Saturday, May 4th, 2024 Login Here
विश्व विख्यात जल संवर्धक डॉ राजेंद्र सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में कहा
मंदसौर निप्र विश्व विख्यात जल संवर्धक और भू -गर्भ जल विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय मैक्सेसे सम्मान प्राप्त डॉ. राजेंद्र सिंह ने अपने मंदसौर प्रवास के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए नगर के दो बड़े पेयजल स्रोत शिवना नदी और तेलिया तालाब पर अपनी राय देते हुए कहा कि शिवना नदी में बढ़ रही जलकुंभी का मूल कारण शहर भर का गंदा मल मूत्र युक्त पानी का शिवना नदी में मिलना है इस वजह से नदी के पानी में नाइट्रोजन ज्यादा हो गया है।
आपने कहा कि जलकुंभी की समस्या से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय यह है कि नदी में जमी हुई गाद को हटाया जाए।और यह भी ध्यान रखा जाए कि शहर का एक भी गंदा नाला शिवना नदी में ना मिले। इसके लिए शासकीय एजेंसियों के साथ ही नगर के सेवाभावी संगठनों एनएसएस, एनसीसी के विद्यार्थियों को एक जन चेतना का अभियान चलाना चाहिए। आपने कहा कि मुझे यह इस तथ्य से अवगत कराया गया है कि लगभग 55 किलोमीटर लंबी शिवना नदी में 30 से अधिक स्टाप डेम बने हुए हैं । शिवना का अस्तित्व इसीलिए खत्म हो रहा है कि इन स्टाप डेमो के स्थान के चयन ठीक नहीं हुए हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. राजेंद्र सिंह ने अपने प्रवास के दौरान फील्ड विजिट में शिवाना के कई मुहानों का भी अवलोकन किया है।
तेलिया तालाब पर हाल ही में एनजीटी के निर्णय को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि एनजीटी का निर्णय अंतिम नहीं है इसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट है। अपने हवाला देते हुए बताया कि 25 जुलाई 2001 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक नजीर की तरह सामने आया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट की यह स्पष्ट राय और निर्णय है कि किसी भी जल सरंचना पर कोई भी अपना अधिकार नहीं जमा सकता। एनजीटी के निर्णय से यदि तेलिया तालाब का अस्तित्व कम हो रहा है या तालाब खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है तो यहां के सामाजिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को आगे आना चाहिए। आपने कहा कि मुझे यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि यह गरीब तेली समाज ने लोगों के पेयजल के लिए 484 बीघा जमीन इस तालाब के निर्माण के लिए दान में दी और इस तालाब को यहां के धन पशु ज्यादातर तो पी गए हैं और शेष बचा हुआ भी पीने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आपने पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर में कहा कि भारत का असली बैंक रिजर्व बैंक नहीं है बल्कि वे भूजल भंडार हैं जिनके संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी है जल ही नहीं रहेगा तो यह बैंक किस काम के। आपने कहा कि जब से विकास की परिभाषा बदली है लोगों ने अपनी जीवन शैली ही बदल दी और उसका सबसे ज्यादा नुकसान जल संरचनाओं का हुआ है।
मंदसौर निप्र विश्व विख्यात जल संवर्धक और भू -गर्भ जल विशेषज्ञ अंतरराष्ट्रीय मैक्सेसे सम्मान प्राप्त डॉ. राजेंद्र सिंह ने अपने मंदसौर प्रवास के दौरान पत्रकारों से चर्चा करते हुए नगर के दो बड़े पेयजल स्रोत शिवना नदी और तेलिया तालाब पर अपनी राय देते हुए कहा कि शिवना नदी में बढ़ रही जलकुंभी का मूल कारण शहर भर का गंदा मल मूत्र युक्त पानी का शिवना नदी में मिलना है इस वजह से नदी के पानी में नाइट्रोजन ज्यादा हो गया है।
आपने कहा कि जलकुंभी की समस्या से मुक्ति का सबसे बड़ा उपाय यह है कि नदी में जमी हुई गाद को हटाया जाए।और यह भी ध्यान रखा जाए कि शहर का एक भी गंदा नाला शिवना नदी में ना मिले। इसके लिए शासकीय एजेंसियों के साथ ही नगर के सेवाभावी संगठनों एनएसएस, एनसीसी के विद्यार्थियों को एक जन चेतना का अभियान चलाना चाहिए। आपने कहा कि मुझे यह इस तथ्य से अवगत कराया गया है कि लगभग 55 किलोमीटर लंबी शिवना नदी में 30 से अधिक स्टाप डेम बने हुए हैं । शिवना का अस्तित्व इसीलिए खत्म हो रहा है कि इन स्टाप डेमो के स्थान के चयन ठीक नहीं हुए हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. राजेंद्र सिंह ने अपने प्रवास के दौरान फील्ड विजिट में शिवाना के कई मुहानों का भी अवलोकन किया है।
तेलिया तालाब पर हाल ही में एनजीटी के निर्णय को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि एनजीटी का निर्णय अंतिम नहीं है इसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट है। अपने हवाला देते हुए बताया कि 25 जुलाई 2001 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक नजीर की तरह सामने आया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट की यह स्पष्ट राय और निर्णय है कि किसी भी जल सरंचना पर कोई भी अपना अधिकार नहीं जमा सकता। एनजीटी के निर्णय से यदि तेलिया तालाब का अस्तित्व कम हो रहा है या तालाब खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है तो यहां के सामाजिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को आगे आना चाहिए। आपने कहा कि मुझे यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि यह गरीब तेली समाज ने लोगों के पेयजल के लिए 484 बीघा जमीन इस तालाब के निर्माण के लिए दान में दी और इस तालाब को यहां के धन पशु ज्यादातर तो पी गए हैं और शेष बचा हुआ भी पीने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
आपने पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर में कहा कि भारत का असली बैंक रिजर्व बैंक नहीं है बल्कि वे भूजल भंडार हैं जिनके संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी है जल ही नहीं रहेगा तो यह बैंक किस काम के। आपने कहा कि जब से विकास की परिभाषा बदली है लोगों ने अपनी जीवन शैली ही बदल दी और उसका सबसे ज्यादा नुकसान जल संरचनाओं का हुआ है।