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गर्भवती महिलाऐ मिली थी एचआईव्ही पॉजीटिव, बच्चों को संक्रमण से बचाया
मंदसौर जनसारंगी।
 जिले में एचआईवी एड्स के खिलाफ चलाए जा रहे जागरूकता अभियान के तहत छह सालों से दो जिंदगियां बचाने की कोशिश चल रही है। सरकारी अस्पतालों में आने वाली हर गर्भवती महिला की एचआईवी जांच हो रही है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि अभी तक करीब सवा सौ से ज्यादा गर्भवती महिलाओं में एचआईवी पॉजीटिव मिला है। वहीं इनके होने वाले बच्चों को इस जानलेवा रोग से बचाने की कोशिश भी रंग लाई है। अभी तक इन महिलाओं से हुए करीब बारह बच्चों में एचआईवी निगेटिव आया है।
जिले में जांच सेंटर प्रारंभ होने के बाद से अब तक लाखों लोगों की जांच हो चुकी है।  सीधे मौत के मुंह में भेजने वाले वायरस को लेकर इतना प्रचार-प्रसार होने के बाद भी शिकार मरीजों की संख्या बीते दो साल से कम हो रही है। सबसे भयावह सच तो यह है कि इससे घरेलू महिलाएं ज्यादा पीडित हो रही हैं। महिलाओं में तेजी से बढ़ती संख्या को लेकर सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाली हर गर्भवती महिला की एचआईवी जांच की जा रही है। 2016 में कुल 20 हजार 919 महिलाओं की जांच की गई थी। इनमें 11 महिलाओं को पॉजीटिव मिला था। वहीं 2017 में 19 हजार 679 की जांच हुई थी, जिनमें 10 पॉजीटिव मिले थे। इसके बाद अब तक की गई जांच में लगभग बारह महिलाएं पॉजीटिव मिली हैं। इनको लगातार ऐसी दवाएं दी जा रही हैं ताकि गर्भ में पल रहे बच्चों पर असर नहीं हो। इसका असर भी यह हुआ कि लगभग बारह से ज्यादा बच्चों को एचआईवी वायरस से बचाया जा सका है।
संक्रमित सुई के साथ असुरक्षित देह व्यापार
जिले में बढ़ता असुरक्षित देह व्यापार, संक्रमित सुइयों का उपयोग लोगों को एचआइवी की ओर धकेल रहा है। महू-नीमच राजमार्ग से गुजरने वाले ट्रक चालक बांछड़ा समाज की युवतियों को रोग मुफ्त में दे रहे हैं। उनके जरिए जिले के कुछ घरों में भी एचआईवी वायरस ने पैठ बना ली है।
कागजों में दफन जाबाली
बांछड़ा समुदाय की महिलाओं को देह व्यापार के दल-दल से निकालने के लिए शासन ने 23 साल पहले जाबाली योजना बनाई थी। इसमें एनजीओ के माध्यम से बाछड़ा महिलाओं का पुनर्वास का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन बजट की कमी, जटिल नियम और क्रियान्वयन के लिए इच्छाशक्ति के अभाव में योजना कागजों में ही दफन हो गई।
बदनामी से कतराते हैं उपचार लेने में
अभी स्थिति यह बन रही कि लोग जिला चिकित्सालय में परामर्श केंद्र पर जांच कराने तो आते हैं, लेकिन एचआईवी पॉजीटिव होने का पता चलने के बाद भी 80 प्रश ही लौटकर दवाइयां लेने आ रहे हैं। कुछ लोग बदनामी या अन्य डर से आना छोड़ देते हैं। अस्पताल नहीं पहुंचने वालों को समिति के अधिकारी व कर्मचारी समझाइश देकर उपचार के लिए तैयार करते हैं।
29 स्थानों पर होती है जांच
जिले में 29 जगह एकीकृत परामर्श एवं परीक्षण केंद्र मंदसौर, मल्हारग?, सीतामऊ, गरोठ एवं भानपुरा विखं में चल रहे हैं। यहां निशुल्क एचआइवी परामर्श एवं जांच की जा रही है। रक्तदान के पूर्व एचआइवी, हेपेटाइटिस बी एंड सी, मलेरिया, वीडीआरएल की जांच के बाद ही रक्त मरीजों को चढ़ाया जाता है। इन केंद्रों से निशुल्क कंडोम वितरण भी किया जाता है। ओपीडी एवं पैथॉलाजी के पास भी कंडोम बॉक्स लगाए गए हैं।
10 साल बाद होता है एड्स
मरीज को एक माह से ज्यादा बुखार रहने पर भी मलेरिया या अन्य बीमारी नहीं मिलती है तो एचआईवी जांच कराई जाती है। असुरक्षित यौन संबंधों के मामले में भी एचआईवी जांच होती है। जांच में एचआईवी पॉजीटिव मिलने के लगभग 10 साल बाद उसे एड्स होता है। इस अवस्था में मरीज को एक साथ तीन या उससे भी अधिक बीमारी जकड़ लेती हैं।
बॉक्स
बीते सालों में एड्स पीड़ितों के आंकड़े

वर्ष जांच पुरुष पॉजीटिव महिला पॉजीटिव
2002-03 125 06 02

2003-04 337 19 13

2004-05 357 15 15

2005-06 360 45 20

2006-07 374 40 26

2007-08 1984 46 30

2008-09 2027 74 39

2009-10 7314 146 92

2010-11 6065 108 52

2011-12 19060 146 92

2012-13 24374 127 83

2013-14 21009 105 76

2014-15 6104 75 61

2015-16 8019 65 50

2016-17 20798 114 61

2017-18 22824 96 58

2018-19 44050 89 76

2019-20 27923 85 56

2020-21 42626 54 36

2021-22 27923 53 33
(स्रोत एड्स नियंत्रक केंद्र, जिला चिकित्सालय 2021-22 के आंकड़े अप्रैल से अक्टूबर तक के)

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