Friday, May 3rd, 2024 Login Here
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हर साल सांप काटने से औसत तीस लोगों की होती है मौत लेकिन ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर नहीं है टीका लगाने की व्यवस्था
मंदसौर जनसारंगी।
 बरसात का मौसम शुरू होते ही जिले भर में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सांपों का डर अभी से सताने लगा है। शनिवार रविवार की रात सीतामऊ के खेड़ाखेड़ा में भी एक व्यक्ति की सांप के काटने से मौत हो गई। हर साल बारिश के मौसम में सांप काटने से औसत तीस लोगों की मौत होती है। इधर बात करें मौत के कारणों की तो  एक कारण जिले में चिकित्सकों की कमी भी है। जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटी स्नेक वैनन तो मौजूद है, मगर इसे लगाने वाले विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं होने से जिला अस्पताल की दूरी तय करने में ही अधिकांश मरीजों की जान गई है।  
शनिवार रविवार की रात खेताखेड़ा में सुनील डबकरा नामक युवक को सांप ने काट लिया। जिससे उसकी मौत हो गई। साल दर साल जहरीले सांप के डसने से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 2009 से 2020 तक उपलब्ध लगभग तीन सौ लोगों की जान अभी तक जा चुकी है। सांप के डसने के सबसे ज्यादा मामले बारिश में होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटी स्नेक वैनन इंजेक्शन उपलब्ध होने के बाद भी पीडित की जान बचाने में स्वास्थ्य विभाग अक्षम है। स्वास्थ्य केंद्रों पर इंजेक्शन लगाने के लिए चिकित्सक ही नहीं है। मजबूरी में मरीज को जिला अस्पताल जाना पड़ता है। जिले के दूरस्थ गांवों से जिला मुख्यालय की औसत दूरी 100-120 किमी है। इतनी दूरी तय करने में सांप का जहर पीडि़त को पूरी तरह अपनी चपेट में ले रहा है। स्थिति यह है कि तहसील मुख्यालयों पर भी सर्पदंश के मरीजों का उपचार नहीं हो रहा है।
कंपाउंडर या नर्स नहीं कर सकते इलाज
डॉक्टरों की मानें तो सर्पदंश से पीडित को कितनी मात्रा में दवा का इंजेक्शन देना है, यह काटने वाले सांप की प्रजाति पर निर्भर करता है। मरीज द्वारा बताए अनुसार ही चिकित्सक सांप की प्रजाति तय करते हैं। उसके बाद दवा की मात्रा का निर्धारण होता है। एंटी स्नेक वैनन का उपयोग कंपाउंडर या नर्स नहीं कर सकते हैं। इसलिए मरीज को जिला अस्पताल लाना पड़ रहा है।
अंततः झाड़-फूंक पर भी भरोसा
अभी भी कई जगहों पर जागरुकता का अभाव नजर आ रहा है। झाडफूंक पर लोग भरोसा करते हैं। कई मामलों में सांप काटने के बाद झाड़-फूंक से लोग बच जाते हैं। इसका कारण है सांप का जहर शरीर में नही उतरना या फिर सांप जहरीला नहीं होना या किसी और जानवर का काटना होता है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी भी लोगों को झाड़-फूंक की तरफ प्रेरित कर रही है। इसका परिणाम भी मौत ही होता है। कुछ मामलों में सांप जहरीला नहीं होने या शरीर में कम मात्रा में जहर पहुंचने से पीडि़त बच जाता है तो लोग झाड़-फूंक को सही मानने लगते हैं।
जहर से ज्यादा मौतें हार्ट अटैक से
चिकित्सकों के अनुसार जिले में पाए जाने वाली सांप की प्रजातियों में से 90 प्रश सांप जहरीले नहीं होते हैं। अधिकांश मामलों में सर्पदंश से पीडित की मौत घबराहट या हाट अटैक से हो जाती है। वर्षाकाल में 15 जून से 15 सितंबर के दौरान सांप डसने के मामले ज्यादा होते हैं। बारिश का पानी बिलों में घुसने से या उमस के कारण सांप बाहर निकलते हैं।
सर्पदंश में यह करें उपाय
- सर्पदंश वाले स्थान को अच्छे पानी से धोकर हल्का चीरा लगाएं और खून निकाले जब तक काला खून निकले निकलने दें।
- सर्पदंश से पीडित स्थान से कुछ ऊपर रस्सी या रुमाल कसकर बांध दें, ताकि जहर नहीं फैल सके।
- पीडित व्यक्ति को तत्काल अस्पताल लेकर पहुंचें।
- पीडित को दूध, काफी तथा चाय पिलाते रहें।
- पीडित व्यक्ति को किसी भी स्थिति में नींद नहीं निकालने दें।

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