नये
संशोधित नागरिकता कानून पर अब पूरी लड़ाई जन अवधारणा (पब्लिक परसेप्शन) पर
आकर टिक गई है। सरकार की तरफ से भाजपा का कहना है कि यह कानून पाकिस्तान,
अफगानिस्तान व बंगलादेश के उन सताये गये व प्रताड़ित हिन्दुओं व अन्य गैर
मुस्लिम नागरिकों की मदद के लिए है जिनके लिए पूरी दुनिया में एकमात्र भारत
देश ही स्वाभाविक रूप से शरण लेने के लिए बचता है क्योंकि ये सभी देश एक
समय में उस अखंड भारत के भाग रहे हैं जो अंग्रेजों के सत्ता संभालने से
पूर्व था। ब्रिटिश हुकूमत हिन्दोस्तान में विधिवत रूप से 1860 में तब शुरू
हुई थी जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत की हुकूमत ब्रिटेन की तत्कालीन
महारानी विक्टोरिया को करोड़ों पौंड में बेची थी। चूंकि 1947 में
हिन्दोस्तान का बंटवारा हिन्दू-मुसलमान के आधार पर दो देशों भारत व
पाकिस्तान के बीच हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली की छूट देते हुए हुआ
था। अत: हिन्दोस्तान से अलग हुए देशों के मुस्लिम राष्ट घोषित हो जाने पर
वहां बचे हिन्दुओं पर अत्याचार होने की सूरत में उनके भारत में आने पर
उन्हें अपनाने में किसी प्रकार की अड़चन पेश नहीं आनी चाहिए जिस वजह से 2019
के दिसम्बर महीने में मौजूदा भाजपा सरकार ने पुराने नागरिकता कानून में
संशोधन किया है परन्तु इसके साथ यह भी कटु सत्य है कि इन देशों में रहने
वाले सभी धर्मों र्के नागरिकों की सुरक्षा और उनके जनाधिकार व मानवीय
मूल्यों की रक्षा के दायित्व से भी इनकी सरकारें संविधानत: बन्धी हुई हैं
मगर भारत ने नागरिकता कानून में संशोधन करके सुनिश्चित कर दिया है कि
धार्मिक उत्पीड़न की सूरत में इसके दरवाजे इन तीन देशों के हिन्दू नागरिकों
के लिए खुले रहेंगे। दूसरी तरफ इसके ठीक विपरीत कांग्रेस व अन्य समाजवादी
विचारधारा के धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले राजनीतिक दलों का मत है कि यह
संशोधित कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बंगलादेश? में सक्रिय उन इस्लामी
जेहादी व तालिबानी ताकतों को घर बैठे ही अपने देश के गैर मुस्लिमों पर और
अधिक अत्याचार करने व उन्हें सताये जाने का हथियार देता है और वहां की
सरकारों को इनके राजनीतिक दबाव में आने के लिए प्रेरित करता है जिससे वे
गैर मुस्लिमों को भारत की तरफ धकेल सकें और अपनी- अपनी आबादी का पूर्ण
इस्लामीकरण कर सकें। विपक्ष की राय में भारत सरकार का यह कानून पिछली
सदियों के कबायली नमूने का ऐसा फरमान साबित हो सकता है जो भारतीय
उपमहाद्वीप का हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर पुन: ध्रुवीकरण कर सकता है और
भारत की सकल सामरिक, व्यापारिक व वाणिज्यिक शक्ति को क्षीण करते हुए इसकी
वित्तीय ताकत पर उल्टा असर डाल सकता है क्योंकि पाकिस्तान को छोड़ कर
अफगानिस्तान व बंगलादेश?इसके परम मित्र देशों में गिने जाते हैं। इस कानून
से एशियाई स्तर पर हिन्दू-मुस्लिम आबादी का जमावड़ा होगा और भारत की इस
नीति का लाभ सबसे ज्यादा उसका पड़ोसी प्रतिद्वंद्वी देश चीन उठाने से नहीं
चूकेगा और इन तीनों ही देशों में वह अपनी आर्थिक ताकत के बूते पर भारत के
लिए नई मुश्किलें खड़ी करेगा। इसके अलावा अन्तर्राष्टीय स्तर पर भारत की
धर्मनिरपेक्ष प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगेगा और विश्व की लोकतान्त्रिक
ताकतें भारत में विश्वास करने में अचकचाहट महसूस करने लगेंगी। उदार और
जवाबदेह लोकतन्त्र को भारत की सबसे बड़ी ताकत माना जाता है जिसकी वजह से
यहां राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व की गारंटी विदेशी आर्थिक ताकतों को
जमानत के तौर पर दिखाई देती रही है। अत: अमेरिका द्वारा नागरिकता कानून पर
विरोधी टिप्पणी करने का मतलब सामान्य नहीं माना जा सकता, इसी प्रकार
बंगलादेश ने भी इसका विरोध किया है मगर इससे भी ऊपर विपक्ष ने अब यह सवाल
खड़ा किया है कि क्या भारत की मोदी सरकार इन तीनों देशों के सभी गैर
हिन्दुओं को अपनी नागरिकता प्रदान करेगी? अत: नागरिक रजिस्टर बनने की सूरत
में न केवल साम्प्रदायिक रंग बल्कि क्षेत्रीय रंग भी समाज में कसैलापन
बिखेरेगा क्योंकि दक्षिण भारत में बसे उत्तर भारतीयों को अपने पूर्वजों का
हिसाब-किताब देना होगा और पूर्वी भारत में बसे राजस्थान के मारवाडियों को
अपनी पुरानी बहियों का हिसाब-किताब देना होगा और उत्तर भारत के मैदानी
भागों में बसे पर्वतीय लोगों को अपने मूल स्थानों का ब्यौरा देना होगा।
भारत में आबादी की बसावट के पीछे सांस्कृतिक कारण तो रहे हैं मगर आर्थिक
कारण भी रहे हैं। अत: भावुकता में हमें कोई भी कदम उठाने से पहले सौ बार
सोचना होगा और समग्र राष्टीय हित व राष्टीय प्रतिष्ठा को केन्द्र में
रखना होगा। वैसे झारखंड में आजकल चुनाव हो रहे हैं और सरकार की नीतियों का
जन परीक्षण इन चुनावों में हो जाना चाहिए, जिससे जन अवधारणा का पता भी हमें
चल जायेगा।
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