Saturday, April 27th, 2024 Login Here
आखिरकार सात साल बाद देश को विचलित करने वाले निर्भया कांड के चार गुनहगारों के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत ने डेथ वारंट जारी कर दिया। इसके तहत इन चारों को फांसी की सजा 22 जनवरी को दी जाएगी, लेकिन इसे लेकर सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता और इसका कारण यह है कि दोषियों के वकील यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास अभी कुछ और कानूनी विकल्प हैं। नि:संदेह जघन्य अपराध के दोषियों को भी उपलब्ध कानूनी विकल्प इस्तेमाल करने का अधिकार है, लेकिन सबको पता है कि इन विकल्पों की आड़ में किस तरह तारीख पर तारीख का खेल खेला जाता है। यह केवल हास्यास्पद ही नहीं, बल्कि शर्मनाक भी है कि 2012 के जिस मामले ने पूरे देश को थर्रा दिया था, उसके दोषियों की सजा पर अमल अब तक नहीं हो सका है और वह भी तब, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला 2017 में ही सुना दिया था। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह न्याय प्रक्रिया की कच्छप गति को ही बयान करता रहा। न्याय प्रक्रिया की सुस्त रफ्तार से न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पदों पर बैठे लोग अनजान नहीं, लेकिन दुर्भाग्य से उन परिस्थितियों का निराकरण होता नहीं दिखता, जिनके चलते समय पर न्याय पाना कठिन है। लगता है किसी को इस पर लज्जा नहीं आई कि निर्भया के मां-बाप को न्याय के लिए किस तरह दर-दर भटकना पड़ रहा? दुर्भाग्य से यह इकलौता ऐसा मामला नहीं, जिसमें न्याय पाना पहाड़ जैसी समस्या बना हो। यह तो गनीमत है कि इस मामले में सात साल बाद न्याय होता दिख रहा है। अधिकांश मामलों में तो दशकों बाद भी अंतिम स्तर पर न्याय नहीं हो पाता। इनमें तमाम मामले संगीन किस्म के होते हैं। जब संगीन मामलों में भी जटिल कानूनी प्रक्रिया के कारण देरी होती है, तब केवल न्याय व्यवस्था का उपहास ही नहीं उड़ता, बल्कि अपराधी तत्वों को बल भी मिलता है। सब इससे भली तरह अवगत हैं कि न्याय में देरी वास्तव में न्याय से इनकार है। फिर भी यह विडंबना ही है कि वैसे प्रयास नहीं हो रहे हैं, जिससे न्याय में देरी न होने पाए। बेहतर होगा कि हमारे नीति-नियंता कानून के शासन को लेकर घिसे-पिटे उपदेश देने के बजाय यह देखें कि न्याय की शिथिल गति भारतीय लोकतंत्र को दुर्गति की ओर ले जा रही है। इसी के साथ समाज को भी यह समझना होगा कि दुष्कर्मी तत्वों को केवल कठोर सजा से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। दुष्कर्म सरीखे अपराध कहीं न कहीं यह भी बताते हैं कि समाज बेहतर नागरिकों का निर्माण करने के अपने दायित्व का निर्वाह सही ढंग से नहीं कर पा रहा है।