Friday, May 3rd, 2024 Login Here
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शासन के आदेश को शिक्षा विभाग ने कागज समझकर कर दिया अनदेखा
मंदसौर जनसारंगी।
 जिले में अतिगरीब, पन्नी बिनने वाले और वे विद्यार्थी जो स्कूल छोड़ चुके है। वे पढ़ाई से वंचित ना रहे इसके लिए शासन ने अलग से ऐसे बच्चों को चिह्ंित कर अलग से छात्रावास खोलकर पढ़ाई करवाने के आदेश दिए है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अभी तक शिक्षा विभाग ऐसे बच्चों को चिह्ंित करना तो दूर छात्रावास खोल ही नहीं पाए है। ऐसा भी नहीं कि यह आदेश इस साल आया हो। हर साल यह आदेश जुलाई माह में आता है और शिक्षा विभाग के अधिकारी कागज समझकर उसे पढक़र भी अनदेखा कर देते है। जिसके कारण वे बच्चे पढ़ाई से दूर है। इसका कारण है भोपाल से सिर्फ आदेश आना, रुपया नहीं। मिली जानकारी के अनुसार फिलहाल अपने स्तर पर रुपयों की व्यवस्था कर इस योजना को क्रियान्वयन करना होता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आदेश का पालन करने के बाद रुपया आए या नहीं। इसकी कोई गारंटी नहीं है। गरोठ में एक शिक्षक ने अपने रुपयों से निर्धन बच्चों के लिए व्यवस्था की। लेकिन उसे इसकी राशि नहीं मिली। मिली जानकारी के अनुसार इसकी शिकायत सीएम हेल्पलाईन में भी की गई। लेकिन न रुपया मिला और न ही इंसाफ।
डाटा भी नहीं स्कूल के जिम्मेदारों के पास
पिछले साल की बात करें तो अधिकारियों ने आदेश के मुताबिक सभी अधिकारियों को निर्देश दिए कि ऐसे बच्चों की सूची दें। तो जिले में एक भी शिक्षा अधिकारी ऐसे बच्चों की सूची नहीं दे सकें। और अब ऐसे बच्चों को चिह्ंित करने के लिए काम शुरु करने की बात कही।
1 लाख 99 हजार 853 को ही मान लिया पूरे
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार पिछले साल छह वर्ष से लेकर 14 वर्ष के जिले में सरकारी से लेकर निजी स्कूलों में एक लाख 99 हजार 853 विद्यार्थी अध्ययनरत थे। इसमें से सरकारी स्कूल में 83 हजार 709 विद्यार्थी है। वहीं निजी एक लाख 15 हजार 484 है और 600 से अधिक केंद्रीय विद्यालय में अध्ययनरत थे। विभागीय अधिकारियों ने इस आंकड़े के अनुसार ही मान लिया है कि जिले में ऐसा कोई भी बच्चा नहीं जिसने स्कूल छोड़ दिया हो और या फिर गरीब वर्ग का या पन्नी बनने वाला हो और स्कूल नहीं आता हो।
सभी जिलों में होना अनिवार्य है
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार सभी जिला मुख्यालयों पर इस तरह का छात्रावास होना अनिवार्य है। जहां इस कैटेगरी के बच्चों को रख कर पढ़ाई करवाई जा सके। इसका पूरा खर्च शासन द्वारा किया जाना है। अधिकारियों की माने तो इस तरह का छात्रावास आसपास जिलों में भी नहीं है। सभी अधिकारी हर साल केवल आदेश देखकर जिम्मेदारी पूरी कर लेते है।

Chania