहे..! प्रशासन, जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता व्यवस्थाओं में जुटे रहे।लोग घरों में बन्द ...बाजार बन्द... कहीं जाना नहीं किसी का आना बन्द.. रीति रिवाज...तीज त्योहवार ...मिलना-जुलना थियेटर, होटल..रेस्टोरेन्ट सब बन्द
पान नहीं चाय नहीं ..जियें तो जियें कैसे ये प्रश्न खड़ा हो गया...।
हालांकि घोर विपत्ति के इस काल में शहर का एक सुन्दर-सुकून दायक चेहरा भी देखा गया निःस्वार्थ सेवाओं के लिये कई व्यक्ति, संस्थाएं व संगठन आगे आए। कोरोना को खत्म करने के लिये प्रार्थनाओं का भी दौर भी चला।
45 दिन के कोरोना कर्फ्यू ने काफी कुछ दिखा दिया। अब कुछ राहत दिखी है। केस कम हो रहे हैं अस्पतालों में बेड खाली हो गये हैं,आक्सीजन की कमी भी नहीं रही है। लम्बी उदासी मायूसी व दर्द झेलने के बाद मुस्कुराने की वजह मिल गई है 1 जून से शहर भी अनलॉक हुआ है...!
उम्मीद करते हैं कि इतना सब देखने सहने व झेलने के बाद अब हम पिछली गलतियों को नहीं दोहराएंगे.. सभी सावधानियां व नियमों का पालन करेंगे निश्चित ही यदि हम सावधान रहें तो मुद्दत बाद आई यह मुस्कुराहट आगे भी कायम रहेगी।
( ब्रजेश जोशी)
कैसी खामोशी थी...कितना अनमना सा था मेरा शहर कोरोना ने एक ऐसी इबारत लिख दी कि सन्नाटे ही शहर के स्वर हो गए थे...और वीरानी ही यहां की नियति बन गई थी। पिछले डेढ़ माह की अवधि में मुस्कुराने की कोई वजह ही नहीं मिल रही थी...क्या-क्या मंजर नहीं देखे मन्दसौर ने भी...ओह कैसा कठिन समय था मौत के साये में बीते ये दिन कई अपनों को लील गये... सदा उत्सवों की उमंग में डूबे रहने वाले मन्दसौर में मातम ही मातम नजर आया...!
कितनों को खो दिया ..मन्दसौर का श्मसान कभी इतना व्यस्त नहीं रहा। कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन में 3 दर्जन शवों अन्तिम संस्कार होगा किन्तु इस कोरोना काल ने हमें वह सब कुछ दिखा दिया जो कोई भी शहर कभी नहीं देखना चाहेगा। अस्पतालों में बेड नहीं चारों तरफ हाहाकार... आक्सीजन की कमी का कोहराम ...सब हैरान..परेशान..!मौत का मानो ताण्डव ही चल रहा
था। सरकारी-निजी डॉक्टर रात-दिन लगे रहे..! प्रशासन, जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता व्यवस्थाओं में जुटे रहे।लोग घरों में बन्द ...बाजार बन्द... कहीं जाना नहीं किसी का आना बन्द.. रीति रिवाज...तीज त्योहवार ...मिलना-जुलना थियेटर, होटल..रेस्टोरेन्ट सब बन्द
पान नहीं चाय नहीं ..जियें तो जियें कैसे ये प्रश्न खड़ा हो गया...।
हालांकि घोर विपत्ति के इस काल में शहर का एक सुन्दर-सुकून दायक चेहरा भी देखा गया निःस्वार्थ सेवाओं के लिये कई व्यक्ति, संस्थाएं व संगठन आगे आए। कोरोना को खत्म करने के लिये प्रार्थनाओं का भी दौर भी चला।
45 दिन के कोरोना कर्फ्यू ने काफी कुछ दिखा दिया। अब कुछ राहत दिखी है। केस कम हो रहे हैं अस्पतालों में बेड खाली हो गये हैं,आक्सीजन की कमी भी नहीं रही है। लम्बी उदासी मायूसी व दर्द झेलने के बाद मुस्कुराने की वजह मिल गई है 1 जून से शहर भी अनलॉक हुआ है...!
उम्मीद करते हैं कि इतना सब देखने सहने व झेलने के बाद अब हम पिछली गलतियों को नहीं दोहराएंगे.. सभी सावधानियां व नियमों का पालन करेंगे निश्चित ही यदि हम सावधान रहें तो मुद्दत बाद आई यह मुस्कुराहट आगे भी कायम रहेगी।