Friday, March 29th, 2024 Login Here
अपरा एकादशी की व्रत कथा और इस दिन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जीवन मंत्र डेस्क। गुरुवार, 30 मई को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे अपरा और अचला एकादशी कहा जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए इस एकादशी की व्रत कथा और खास बातें...
अचला एकादशी व्रत की कथा और खास बातें
ये है कथा
पुराने समय में महिध्वज नाम का राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई महिध्वज को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन मौका देखकर ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। राजा की आत्मा वहां से निकलने वाले लोगों को सताने लगी।
एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल वृक्ष के नीचे से निकले। उन्होंने तपोबल से राजा के साथ हुए अन्याय को समझ लिया। ऋषि ने राजा की आत्मा को पीपल के वृक्ष से हटाकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा की आत्मा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चली गई।
कैसे करें इस एकादशी का व्रत
एकादशी की सुबह व्रत करने वाला व्यक्ति पवित्र जल से स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर खुद को शुद्ध करें। रक्षा सूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी की पूजा अवश्य करें। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें और दिन भर उपवास करें। रात में जागरण करें। व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
एकादशी पर इन बातों का ध्यान रखें
इस एकादशी पर भगवान को पूजा में चावल के स्थान पर तिल अर्पित करें। आलस्य छोड़ें। अधिक से अधिक समय भगवान के मंत्रों का जाप करें। तुलसी के साथ भगवान को भोग लगाएं। रात्रि में जागरण करते हुए भजन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
जीवन मंत्र डेस्क। गुरुवार, 30 मई को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे अपरा और अचला एकादशी कहा जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए इस एकादशी की व्रत कथा और खास बातें...
अचला एकादशी व्रत की कथा और खास बातें
ये है कथा
पुराने समय में महिध्वज नाम का राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई महिध्वज को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन मौका देखकर ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। राजा की आत्मा वहां से निकलने वाले लोगों को सताने लगी।
एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल वृक्ष के नीचे से निकले। उन्होंने तपोबल से राजा के साथ हुए अन्याय को समझ लिया। ऋषि ने राजा की आत्मा को पीपल के वृक्ष से हटाकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा की आत्मा दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चली गई।
कैसे करें इस एकादशी का व्रत
एकादशी की सुबह व्रत करने वाला व्यक्ति पवित्र जल से स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर खुद को शुद्ध करें। रक्षा सूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी की पूजा अवश्य करें। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें और दिन भर उपवास करें। रात में जागरण करें। व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
एकादशी पर इन बातों का ध्यान रखें
इस एकादशी पर भगवान को पूजा में चावल के स्थान पर तिल अर्पित करें। आलस्य छोड़ें। अधिक से अधिक समय भगवान के मंत्रों का जाप करें। तुलसी के साथ भगवान को भोग लगाएं। रात्रि में जागरण करते हुए भजन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।