Thursday, April 25th, 2024 Login Here
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गरीब की करी सरकार ने चिंता, अमीर को फर्क नहीं पडा, मध्यमवर्गीय हो रहा परेशान
मंदसौर जनसारंगी।

 कोरोना काल में सबसे गरीब तबके और अमीरों की बात करें तो उन पर ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा है। इसका कारण है कि बीपीएल कूपन के साथ मिलने वाली सुविधाएं और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे भोजन से इस तबके को लाक डाउन में राहत मिल रही है। इधर सबसे ऊपर के तबके की बात करें तो वहां भी बैंक बेलेंस होने से खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा। दिक्कत सबसे ज्यादा हो रही है बीच के तबके के लोगों को, मतलब मध्यवर्गीय परिवारों को। एक और किसी की नौकरी चली गई है तो किसी के काम धंधे बंद पडे हैं। इधर खाद्य पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी हो गई है। वहीं कोरोना से बचने के लिए काम आने वाली चीजों और ऑनलाईन क्लास जैसे नवाचार ने अतिरिक्त खर्च बढ़ा दिया है। अब समस्या यह हो रही है कि मध्यवर्गीय परिवार को स्वाभिमान के साथ अपनी शान भी जिंदा रखना है। वहीं पेट भी भरना है।
कोरोना काल में जहां मध्यमवर्गीय परिवार की कमर तोड़ रखी है। वहीं कोरोना से बचाव के लिए लोगों के घरों का बजट बढ़ गया है। हर घर में हर महीने 1500 से 2000 रुपये तक हैंडवाश, सैनिटाइजर, साबुन, वाशिंग पावडर, पोछा लगाने वाले केमिकल पर खर्च हो रहे हैं। परिवारों में इम्युनिटी बूस्टर के साथ ही खाने पीने की चीजों में अलग से खर्च बढ़ा है। काढ़ा, हैंड ग्लब्स भी बजट में शामिल हो चुके हैं। इतना ही नहीं आनलाइन क्लास की वजह से मोबाइल डेटा में हर माह एक हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। इस बढ़े हुए बजट का सीधा असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर हुआ है। वे आर्थिक रूप से और कमजोर हो रहे हैं। मंदसौर में सित्तर फीसदी मध्यमवर्गीय परिवार हैं। कोरोना ने तीन माह पहले अपना पांव पसारना शुरू किया। सबसे पहले लोगों ने मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग शुरू हुआ। ब्रांडेड कंपनियों के मास्क छह से आठ सौ रुपये तक में बिके। सैनिटाइजर भी शुरुआत में 50 एमएल 150 रुपये या उससे ज्यादा में बिके। मजबूरी में लोगों ने खरीदा भी। अमूमन सभी के घरों में हैंडवाश नहीं हुआ करता था, लेकिन संक्रमण से बचाव के लिए इसे भी घर के बजट में शामिल किया। पहले जहां छोटे परिवार में चार साबुन में पूरा माह निकल जाता था, अब दो साबुन और लेने पड़ रहे हैं। पहनने वाले कपड़े रोज धुल रहे हैं, ऐसे में एक से दो किलो वाशिंग पावडर अलग से लग रहा है। इसके अलावा सोडियम हाइपोक्लोराइट भी खर्च में जुड़ गया। कोरोना के चलते लोगों की बचत खत्म हो रही है और क्रयशक्ति घटी है। इसलिए बचत नहीं कर पा रहे हैं।
सब्जियों के दाम कर रहे परेशान
कोरोना काल में कई बार सब्जियों के दाम बढ़े। लाकडाउन में सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी जेब पर असर डाल रही है। वहीं दाल, तेल, मिर्च सहित अन्य खाद्य पदार्थ  के भाव लॉक डाउन की घोषणा के साथ ही बढ़ गए।
बचत और महिलाओं पर पड़ा असर
घरों के बजट बढने से भविष्य के बचत में बुरा असर पड़ा है। जो कुछ लोग बचा रहे थे,वे कोरोना से बचाव में खर्च कर रहे हैं। यह आकस्मिक खर्च है, जिसके बारे में लोगों ने सोचा भी नहीं था। यह प्राथमिकता वाले खर्च में शामिल हो गया। इसके दो दुष्परिणाम हुए हैं। पहला बचत घट रहा और दूसरा क्रयशक्ति कमजोर हुई है। इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों में कोरोना कहर बनकर टूटा और इसका सीधा असर महिलाओं पर हुआ। जो महिलाएं खुद काम करके परिवार की मदद करती थीं,उनका काम बंद हुआ। साबुन, डिटर्जेंट आदि के खर्च बढने से उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ी है।
आनलाइन क्लास के लिए स्मार्टफोन
कई परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं थे,उन्हें बच्चों की आनलाइन क्लास के लिए आठ से 10 हजार रुपये वाला स्मार्टफोन खरीदना पड़ा। वहीं हर माह डेटा पर खर्च तो ही रहा है। जिनके घर में दो बच्चे हैं उन्हें दूसरा नया या सेंकड हैंड मोबाइल लेना पड़ा।

 प्रति परिवार कोरोना का मासिक बजट
हैंडवाश           90 रुपये वाले दो पीस 180 रुपये
वाशिंग पाउडर 2 किलो(60 रुपये वाले) 100 से 150रुपये
सेनेटाइजर         एक लीटर 250 से 300रुपये
मास्क              2 से 3 पीस 100 से 200रुपये
हैंड गलब्स एक पीस 10रूपए 150 से 200रुपये
साबुन          20रुपये वाले दो नग 40रुपये
काढ़ा सामग्री अदरक, लौंग, हल्दी 300 से 400रुपये
अन्य खर्च - सब्जियों की कीमत बढने, फल पर 200, आनलाइन पढ़ाई-तीन माह का डेटा 15-20 दिन में खर्च 1000 रुपये
(आंकड़े कुछ परिवार से बातचीत के आधार पर)।
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