Monday, May 6th, 2024 Login Here
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पहले पांच समर्थकों को कार्यकारिणी मंे जगह दिलाई, अब प्रभारी मंत्री बनाया और 5 को स्वयं आ रहे दौरे पर
मंदसौर जनसारंगी।
वैसे तो मंदसौर को सिंधिया रियासत का ही अंग माना जाता है, यहीं कारण है कि सिंधिया परिवार का हमेंशा  से ही इस क्षेत्र से विशेष लगाव रहा है। अब जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गऐ उनके मंदसौर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़े जाने की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है। भाजपा के फिर से सत्ता में आने के 15 महिने बाद जैसे ही बुधवार की रात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान ने मंत्रियों को जिले का प्रभार सौपा एक बार फिर से सिंधिया का वर्चस्व मंदसौर में कायम हो गया और इसके साथ ही राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह से बदल गऐ। क्योंकि सीएम ने सिंधिया समर्थक राज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव को मंदसौर जिले का प्रभारी मंत्री बनाया है और 5 जुलाई को सिंधिया स्वयं मंदसौर संसदीय क्षेत्र के दौरे पर आ रहे है। ऐसे में साफ है कि सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा मे आऐ नेताओं के ईद-गिर्द मंदसौर की राजनीति घूमने लगेंगी।
प्रदेश में सिंधिया और उनके समर्थकों के समर्थन से भाजपा की सरकार बनी है इसके बाद से ही मंदसौर की राजनीति में भी भारी उथल-पुथल मची हुई है। वजह साफ है मंदसौर संसदीय क्षेत्र से सिंधिया का लगाव इसी के चलते यहां उनके समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है। प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति ने उन्होंने अपने समर्थकों को भी पूरी तवज्जों दिलाई और संसदीय क्षेत्र से पांच नेताओं को इसमें जगह दिलवाई अब अपने समर्थक राज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव को मंदसौर जिले का प्रभारी बनाकर यहां की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली है। इससे पहले सिंधिया के मंदसौर से अगला लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चाऐ चल रहीं थी उसे भी बल मिल रहा है क्योंकि मंदसौर संसदीय क्षेत्र की राजनीति में सिंधिया खुद को पूरी तरह से सक्रिय कर रहे है। कार्यसमिति मंे अपने समर्थकों को जगह दिलाना उसके बाद अपने समर्थक मंत्री को मंदसौर जिले का प्रभार दिलवाना और इसके बाद अब सिंधिया स्वयं चार दिन बाद मंदसौर संसदीय क्षेत्र के दौरे पर आने वाले है।
हालांकि सिंधिया के भाजपा में आने के बाद भाजपा की राजनीति में उथल-पुथल भी हुई है। मंदसौर में भाजपा ने जिस तरह से अपनी कार्रकारिणी बनाई है उससे उपजा असंतोष ही अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है क्योंकि इसमें कई दिग्गज भाजपा नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जिन्होंने बरसों तक जाजम बिछाकर पार्टी को सिंचने में अपना पसीना बहाया है। कार्यकारिणी की स्थिति यह है कि जो नेता नपाध्यक्ष बनने के सपने देख कर दावेदारी कर रहे थे उन्हें तक जगह नहीं मिली है। ऐसे में अब इस बात को भी बल मिल रहा है कि भाजपा के जो कार्यकर्ता नाराज है वे भी सिंधिया के पाले में जाकर बैठ सकते है ।
मंदसौर में मजबूत जमीन तैयार कर रहे सिंधिया
2019 के चुनाव में गुना सीट से सिंधिया कांग्रेस से मैदान में थे और एक दौर में अपने ही विश्वासपात्र रहे कृष्णपालसिंह उर्फ केपी यादव से 1 लाख 25 हजार 549 मतों से लोकसभा चुनाव हार गए थे। इसके बाद कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में आऐ। चूंकी सिंधिया परिवार में पहली बार अपने ही क्षेत्र से कोई चुनाव हारा और भाजपा यहां बदलाव कर शायद ही जनभावना से जुड़ा जोखिम ले, भाजपा वहां अपनी साख से नहीं खेलना चाहेगी। ऐसे में मंदसौर सीट को लेकर शीर्ष नेतृत्व में शायद ही किसी को ऐतराज होगा। वर्तमान सांसद गुप्ता को चुनाव से पहले ही विधानसभा या संगठन, सत्ता में अन्य अहम पद पर सेवा ली जा सकती है। दिल्ली व भोपाल के सूत्रों के मुताबिक ऐसे में ये भी संभावना बढ़ी है कि नए समीकरण साधने को 2023 के विधानसभा चुनाव में मंदसौर संसदीय क्षेत्र की 8 सीटों में से 2 से 4 सीटों पर भाजपा से नए प्रत्याशी सामने हों।

Chania