Sunday, May 5th, 2024 Login Here
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राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत 16 राज्यों की 34 नदियों की सफाई के लिए करीब 5800 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत किया जाना यह बताता है कि केंद्र सरकार गंगा नदी को साफ-सुथरा करने के साथ ही देश की अन्य नदियों को भी स्वच्छ करना चाह रही है। केंद्र सरकार ने इस राशि में से अपने हिस्से के लगभग 2500 करोड़ रुपये विभिन्न् राज्यों को जारी कर दिए हैं, लेकिन यह कहना कठिन है कि इसके बाद नदियों की साफ-सफाई का काम गति पकड़ लेगा। यह संदेह इसलिए है, क्योंकि नदियों को संरक्षित-साफ करने के विभिन्न् अभियानों का अभी तक का अनुभव कोई बहुत अच्छा नहीं रहा है। इसका कारण यह है कि उन विभागों को जवाबदेह नहीं बनाया जा सका है जिन पर नदियों की देखभाल की जिम्मेदारी है। इसके अलावा एक कारण यह भी है कि अपने देश में उस संस्कृति का अभाव दिखता है जो नदियों को साफ-सुथरा रखने में सहायक बन सके। नि:संदेह प्राचीन काल में ऐसी संस्कृति थी और इसी कारण नदियां अभी हाल तक स्वच्छ बनी रहीं, लेकिन बीते कुछ दशकों में नदियों की दुर्दशा ही अधिक हुई है। इस दुर्दशा के लिए उद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ सरकारी तंत्र की सुस्ती भी जिम्मेदार है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में जिस सरकारी तंत्र को यह देखना चाहिए था कि नदियां अतिक्रमण और प्रदूषण से बची रहें, उसने अपना काम सही तरह से नहीं किया। स्थिति इसलिए और अधिक बिगड़ी, क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ-साथ राज्यों के ऐसे बोर्ड कागजी खानापूर्ति ही अधिक करते रहे।
केंद्र और राज्य सरकारें चाहे जो दावा करें, यह नहीं कहा जा सकता कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए बनाई गईं विभिन्न् एजेंसियां अपने हिस्से का काम ईमानदारी से कर रही हैं। इसका एक प्रमाण यह है कि नदियों के किनारे बसे शहरों में स्थापित सीवेज शोधन संयंत्र आधी-अधूरी क्षमता से ही काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना ऐसा कोई उदाहरण पेश नहीं कर सकी है, जो नदियों को संरक्षित करने के मामले में अनुकरणीय साबित हो सके। यह सही है कि गंगा नदी को साफ करने का अभियान कुछ उम्मीद दिखा रहा है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इस अभियान की सफलता का इंतजार लंबा होता जा रहा है। पिछले दिनों यह कहा गया कि अब गंगा वर्ष 2020 के बाद बजाय 2022 में साफ होगी। बेहतर हो कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इस समयसीमा को बढ़ाने की नौबत न आए। इसी के साथ राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना को कारगर बनाने के उपायों पर भी गौर करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही हो सकता है। अतिक्रमण और प्रदूषण से ग्रस्त नदियों को बचाने के लिए जितना सचेत और सक्रिय होने की जरूरत केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ उनकी विभिन्न् एजेंसियों को है, उतना ही समाज को भी है। भारतीय समाज को यह बुनियादी बात समझने में और देर नहीं करनी चाहिए कि नदियों और साथ ही अन्य जलस्रोतों को संरक्षित एवं स्वच्छ रखना एक ऐसा साझा दायित्व है, जिसका निर्वहन नितांत अनिवार्य है।

Chania