Thursday, May 2nd, 2024 Login Here
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कोरोना से जिस तरह भारतवासियों ने मुकाबला किया है उसकी तेजी और गर्मी बीच में टूटनी नहीं चाहिए मगर इसके साथ ही कोरोना को किसी हौवे की तरह लेने की भी कोई वजह नहीं है। भारत के कुल 736 जिलों में से तीन सौ से ज्यादा ग्रीन जोन में आते हैं और एक सौ से अधिक रैड जोन में तथा बाकी ओरेंज जोन में,  ये आंकड़े बताते हैं कि भारत के 130 करोड़ों लोगों ने संयम से काम लिया है मगर लाॅकडाऊन का तीसरा चरण शुरू होने पर पिछले 41 दिनों से घरों में बन्द लोगों के सब्र का पैमाना कुछ इस तरह छलका है कि वे शराब या मदिरा की दुकानें खुलते ही गम कम करने की खुशी से झूम उठे हैं।
अतः मदिरा की दुकानों के सामने दिल्ली समेत पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लम्बी-लम्बी लाइनें लग गईं! मगर इससे हैरत में पड़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि शराब तो पैसों से ही मिलती है। बेशक शराब पीना अच्छी आदत  नहीं है मगर प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक अधिकार है कि वह अपनी मनपसंद की चीजें खाए और पीए।
प्रख्यात पत्रकार स्व. खुशवन्त  सिंह का वह कथन याद करने योग्य है जब नब्बे के दशक में स्व. साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमन्त्री थे और उन्होंने शराब पर आंशिक प्रतिबन्ध लगाया था तो उन्हाेंने आह्वान किया था कि ‘सोडा व्हिस्की बरफ दो–नहीं तो गद्दी छोड़ दो।’ दरअसल खुशवन्त सिंह का जोर खाने-पीने के नागरिकों के मौलिक अधिकार से ही था।
मगर भारत जैसे देश में शराब की खपत का सम्बन्ध यहां के लोगों की माली हालत से जोड़ा जाता है जो कि एक हद तक सही भी है क्योंकि गरीब आदमी शराब नहीं पीता बल्कि शराब उसे पी जाती है, बिहार जैसे गरीब राज्य में शराब की खपत को देखते हुए और समाज पर पड़ने वाले उसके खराब असर की वजह से ही शराब बन्दी की गई थी।
अक्सर यह मुद्दा भी राजनीति का  केन्द्र बनता रहता है कि सरकार को शराब बन्दी लागू करने की जगह इसके सेवन के विरुद्ध जन अभियान चलाना चाहिए और लोगों में जागरूकता पैदा करनी चाहिए। सत्तर के दशक तक उत्तर प्रदेश की कांग्रेस नेता स्व. श्रीमती सुशीला नैयर यहां के पहाड़ों पर पूर्ण नशाबन्दी लागू करने के लिए धरने से लेकर अनशन और आन्दोलन चलाया करती थीं।
उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाओं का खासा समर्थन भी मिला करता था, परन्तु पर्वतीय इलाकों की जलवायु ने उनकी मांग को एक बार पूरा होने भी दिया तो बाद में उसे समाप्त करना पड़ा। बिहार में नशाबन्दी लागू हुए कई साल बीत चुके हैं मगर शराब वहां चोरी–छिपे खूब बिकती है।
शराबबन्दी के विरुद्ध पुख्ता तर्क यह है कि इसके उत्पादन को बन्द करके सरकार को जहां भारी राजस्व की हानि उठानी पड़ती है वहीं अवैध शराब उत्पादक लाॅबी भ्रष्टाचार के तार सत्ता से लेकर चुनाव तक बिछा देती है। इसके अलावा सामाजिक धरातल पर लोगों की जान का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। इसके समानान्तर भारत में गन्ना व चीनी उद्योग जिस तरह से बढ़ा है उसे देखते हुए इस उद्योग के सह उत्पाद शीरे (मोलेसिस) का उपयोग शराब उत्पादन में करके चीनी उद्योग की लाभप्रदता को इस प्रकार बढ़ाया जा सकता है कि चीनी मिलें किसानों के गन्ने की रकम का भुगतान करने में ज्यादा से ज्यादा सक्षम हो सकें।
वाजिब सवाल है कि सरकार को ऐसे उत्पाद पर रोक लगा कर राजस्व हानि क्यों उठानी पड़े जिसका उत्पादन अवैध तरीके से होना लाजिमी बना दिया गया हो? अतः लाॅकडाऊन-3 में जब शराब की दुकानों के खुलने की छूट दी गई है तो उनके सामने पहले दिन भीड़ लगना कोई अचम्भा नहीं है मगर इस बात का ख्याल शराब के खरीदारों को रखना होगा कि वे जोश में होश न खोयें और इसे खरीदते वक्त एक-दूसरे से दो हाथ की दूरी बनाये रखें यानी एक हाथ आगे और एक हाथ पीछे छोड़ कर ही दूसरा खरीदार खड़ा हो।
दो हाथ जो लगभग दो गज होता है उसकी दूरी बहुत जरूरी है मगर यह भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि अपने घर या परिवार को मुसीबत में डाल कर शराब की खरीदारी न की जाये। पहली जिम्मेदारी परिवार और बच्चों की ही होती है, उनकी कीमत पर शराब का सेवन करना किसी अपराध से कम नहीं है। कभी भी शराब के जुनून में यह हालत नहीं आनी चाहिएः   

Chania