Friday, April 26th, 2024 Login Here
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नई दिल्ली। कानून मंत्रालय की सुस्ती या जानबूझकर की गई देरी की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों को बड़ी राहत मिल गई है। चुनाव आयोग चाहकर भी मतदान के दिन अखबारों में विज्ञापन देने से राजनीतिक दलों को नहीं रोक सकेगा। मतदान के दिन चुनावी विज्ञापनों पर रोक लगाने संबंधी चुनाव आयोग का प्रस्ताव कानून मंत्रालय के पास लंबित पड़ा है।
मतदान के दिन अखबारों में चुनावी विज्ञापनों पर रोक के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की जरूरत है। यह अब इस लोकसभा में संभव नहीं है, क्योंकि उसका कार्यकाल तीन जून को खत्म हो जाएगा। अब अप्रैल-मई में आम चुनाव बाद गठित होने वाली 17वीं लोकसभा में ही इस पर कुछ फैसला होगा।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि बजट सत्र की अवधि कम होने और आम सहमति के अभाव में कानून मंत्रालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन संबंधी प्रस्ताव कैबिनेट के सामने पेश ही नहीं किया। मीडिया में मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार और मतदान के दिन अखबारों में चुनावी विज्ञापनों पर रोक के लिए एक समिति को कानून में बदलाव का मसौदा तैयार किया गया था।
समिति ने प्रिंट मीडिया को भी जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 के तहत लाने की सिफारिश की है। इस सिफारिश के लागू होने पर मतदान के दिन अखबारों में राजनीतिक दलों के विज्ञापनों पर रोक लग जाएगी। अभी सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चुनाव के 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार पर रोक है।
चुनाव आयोग ने 2016 में सरकार से चुनाव संबंधी कानून में संशोधन कर इलेक्ट्रानिक मीडिया की तरह ही प्रिंट मीडिया में भी चुनाव की तारीख से 48 घंटे पहले राजनीतिक विज्ञापनों पर रोक लगाने की मांग की थी। 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने मामला दर मामला मतदान के दिन समाचार पत्रों में राजनीतिक विज्ञापनों पर रोक लगा दिया था।

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