Friday, May 3rd, 2024 Login Here
शहर में निकली झेल, दशपुर कुंज में लगा मेला
मंदसौर निप्र।
मंदसौर महिलाओं और युवतियों ने गणगौर उत्सव बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया।इस दौरान महिलाओं ने माता पार्वती की पूजा की। शाम होते ही शहर में कई जगहों से गणगौर की झैल निकली जो विभिन्न मार्गो से होती हुई दशपुर कुंज पहुंची जहां महिलाओं ने ढोल की थाप पर नृत्य किए।
हिंदू पंचांग के अनुसार यह गणगौर पूजा चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रथम यानी धुल्हंडी से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि यानी तीसरी नवरात्र को पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने सभी महिलाओं को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। तभी से इस पूजा को मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी के चलते महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहन कर 16 श्रृंगार कर पूजा अर्चना की और गीत गाए गए। सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र की कामना की। घरों और मंदिरों में महिलाओं ने मिट्टी से बनाई गई गणगौर और ईसरजी की प्रतिमाओं की पूजा की। साथ ही गणगौर माता को मेहंदी, हल्दी, ज्वारे, चुनरी भेंट कर मैदा आटे के बने मीठे तीखे गुणे का भोग लगाया गया।
श्रृंगार के प्रतीक इस त्योहार पर महिलाएं दुल्हन की तरह सजीं। सिर पर मटकी रख पानी लेने पहुंची। समूह बनाकर गणगौर माता के गीत गाए। फिर गणगौर माता की पूजा अर्चना कर पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। इस दौरान महिलाओं ने गौरी माता की कथा सुनाई।
ऐसे होती है पूजा
गणगौर की पूजा करने से पहले महिलाएं सोलह श्रृंगार कर दुल्हन की तरह सजती हैं। फिर सभी महिलाएं ग्रुप में सबसे पहले पास के किसी बगीचे में पानी भरने के लिए जाती हैं। इस दौरान सिर पर मटकी रखकर गीत गाए जाते हैं। महिलाएं बगीचे से फूल पत्ती तोड़कर पूजा के लिए पहुंचती हैं। जहां ईसर गणगौर पूजा के लिए स्थान बनाया जाता है। महिलाएं मिट्टी से बनी गणगौर की पूजा करती हैं। उसके बाद उनके पीछे सिंदूर मेहंदी और काजल की 16-16 बिंदिया लगाई जाती हैं। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन गाती हैं। यह कथा करके पूजा पूरी की जाती है।
मंदसौर निप्र।
मंदसौर महिलाओं और युवतियों ने गणगौर उत्सव बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया।इस दौरान महिलाओं ने माता पार्वती की पूजा की। शाम होते ही शहर में कई जगहों से गणगौर की झैल निकली जो विभिन्न मार्गो से होती हुई दशपुर कुंज पहुंची जहां महिलाओं ने ढोल की थाप पर नृत्य किए।
हिंदू पंचांग के अनुसार यह गणगौर पूजा चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रथम यानी धुल्हंडी से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि यानी तीसरी नवरात्र को पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने सभी महिलाओं को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। तभी से इस पूजा को मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी के चलते महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहन कर 16 श्रृंगार कर पूजा अर्चना की और गीत गाए गए। सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र की कामना की। घरों और मंदिरों में महिलाओं ने मिट्टी से बनाई गई गणगौर और ईसरजी की प्रतिमाओं की पूजा की। साथ ही गणगौर माता को मेहंदी, हल्दी, ज्वारे, चुनरी भेंट कर मैदा आटे के बने मीठे तीखे गुणे का भोग लगाया गया।
श्रृंगार के प्रतीक इस त्योहार पर महिलाएं दुल्हन की तरह सजीं। सिर पर मटकी रख पानी लेने पहुंची। समूह बनाकर गणगौर माता के गीत गाए। फिर गणगौर माता की पूजा अर्चना कर पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। इस दौरान महिलाओं ने गौरी माता की कथा सुनाई।
ऐसे होती है पूजा
गणगौर की पूजा करने से पहले महिलाएं सोलह श्रृंगार कर दुल्हन की तरह सजती हैं। फिर सभी महिलाएं ग्रुप में सबसे पहले पास के किसी बगीचे में पानी भरने के लिए जाती हैं। इस दौरान सिर पर मटकी रखकर गीत गाए जाते हैं। महिलाएं बगीचे से फूल पत्ती तोड़कर पूजा के लिए पहुंचती हैं। जहां ईसर गणगौर पूजा के लिए स्थान बनाया जाता है। महिलाएं मिट्टी से बनी गणगौर की पूजा करती हैं। उसके बाद उनके पीछे सिंदूर मेहंदी और काजल की 16-16 बिंदिया लगाई जाती हैं। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन गाती हैं। यह कथा करके पूजा पूरी की जाती है।