Monday, May 6th, 2024 Login Here
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जबलपुर
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से कहा है कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाएं और OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करें। महाराष्ट्र के बाद अब मध्य प्रदेश में भी निकाय और पंचायत चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है। मध्य प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकाय में अन्‍य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण पर चुनाव नहीं होगा। OBC के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य सीट मानते हुए चुनाव कराने को कहा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता, जो अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाएं और OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करें। अदालत ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा तो भविष्य में सुप्रीम कोर्ट चुनाव को रद्द भी कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को करेगा।

कोर्ट ने दो टूक कहा कि राज्य सरकार OBC आरक्षण मामले में आग से मत खेले। याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा के मुताबिक राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए गए हैं कि चुनाव संविधान के हिसाब से हो तो ही कराइए। मध्यप्रदेश में आरक्षण रोटेशन का पालन नहीं किया गया, यह संविधान की धारा 243 (C) और (D) का साफ उल्लंघन है। अभी सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत आदेश आना शेष है। मामले में राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद चुनाव रोकने पर निर्णय लिया जाएगा।

राज्य निर्वाचन आयोग असमंजस में इसलिए भी है, क्योंकि पंचायत चुनाव को लेकर 2014 के आरक्षण के हिसाब से जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, सरपंच और पंच के नामांकन भरवाए जा रहे हैं। चूंकि जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रक्रिया और चुनाव इसके संपन्न होने के बाद होगी, इसलिए मामला खटाई में पड़ता गया है। सब कुछ नए सिरे से होगा।

याचिककर्ता कांग्रेस पंचायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डीपी धाकड़ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा ने पक्ष रखा। दोपहर दो बजे मामले की सुनवाई शुरू हुई। लगभग आधे घंटे चली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते रहे। महाराष्ट्र चुनाव का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी मामले में आग से मत खेलो। ओबीसी सीटों के आरक्षण पर रोक लगाते हुए इस पर राज्य सरकार से जवाब मांगा।

जबलपुर हाईकोर्ट ने अर्जेंट हियरिंग से किया था इनकार

जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका पर अर्जेंट हियरिंग न होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण लगाया था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने इसे स्वीकार करते हुए शुक्रवार को सुनवाई की तारीख तय की थी। याचिकाकर्ताओं के साथ ही मध्यप्रदेश सरकार सहित अन्य पक्षकारों को भी अपना पक्ष रखने के लिए निर्देशित किया था। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को स्पष्ट कर चुका है कि एमपी में होने वाला त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव आदेश के अधीन होगा।

मामले में गुरुवार को नाटकीय मोड़ आया

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरुवार को याचिकाकर्ताओं ने जबलपुर हाईकोर्ट में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के रोटेशन सहित अन्य प्रक्रियाओं में नियमों का पालन न करने का मामला उठाते हुए चुनाव पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ से अर्जेंट हियरिंग की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए तीन जनवरी की अगली तारीख तय कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई। जहां याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई तय की थी।

पंचायत चुनाव की वैधानिकता, अध्यादेश, रोटेशन और परिसीमन को लेकर लगी थी याचिकाएं

एमपी में पंचायत चुनाव को लेकर अलग-अलग याचिकाएं दायर हुई हैं। पहले ग्वालियर खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई। वहां से प्रकरण मुख्य खंडपीठ पहुंची। वहां नौ दिसंबर को एक साथ सभी याचिकाओं की सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव पर रोक लगाने से मना कर दिया। तब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने सुप्रीम कोर्ट में चले गए। सुप्रीम कोर्ट में 15 को हाईकोर्ट और 16 को हाईकोर्ट द्वारा अर्जेंट हियरिंग से मना करने पर फिर याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।

पंचायत चुनाव की वैधानिकता को दी है चुनौती
भोपाल के मनमोहन नायर और गाडरवाडा के संदीप पटेल सहित पांच अन्य याचिकाकर्ताओं ने तीन चरणों में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की वैधानिकता को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है राज्य सरकार ने 2014 के आरक्षण रोस्टर से चुनाव करवाने के संबंध में अध्यादेश पारित किया है,जो असंवैधानिक है। 2019 में राज्य सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से नए सिरे से आरक्षण लागू किया था। बिना इस अध्यादेश को समाप्त किए, दूसरा अध्यादेश लाकर 2022 का पंचायत चुनाव 2014 के आरक्षण के आधार पर कराने का निर्णय लिया गया है, जो असंवैधानिक है।

महाराष्ट्र का दिया था हवाला
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा तर्क दे चुके हैं कि महाराष्ट्र में आरक्षण संबंधी प्रावधानों का पालन ना होने पर सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना निरस्त करते हुए फिर से अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में भी आरक्षण और रोटेशन का पालन नहीं किया गया जो असंवैधानिक है। वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा भी साफ कर चुके हैं कि यह संविधान की धारा 243 C और D का साफ उल्लंघन है।

रोटेशन मामले में दायर याचिका पर 21 दिसंबर को हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

उधर, एमपी हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार 16 दिसंबर को एमपी हाईकोर्ट में दमोह निवासी डॉ. जया ठाकुर और छिंदवाड़ा निवासी जफर सैयद की ओर से लगाई गई याचिका पर भी सुनवाई हुई थी। याचिकाकर्ताओं ने 2014 के आरक्षण के आधार पर चुनाव कराने और रोटेशन की प्रक्रिया का पालन न किए जाने की संवैधानिकता को चुनौती दी है। अधिवक्ता वरुण सिंह ठाकुर के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने मामले में 21 दिसंबर को अगली सुनवाई तय की है।
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