Sunday, May 5th, 2024 Login Here
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डॉ. रवींद्र कुमार सोहोनी. प्राचार्य.
शासकीय महाविद्यालय, मन्दसौर.

किसी भी समाज मे भाषा उसकी संस्कृति का अभिन्न अंग होती है. ज्ञान के प्रसार और ज्ञान को अर्थपूर्णता प्रदान करने मे भाषा ही प्रमुख और सशक्त आधार है. परिवर्तन के हर काल मे भाषा प्रभावित होती है. तुलसीदास के समकालीन लेखक ब्रज और अवधी मे अपनी रचनाएँ लिख रहे थे, बाबा तुलसी की दोनों भाषाओं पर गहरी और जबरदस्त पकड़ थी, तुलसी भारतीय साहित्य की आकाशगंगा के एकमात्र ऐसे साहित्यकार है जिन्होंने भाषाओं का प्रयोग नहीं किया अपितु भाषाएँ प्रयोग हेतु बाबा तुलसी के समक्ष नतमस्तक रही है.
श्रीरामचरित मानस की भाषा अवधी है किन्तु मानस के आरम्भ मे संस्कृत श्लोकों का सुन्दरता से प्रयोग किया गया है. पाश्चात्य साहित्य संसार मे शेक्सपीयर को इसलिए याद किया है कि उसनेआंग्ल भाषा को चार हजार से ज्यादा नए शब्द प्रदान कर अंग्रेजी भाषा को समृद्ध किया.
विश्व साहित्य मे बाबा तुलसी एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने खड़ी बोली को नौ हजार पाँच सौ से अधिक नए शब्द प्रदान कर एक अदभुत और दुर्लभ कीर्तिमान रचा. किसी भाषा को इतने अधिक नवीन शब्द प्रदान करने वाला कोई दूसरा साहित्यकार नहीं है. महाकवि तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस भगवान राम के जिस आदर्शवादी चरित्र की स्थापना की है वह पूर्ववर्ती एवं परवर्ती किसी भी रामकाव्य मे दिखलाई नहीं देती है.
तुलसीदास जी ने मानस मे राम के चरित्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि उसमें समस्त संसार के वस्तुवादी जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान मिल जाता है. तुलसीदास जी ने एक ही ग्रन्थ मे भारतीय दर्शन, धर्म, साहित्य और मानवतावादी मूल्यों को जिस प्रकार प्रतिष्ठित किया है वह न केवल श्लाघनीय है अपितु कई अर्थों मे स्तुत्य भी है.
बाबा तुलसी सही अर्थों मे भारतीयता के प्रतीक है, वे उन्होंने मानस मे सजीवता, मार्मिकता, प्रभावोत्पादकता को बड़ी सुझ भुझ से स्थापित किया है. युगदृष्टा तुलसीदास आज भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि वे मानव कल्याण की कामना से सम्पृक्त कवि है. तुलसी जिस काल का प्रतिनिधित्व करते है उस काल मे पाखंडवाद और अंधविश्वास अपने चरम पर था, वे विषमता और अंतर्विरोध के मध्य भारतीय मूल्यों को प्रतिष्ठित कर सद्जीवन का मार्ग प्रशस्त करने मे सफल रहे.
तुलसीदास जी की दृढ़ मान्यता थी कि धर्म की अनेक भूमिकाएँ होती है, जिसमें से एक है सामाजिक संरचना मे अनुशासन की स्थापना करना. सामाजिक  अनुशासन को लेकर उनकी चिंता सतही न होकर अत्यंत गहरी है, और इसी कारण वे अपने आराध्य भगवान राम के माध्यम से समाज मे उदार और उदात्त मूल्यों की स्थापना करते है.
युगदृष्टा बाबा तुलसी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अभिव्यक्ति को सरल और सम्प्रेषणीय बनाने के बाद भी उसे अभिजात स्तर से नीचे नहीं उतरने देते.
