Friday, April 26th, 2024 Login Here
*इस होली पर हम बाहर से रंग चाहे नहीं लगा पाए तो भी हमारे मन के रंग कभी फीके नहीं पढ़ना चाहिए और यही असल की होली है।*
आज के समय में होली मनाने की जो फूहड़ परंपरा चल निकली है, परंपरा तो क्या इसे मनमानी कहा जा सकता है। आज का युवा वर्ग केमिकल के रंग इस्तेमाल कर, कीचड़ लगाकर, अपने साथियों को नाली में गिरा कर होली मनाते हैं। यह किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है और स्वास्थ्य की ही लड़ाई आज पूरा विश्व लड़ रहा है ।इसे अवसर समझ कर हम यह शपथ ले सकते है कि इस महामारी के बाद से हम केमिकल और गंदे कीचड़ का इस्तेमाल ना कर रंगों के महोत्सव को शुद्ध सात्विक रंगों से ही मनाएंगे और त्योहारों के महत्व को समझेंगे।
हमारी भारतीय संस्कृति में प्रत्यैक त्योहार का अपना एक विशेष महत्व है और यह रंगो का महोत्सव यही सिख देता है कि हम सभी के जीवन में नित नवीन रंगों का सृजन हो, नवीन ऊर्जा का संचार हो ।
आप सभी को रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
सुनीता देशमुख
सामाजिक कार्यकर्ता
पूर्व सदस्य -मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग ,भोपाल