Saturday, April 20th, 2024 Login Here
इंतकाल पर अफसोस
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जनसारंगी
नगर की गंगा जमुनी संस्कृति में हिंदू मुस्लिम दोनों ही समुदायों के कुछ सद्भाव वादी लोगों के कारण सदैव सामंजस्य का वातावरण रहता आया है कभी-कभी कतिपय लोग कुछ साजिशें करते हैं तो दोनों ही वर्गों से कुछ शख्स आगे आकर स्थितियों को संभालते हैं ऐसे ही एक शख्स थे हाजी अब्दुल मन्नान...! गत दिवस इंदौर में उपचार के दौरान उनका इंतकाल हो गया मंदसौर शहर में सांप्रदायिक समरसता की भावना को आगे बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा सन 84 में उनका मंदसौर आगमन हुआ मूल रूप से बकीरा संत कबीर नगर उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे उनका परिवार अभी भी वहीं निवास करता है किंतु जब से वे मंदसौर आए मानो मंदसौर के ही होकर रह गए... यहां की सरजमी से उन्हें खास लगाव हो गया मंदसौर आते ही उन्होंने अंजुमन में दारुल उलूम की शुरुआत की और बच्चों को धार्मिक शिक्षा देना शुरू किया उनके पढ़ाए हुए कई बच्चे मदरसों में आज पढ़ाते हैं, कई आलीम भी हो गए। बाद में उन्होंने माल्या खेड़ी और बादाखेड़ी में भी दारुल उलूम की शुरुआत की।
वे उदारवादी विचारों के हिमायती थे और हमेशा मुस्लिम समाज जनों को प्रगतिशील विचारों से सभी से समरस होने का सबक देते थे। एक वाकया याद आता है सन 2000 में मुस्लिम समाज के ही दो घटकों में टकराव की स्थिति बनी और उसमें प्रेस फोटोग्राफर और समाज के कुछ लोगों के बीच कहासुनी हुई और गतिरोध उत्पन्न हो गया इस वाकये में हाजी अब्दुल मन्नान ने मध्यस्थता की भूमिका निभाते हुए दोनों पक्षों के बीच सुलह कराई और तत्कालीन घंटाघर नगर पालिका के टाउन हाल में समझौता बैठक हुई और जिन पत्रकारों के कैमरों में क्षति हुई थी उसकी भरपाई मन्नान साहब ने समाज की ओर से कराई। ऐसे और भी प्रसंग हैं जब उन्होंने शहर में किसी तरह का तनाव ना हो इसका भरसक प्रयास किया। पिछले दिनों कुछ अस्वस्थता के बाद उन्हें जिला चिकित्सालय में भर्ती किया गया उनकी कोरोना पाजेटिव रिपोर्ट आने के बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें इंदौर रेफर किया वहीं दौराने इलाज उनका इंतकाल हो गया। उन्हें इंदौर में ही सुपुर्द ए खाक किया गया है। मंदसौर में उनकी मौत की खबर से चाहने वालों में शोक की लहर फैल गई और सभी ने उनकी मौत पर अफसोस जताया।
- ब्रजेश जोशी