Friday, May 3rd, 2024 Login Here
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मंदसौर। होली के बाद पर्वों की श्रृंखला लगातार चल रही है और इसी क्रम में 4 अप्रैल गुरुवार को दशा पूजन का पर्व नगर में भी श्रद्धालु महिलाओं ने पूर्ण समर्पित श्रद्धा के भाव और उत्साह को प्रदर्शित करते हुए मनाया।
 नगर का कोई क्षेत्र ऐसा शेष नहीं था जहां दशा पूजन पर्व का वातावरण दिखलाई नहीं दे रहा हो। हर आवासीय क्षेत्र में जहां शिवालय है पीपल और बड़  का वृक्ष है वहां मानो आज महिलाओं का मेला सा लग रहा था।प्रातः काल की वेला से ही महिलाएं सज धज कर हाथ में पूजा की थाली लिए दशा पूजन के लिए आवागमन करते हुए दिखाई दे रही थी।
 शिव मंदिरों में महिलाओं की भारी भीड़ एकत्र थी। कई जगहों पर तो उन्हें अपनी बारी आने का इंतजार करना पड़ रहा था। जनकुपुरा खानपुरा व शहर क्षेत्र तो नगर का पुराना आवासीय क्षेत्र है ही जहां इस पर्व की रौनक विशेष रहती है साथ ही नई आबादी और सभी कालोनियों में भी दशा पूजन पर्व का पूरा वातावरण देखा गया। अनेक नए मंदिरों का निर्माण हुआ है जहां दशा पूजन पर्व के लिए महिलाएं कतार बद्ध होकर एकत्र हो रही थी। मुख्य रूप से जहां ज्यादा भीड़ देखी गई उन स्थानों में कालका माता मंदिर परिसर सम्राट मार्केट, दवा मार्केट के पास स्थित मंदिर, जीवागंज पिपली वाली माता जी का मंदिर जनकुपुरा का चंवरा का मंदिर, जगदीश मंदिर, उधर अमलेश्वर महादेव मंदिर, विश्व पति शिवालय, नीलकंठ महादेव मंदिर,अभिनंदन नगर स्नेह नगर संजीत रोड की कालोनियों स्टेशन क्षेत्र और इनके अतिरिक्त जहां पीपल और वट के वृक्ष थे वहां भी महिलाओं ने श्रद्धापूर्वक दशा पूजन का यह पर्व मनाया।  इस दिन अपने घर परिवार की दशा व दिशा अच्छी बनी रहे सुख शांति समृद्धि का सृजन होता रहे इसी मनोभाव से महिलाएं व्रत रखती हैं।पूजा करती हैं वृक्ष की परिक्रमा करती हैं,उन्हें रक्षा सूत्र बांधती है। अपने गले में वेर पहनती है।और विशेष रूप से दशा पूजन की कहानी को सुनने व सुनाने का भी विधान है जो इस पूजा पर्व का अभिन्न अंग होता है।
राजा नल और रानी दमयंती की कहानी सुनाई जाती है जिसका सार  यह है कि राजा नल ने अपनी रानी दमयंती के गले में जब पीला सूत्र बंधा देखा तो उसकी उपेक्षा करते हुए गले से निकाल दिया। राजा के इस कृत्य से राजा और राज्य की स्थिति दुर्दशाग्रस्त हो गई राजा और रानी इतने कष्ट में अपने दिन व्यतीत करने लगे कि सारा राज्य वैभव खत्म हो गया। उन्हें अनेक तरह की पीढ़ा और कष्टों का सामना करना पड़ा एक साल बाद  जब फिर से दशा पूजन का पर्व आया और रानी दमयंती ने श्रद्धापूर्वक दशा माता की पूजा की व्रत रखा अपने गले में पीला सूत्र बांधा तब फिर से दशा माता उन पर प्रसन्न हुई और उनके राज्य वैभव और सारा सुख उन्हें वापस मिल गया  तो इस कहानी में यही कहा जाता है की दशा माता दयालु भी है उपेक्षा के बाद भी यदि श्रद्धा पूर्वक राजा रानी ने पूजा की तो वे फिर से  प्रसन्न हो गई।इसी मनोभाव के साथ महिलाएं इस कहानी को सुनती है और सुनाती है।और इस व्रत विधान का पूरा महत्व इस कहानी से ही प्रदर्शित होता है।
 तो कहा जा सकता है कि नगर में होली पर्व के बाद जो लगातार पर्वों की ओर त्योहारों की श्रृंखला चलती है उसमें दशा माता की पूजन का यह पर्व बहुत ही उत्साह के साथ श्रद्धा के भाव से समर्पित होकर महिलाओं ने मनाया पूरे नगर में आज उत्सव जैसा वातावरण था सनातन परंपरा के इस पर्व का प्रभाव पूरे नगर में व्यापक रूप में देखा गया। बताया जाता है कि पहले के वर्षों की तुलना में अब इस पर्व पूजन में महिलाओं की संख्या अधिक देखी जा रही है और लगभग सभी शिवालयों में श्रद्धालु महिलाओं की भीड़ भीड़ उमड़ी।

Chania