Thursday, May 2nd, 2024 Login Here
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भोपाल। मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बढ़ती सक्रियता ने सियासी मोर्चों र्में र्हलचल मचा दी है। पिछले एक सप्ताह में पूर्व सीएम ने सागर में यूरिया संकट पर किसानों के साथ गिरफ्तारी दी तो भोपाल में एक दुष्कर्म पीड़ित बच्ची की हत्या के मामले में न्याय की लड़ाई लड़ने धरने पर बैठ गए। वैसे तो चौहान प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में होने की बात खारिज कर चुके हैं, लेकिन उनके निशान पर इन दिनों मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह है।
राष्ट­ीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा में आए नेता राम माधव की रायशुमारी से पहले यह माहौल बनाया जा रहा है कि विपक्ष में होने के कारण प्रदेश में अब फायर ब्रांड अध्यक्ष चाहिए। वहीं, हाईकमान की नजदीकी के कारण राकेश सिंह मौन जरूर हैं पर वे समय-समय पर चौहान को संगठन का अहसास कराते रहते हैं।
ऐसे हालात में प्रदेश भाजपा दो धड़ों में बंटी दिखाई दे रही है। एक धड़ा शिवराज सिंह के साथ है तो दूसरा मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह के साथ है। हाईकमान पहले ही इस मामले में नजरें गड़ाए हुए है। माना जा रहा है कि संघ का वीटो इस फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।  मप्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को हटाकर जबलपुर सांसद राकेश सिंह के हाथों में पार्टी की कमान सौंपी थी। तब चौहान का कार्यकाल नौ महीने का बाकी था।
दिग्गज कहते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेशाध्यक्ष के पद पर चुनाव तक बदलाव नहीं चाहते थे, लेकिन पार्टी ने राष्ट­ीय स्वयंसेवक संघ और संगठन के नेताओं के परामर्श से राकेश सिंह को प्रदेश की कमान सौंपी, जो दौड़ में भी नहीं थे। विधानसभा चुनाव में पार्टी हारी, तभी से भाजपा में बिखराव देखने मिल रहा है। सत्ता से वंचित होने के तत्काल बाद शिवराज ने प्रदेश में आभार यात्रा निकालने का एलान कर दिया। संगठन को भरोसे में लिए बिना एकतरफा फैसले के कारण चौहान को यात्रा निकालने की अनुमति पार्टी ने नहीं दी। फिर चौहान संगठन की योजना से बाहर जाकर अपने कार्यक्रम घोषित करना शुरू कर दिए तो राकेश सिंह ने हाथ खींच लिए। इसके बाद से ही प्रदेश में चौहान और संगठन के बीच दरार दिखने लगी थी।
पार्टी के सूत्र कहते हैं कि प्रदेश संगठन जो कार्यक्रम बनाता तो हाईकमान के साथ-साथ चौहान को भी भरोसे में लेता था, लेकिन चौहान बिना किसी से चर्चा के अपने कार्यक्रम का एलान कर देते हैं। ताजा मामला यूरिया संकट को लेकर हुए आंदोलन का है। चौहान ने सागर जाकर किसानों के साथ गिरफ्तारी देने का फैसला किया। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को ही भरोसे में नहीं लिया। लौटने के बाद अपने विधानसभा क्षेत्र बुदनी में जन अदालत लगा ली। फिर भोपाल में बेटी बचाओ आंदोलन के तहत धरने पर बैठ गए। कुछ समय पहले राकेश सिंह का बैरीकेड पर चढ़ने और कूदने का एक फोटो वायरल हुआ था, ठीक वैसा ही दृश्य सोमवार को शिवराज ने दोहराया। इससे पहले भी अतिवृष्टि के दौरान शिवराज ने मंदसौर में जाकर धरना दिया था।
चौहान का खेमा चाहता है कि किसी भी सूरत में राकेश सिंह की वापसी न हो पाए। वहीं बाकी दिग्गज चाहे कैलाश विजयवर्गीय हों या प्रहलाद पटेल, प्रभात झा या केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सभी ने चुप्पी साध रखी है। भाजपा के प्रदेश प्रभारी डॉ. विनय सहस्त्रबुध्दे कहते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव तय प्रक्रिया और समयसीमा में ही होगा, निश्चिंत रहें।
 इनका कहना है
भाजपा में होड़ और दौड़ जैसी कोई बात नहीं होती है। आकांक्षी नेता पार्टी नेतृत्व के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं, लेकिन इसे गुटबाजी या विभाजन कहना ठीक नहीं है। अंतिम फैसला सभी वरिष्ठ नेताओं के परामर्श से आम सहमति से होगा, जैसी भाजपा में परम्परा है।
 - दीपक विजयवर्गीय,
मुख्य प्रवक्ता, भाजपा मप्र
Chania