Friday, May 3rd, 2024 Login Here
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बीकानेर। दो साल की एक मासूम के साथ रेप के मामले में जब परिवार ही केस लड़ने से इंकार कर दे तो आमतौर पर पुलिस से बहुत उम्मीद नहीं की जाती, लेकिन बीकानेर के SHO धीरेंद्र सिंह ने पूरे देश के लिए एक ऐसी मिसाल कायम की है, जिसे जानकर हर कोई उन पर गर्व करेगा।
दरअसल, दो साल की मासूम के साथ रेप कर जंगल में फेंकने वाले दरिंदे को पिछले दिनों बीकानेर कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके बाद इस केस की तफ्तीश की पूरी कहानी सामने आई है। बच्ची से रेप के मामले के जांच अधिकारी रहे धीरेंद्र सिंह ने बच्ची की हालात देखी तो वे हैरान हो गए। परिवार को ढूंढा, लेकिन नहीं मिला। काफी कोशिश के बाद जब परिवार के लोग मिले तो मामला दर्ज करवाने से मना कर दिया, लेकिन धीरेंद्र सिंह ने आरोपी को सजा दिलाने की ठान रखी थी।
मां-बाप पीछे हटे तो वे खुद आगे आए और परिवादी बनकर मामला दर्ज करवाया। चार साल तक ट्रांसफर होते रहे लेकिन वे पीछे नहीं हटे। कई बार ऐसा भी हुआ जब मां ने गवाही देने से मना कर दिया। दूसरे जिलों में पोस्टिंग के बाद भी वे सबूत जुटाते रहे। आखिर आरोपी को आजीवन करावास की सजा सुनाई गई।

पूरी कहानी पढ़िए धीरेंद्र सिंह की जुबानी...
मां ने FIR करने से इनकार कर दिया
पांच साल पहले बीकानेर के बीछवाल थाने में इंचार्ज था। आरोपी छोटूराम ने 20 मार्च 2016 को दो साल की बच्ची को उठाया। जंगल में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया और उसे जंगल में ही मरने के लिए छोड़कर भाग गया। जब घटना की जानकारी मिली तो मैं टीम के साथ मौके पर गया। बच्ची को जंगल से उठाया और अस्पताल पहुंचाया। मेरे उस समय होश उड़ गए, जब डॉक्टर ने बताया कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ है।
मैंने सोचा एक मासूम बच्ची के साथ कोई ऐसा कैसे कर सकता है? मैंने परिवार वालों को ढूंढना शुरू किया तो कोई नहीं मिला। उसकी मां अपने छोटे बेटे के साथ गायब हो चुकी थी । जैसे-तैसे उसकी मां को ढूंढ लिया। उसे FIR कराने के लिए कहा। आश्चर्य तब हुआ जब मां ने FIR दर्ज कराने से इनकार कर दिया। गांव वालों से कहा गया कि वो FIR करवाएं ताकि पुलिस दोषी को सजा दिला सके लेकिन कोई सामने नहीं आया। इस पर मैंने न्याय दिलाने की सोची। अपने थाने आया और परिवादी बनकर FIR दर्ज करवाई।

मां ने गवाही तक नहीं दी
मेरी FIR के बाद छोटूराम जाट को गिरफ्तार कर लिया गया। मामला अदालत पहुंचा तो उसकी मां को गवाही के लिए बुलाया गया। कई बार समन भेजा, लेकिन मां ने गवाही तक नहीं दी। यहां तक कि वो घर से गायब हो जाती थी। वो अदालती चक्करों में नहीं पड़ना चाहती थी। पुलिस ने समझाइश भी दी, लेकिन वो नहीं मानी। अदालत में उसके बयान के कारण पांच साल तक फैसला नहीं हो सका।

तबादले होते रहे, सबूत जुटाते रहे
इस दौरान मेरा ट्रांसफर बीछवाल थाने से, फिर बीकानेर और बाद में बीकानेर रेंज से ही ट्रांसफर हो गया। बेटी को न्याय दिलाने के लिए बार-बार बीकानेर आता रहा। उसके लिए सबूत जुटाता रहा। इस केस के लिए अधिकांश सबूत खुद मैंने ही जुटाए।

मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी
बातचीत में धीरेंद्र सिंह ने कहा कि ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है। उस बच्ची का परिवार उसे न्याय दिलाने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन मैं इस घटना से अंदर तक हिल गया था। मैंने खाकी पहनी इसीलिए थी कि किसी को न्याय दिला सकूं। जब मेरे सामने पीड़ित एक दो साल की बच्ची है तो फिर उसे न्याय दिलाना मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी। मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है कि उस बेटी को न्याय मिल गया।
Chania