Friday, May 3rd, 2024 Login Here
मंदसौर। राजमार्गों पर दुर्घटनाएं रोकने के लिए की गई कवायद के बाद सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कुछ सुझाव भी दिए थे। इसमें कहा गया था कि सडक़ दुर्घटना के बाद पुलिस को उसकी वैज्ञानिक तरीके से जांच करना चाहिये ताकि इस तरह का दोहराव नहीं हो। जल्द ही जांच पूरी कर कोर्ट में प्रकरण पेश करना चाहिए। पर हो इसका उल्टा रहा हैं। पुलिस की जांच अभी भी पुरातन परंपरा में ही चल रही हैं। दुर्घटना के कई मामलों में मौके पर ही आरोपित पकडने व वाहन जब्ती होने के बाद भी एफआइआर दर्ज करने में सात से आठ दिन लगा दिए गए हैं। इसका फायदा बाद में कोर्ट में क्लेम देने वाली कंपनी को मिलता हैं। न्यायालय में भी इस तरह के केस के निपटारे में कम से कम दो साल लगते हैं अधिकतम कोई समय सीमा नहीं हैं। मंदसौर के न्यायालय में ही इस तरह के मामलों के कई केस लंबित हैं।
मुख्य मार्गों पर दुर्घटनाएं रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रोड सेफ्टी कमेटी द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि देश में सडक दुर्घटनाओं के कारण ब?ी संख्या में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। सडक हादसों को रोकने के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग सडक सुरक्षा समितियां बनाई गई हैं जो अलग तरह से काम करती हैं। इन्हें एकरूपता देने और सडक हादसों तथा इनके बचाव को लेकर सख्त कदम उठाए जाने के लिए देश के हर जिले में एक जैसी सडक़ सुरक्षा समिति होना जरूरी है जो न सिर्फ सडक हादसों की समीक्षा करेगी बल्कि उन्हें रोकने के लिए भी कदम उठाएगी। राज्य तथा केंद्र को अवगत कराएगी। हादसों से जुडी रिपोर्ट सार्वजनिक भी करेगी। इस पर केंद्र और राज्य स्तर पर निगरानी रखने के साथ ही जिन स्थानों पर लगातार हादसे हो रहे हैं, वहां पर इसकी रोकथाम के लिए विस्तृत योजना भी तैयार की जाएगी।
न तरीका बदला, न विशेष ट्रेनिंग
तरीका बदला हैं और न ही यातायात पुलिस को कोई विशेष ट्रेनिंग दी गई हैं। पुलिस अभी भी हर दुर्घटना के बाद उसी परंपरागत तरीके से ही जांच-प?ताल में लगी रहती हैं। वैसे तो दुर्घटना से जुड़े अधिकतर मामलों में जिले के सभी थानों में पदस्थ पुलिसकर्मी का रवैया टामलटूल वाला ही रहता है। एक नहीं कई उदाहरण है जिसमें घटनास्थल पर आरोपित भी मिल गए, दुर्घटना करने वाला वाहन भी जब्त हो गया। इसके बाद भी पुलिस को एफआइआर करने में सात से आठ दिन लग गए। तो कुछ मामलों में एक माह तक का भी समय लग गया। इन मामलों की केस डायरी में देरी होने का कोई उचित कारण नहीं बताया जाता है और फिर सामने वाली कंपनी क्लेम के समय इन्हीं खामियों का फायदा उठाते हुए क्लेम देने में आनाकानी करती हैं।
मुख्य मार्गों पर दुर्घटनाएं रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रोड सेफ्टी कमेटी द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि देश में सडक दुर्घटनाओं के कारण ब?ी संख्या में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं। सडक हादसों को रोकने के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग सडक सुरक्षा समितियां बनाई गई हैं जो अलग तरह से काम करती हैं। इन्हें एकरूपता देने और सडक हादसों तथा इनके बचाव को लेकर सख्त कदम उठाए जाने के लिए देश के हर जिले में एक जैसी सडक़ सुरक्षा समिति होना जरूरी है जो न सिर्फ सडक हादसों की समीक्षा करेगी बल्कि उन्हें रोकने के लिए भी कदम उठाएगी। राज्य तथा केंद्र को अवगत कराएगी। हादसों से जुडी रिपोर्ट सार्वजनिक भी करेगी। इस पर केंद्र और राज्य स्तर पर निगरानी रखने के साथ ही जिन स्थानों पर लगातार हादसे हो रहे हैं, वहां पर इसकी रोकथाम के लिए विस्तृत योजना भी तैयार की जाएगी।
न तरीका बदला, न विशेष ट्रेनिंग
तरीका बदला हैं और न ही यातायात पुलिस को कोई विशेष ट्रेनिंग दी गई हैं। पुलिस अभी भी हर दुर्घटना के बाद उसी परंपरागत तरीके से ही जांच-प?ताल में लगी रहती हैं। वैसे तो दुर्घटना से जुड़े अधिकतर मामलों में जिले के सभी थानों में पदस्थ पुलिसकर्मी का रवैया टामलटूल वाला ही रहता है। एक नहीं कई उदाहरण है जिसमें घटनास्थल पर आरोपित भी मिल गए, दुर्घटना करने वाला वाहन भी जब्त हो गया। इसके बाद भी पुलिस को एफआइआर करने में सात से आठ दिन लग गए। तो कुछ मामलों में एक माह तक का भी समय लग गया। इन मामलों की केस डायरी में देरी होने का कोई उचित कारण नहीं बताया जाता है और फिर सामने वाली कंपनी क्लेम के समय इन्हीं खामियों का फायदा उठाते हुए क्लेम देने में आनाकानी करती हैं।