Thursday, May 2nd, 2024 Login Here
दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों के साथ उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण का विकराल रूप यही बता रहा है कि उस पर नियंत्रण पाने के दावे खोखले साबित हुए। ये दावे इसलिए खोखले साबित हुए, क्योंकि जिन पर भी वायुमंडल को दूषित होने से बचाने की जिम्मेदारी है, उन्होंने कुछ न करना ही बेहतर समझा। यह देखना दयनीय है कि केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें और उनकी तमाम एजेंसियों के साथ एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक प्रदूषण पर लगाम लगाने के जतन करते रहे, लेकिन सब को नाकामी ही मिली। ऐसा लगता है कि प्रदूषण नियंत्रण के मामले में 'ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंच जाने की एक बड़ी वजह यह है कि उसके मूल कारणों को समझने और उनका निवारण करने की जरूरत नहीं समझी जा रही है। ऐसा तब है, जब बीते करीब एक दशक से वायु प्रदूषण एक खतरे के रूप में चित्रित हो रहा है। यह शासन व्यवस्था की नाकामी का नमूना ही है कि वायु प्रदूषण की चिंता केवल सर्दियों में ही की जाती है। क्या शेष समय उत्तर भारत का वायुमंडल साफ-सुथरा रहता है? जो भी हो, तमाम कवायद के बाद भी वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर एक तरह से जीने के अधिकार पर आघात ही है।
जब हरियाणा और पंजाब के साथ देश के कुछ अन्य हिस्सों में फसलों के अवशेष जलाए जाने लगते हैं, तब इसकी चिंता की जाती है कि ऐसा क्यों हो रहा है? जब तक इस सवाल की तह तक जाने की दिखावटी कोशिश होती है, तब तक फसलों के बचे-खुचे अवशेष भी जलाए जाने लगते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। यह लज्जा की बात है कि हरियाणा और पंजाब की सरकारें एक बार फिर ऐसे प्रबंध नहीं कर सकीं कि किसान पराली न जलाने पाएं। इन दोनों राज्य सरकारों के नाकारापन के सामने केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी कुल मिलाकर असहाय ही साबित हुए।
ऐसा नहीं है कि केवल फसलों के अवशेष जलाने से ही प्रदूषण की समस्या सिर उठाती हो, लेकिन जब उनका धुआं सड़कों और निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल और वाहनों के उत्सर्जन से मिलता है तो वह सेहत के लिए जानलेवा स्मॉग में तब्दील हो जाता है। नि:संदेह दीपावली के दौरान पटाखे दागे जाने के कारण भी वायुमंडल खराब होता है, लेकिन केवल उन्हें ही जिम्मेदार ठहराना समस्या का सरलीकरण करना ही है। इस बार तो कहीं कम पटाखे चलाए गए, लेकिन प्रदूषण का स्तर कहीं अधिक गंभीर हो गया। स्पष्ट है कि समस्या की जड़ में शासन-प्रशासन का निठल्लापन ही है।