तुलसीदास जी का सबसे बड़ा अवदान उनका समन्वयवादी दृष्टिकोण है. श्रीरामचरित मानस मे बाबा ने मानवीय और मानवेत्तर समन्वय का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है. समाज का ऐसा कोई क्षेत्र अथवा दिशा नहीं है जिसके समन्वय की बात तुलसी ने मानस में न की हो.
वनगमन के समय भगवान राम द्वारा अयोध्यावासी समस्त स्त्री  पुरुषों को वापस लौट जाने की विनती के पश्चात वृहनल्ला समाज का चौदह वर्षों तक अयोध्या की सीमा पर राम की प्रतीक्षा करना तथा वनवास पूर्ण कर वापस लौटने पर राम के ही साथ उस वर्ग का   अयोध्या के समाज में वापस लौटने का प्रसंग लिखकर तुलसी ने थर्ड जेंडर को सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान कर समाज मे अदभुत समन्वय स्थापित किया है.
केवट, निषाद राज, माता शबरी, अहल्या, सुग्रीव, जटायु, जामवंत, विभीषण और पवन पुत्र हनुमान जी महाराज को अपने आराध्य श्रीराम के साथ जिस भांति प्रगाढ़ सम्बन्धों मे आबद्ध किया है वह सामाजिक समरसता और समन्वय का अनुपम उदाहरण है. प्रत्येक पात्र का राम के साथ संबधों का जो आधार है वह --भक्ति, प्रेम, समर्पण, प्रतीक्षा, त्याग, लोक मंगल जैसे उदार और उदात्त मूल्यों पर अवलम्बित है. राम का आराध्य शिव को और शिव का आराध्य राम को बताकर तुलसीदास जी ने धार्मिक क्षेत्र मे शैव तथा वैष्णवों  मे धार्मिक समन्वय स्थापित किया.
'सगुणहिं, निर्गुणहिं कछु नही भेदा' लिखकर तुलसीदास सगुण और निर्गुण उपासकों के मध्य समन्वय स्थापित करते है. श्रीरामचरित मानस का मंथन करने पर हमें द्वैत, अद्वैत और विशिष्टा द्वैत का समन्वय देखने को मिलता है जो उस काल की दृष्टि से अत्यंत महत्व का विषय है.
तुलसी 'करम प्रधान विश्व करि राखा ' लिखकर भाग्य और पुरुषार्थ मे समन्वय की बात करते हैं वे यहीं नहीं रुकते --'तुलसी जासि भवितव्यता तैसी मिलै सहाय' 'लिखकर अपने लिखे की पुष्टि करते है.' बिनु पद चलै, सुनै बिनु काना कर बिनु करम करै विधि नाना ' जैसी पंक्तियाँ लिखकर वे नर और नारायण मे भी समनव्य स्थापित करने से नहीं चुकते है. प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार वर्ड्सवर्थ ने लिखा है --"पोएट्री इज़ द स्पॉन्टेनियस ओवरफ्लो ऑफ़ द पॉवरफुल फीलिंग "अर्थात कविता संवेदना से ज़्यादा संवेदना का छलक जाना है. तुलसी का सम्पूर्ण साहित्य इससे भी अधिक है, यही कारण है कि जॉर्ज ग्रियर्सन ने तुलसी को बुद्ध के बाद सबसे बड़ा लोकनायक निरूपित किया है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे महनीय साहित्य मनीषी ने बाबा तुलसी को हिन्दी काव्य मे चमत्कार बताया है. विषमता और अन्तर्विरोध के मध्य श्रीरामचरित मानस के माध्यम से भारतीय मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा स्थापित कर जिस तरह सद्जीवन का मार्ग प्रशस्त किया उससे उऋण नहीं हुआ जा सकता. तुलसीदास जी की दीप्ति हमें आज भी विस्मित करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं.
महाकवि जयशंकर प्रसाद की इन पंक्तियों के साथ..... राम को छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की l
रामचरितमानस कमल जय हो तुलसीदास की ll.
तुलसी जयंती की अनन्त शुभकामनायें.

Chania