Friday, May 3rd, 2024 Login Here
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मंदसौर। पुलिस विभाग में दस साल से जीडी में संविलियन पर रोक लगी है। कुक, नाई, धोबी, मोची, स्वीपर जैसे करीब प्रदेश में 5500 पुलिसकर्मियों का आरक्षक जीडी (जनरल ड्यूटी) में संविलियन करने की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। आरक्षक ट्रेड कैडर से भर्ती हुए ये पुलिसकर्मी तकरीबन 5 साल की सेवा पूरी कर जिला पुलिस के सहयोगी बनने के पात्र हो गए हैं। दस साल से इनके जीडी में संविलियन पर रोक लगी है, जबकि पड़ोसी राज्यों में संविलियन कर बल की कमी पूरी की जा रही है। ऐसे पुलिस वाले मंदसौर जिले में भी करीब पचास से साठ है।  ट्रेड में भर्ती हुए इन पुलिसकर्मियों को प्रमोशन तो मिल रहा है, लेकिन उन्हें काम कुक, नाई, धोबी, मोची, स्वीपर के ही करने पड़ रहे हैं। इनमें कई ऐसे भी हैं, जो पदोन्नति पाकर सब इंस्पेक्टर स्तर तक पहुंच गए, लेकिन अफसरों के घर पर काम कर रहे हैं। अब पुलिस वालों ने भी इसको लेकर मोर्चा खोल दिया है। करीब 270 सिपाही हवलदारों ने हाईकोर्ट की शरण ली है। जबलपुर हाई कोर्ट में इन 270 पुलिसकर्मियों ने सामूहिक याचिका न करते हुए इंडिविजुअल पिटिशन दायर की हैं। हाईकोर्ट ने पहले मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल को तय की है।
औसतन 45 हजार रुपए महीने वेतन

आरक्षक ट्रेड से भर्ती हुए नए सिपाही की तनख्वाह करीब 25000 रुपए होती है। इसी कैडर में पदोन्नत होकर एसआई बने पुलिसकर्मी को करीब 75 हजार रुपए वेतन मिल रहा है। सिपाही और एसआई के बीच सैकड़ों पुलिसकर्मी हवलदार और एएसआई भी बने हैं, जिनकी तनख्वाह अलग-अलग है। यदि इन 5500 पुलिसकर्मियों का बगैर भत्ते जोड़े भी औसत वेतन 45000 रुपए महीना माना जाए तो इन पर सरकार हर महीने करीब 24.75 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इसके बाद भी ये केवल अफसरों-नेताओं के बंगलों पर काम कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने दिए थे निर्देश, फिर भी नहीं बढ़ी फाइल

पदभार संभालने के बाद पुलिस मुख्यालय पहुंचे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पुलिसकर्मियों के प्रमोशन को लेकर स्पष्ट निर्देश दिए थे। इस दौरान ये भी कहा था कि ऐसी योजनाओं का भी क्रियान्वयन किया जाए, जिनसे सरकार पर वित्तीय भार नहीं बढ़े।
125 जनप्रतिनिधियों ने की मुख्यमंत्री से सिफारिश

आरक्षक ट्रेड परिवार के सदस्यों का कहना है कि प्रदेशभर के 50 विधायक, मंत्री और सांसद इस संविलियन/स्थानांतरण के पक्ष में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सिफारिश कर चुके हैं। इनमें मौजूदा सरकार के 50प्रश जनप्रतिनिधि शामिल हैं।
नियम बनते-बिगड़ते चले गए, 10 साल से रोक

23 अक्टूबर 1993 में तत्कालीन डीजीपी आरपी शर्मा ने एक आदेश निकालकर ट्रेडमैन के संविलियन के लिए 5 साल का सेवाकाल जरूरी बताया।
19 जून 2013 को जारी हुए पत्र के आधार पर तत्कालीन डीजीपी नंदन दुबे ने संविलियन पर रोक लगा दी।
28 अप्रैल 2016 को एडीजी विसबल केएन तिवारी ने दोबारा संविलियन शुरू करने के लिए शासन से अनुशंसा की।
4 दिसंबर 2018 को अवर सचिव गृह ने एडीजी विसबल से सवाल किया कि क्या संविलियन से वित्तीय भार बढ़ेगा?
4 जनवरी 2019 को इसका जवाब डीआईजी विसबल ने जवाब दिया कि वित्तीय भार नहीं पड़ेगा।
24 मार्च 2022 को तत्कालीन गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने नोटशीट पर लिखा कि पूर्वानुसार संविलियन आदेश जारी करना चाहिए।

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