Sunday, May 5th, 2024 Login Here
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• बृजेश जोशी
पिता की बीमारी, फिर छोटे-छोटे भाई-बहनों की परवरिश की जिम्मेदारी। ऐसे मुश्किल हालत में हार न मानने वाली एशिया की पहली महिला ट्रक डाईवर होने का तमगा हासिल करने वाली महिला का नाम है पार्वती आर्य। ताज्जुब नहीं , कि वह  गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में नाम दर्ज करवाने के साथ ही भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से भी सम्मानित हुईं। इतना ही नहीं, पार्वतीजी ने चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी नेतृत्व क्षमता को विकसित किया और  मतदाताओं के समर्थन से दो बार जिला पंचायत की सदस्य तथा एक बार उपाध्यक्ष भी बनीं। संवैधानिक अधिकारों का उपयोग कर दर्जनों स्कूल, पंचायत भवन और  बनवाए।
20 अगस्त, 1957 को मंदसौर में पैदा हुई पार्वती 11 भाई-बहनों में सबसे बड़ी संतान हैं। उनका बचपन बहुत गरीबी और मुफ़लिसी में बीता। पिता अमृत राम आर्य जंगल की लकड़ी ठेके पर लेकर बेचने का काम करते थे और मां भोली बाई गृहिणी थी। 8वीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद पिता ने पार्वती का ब्याह ठेकेदार  रामगोपाल से 1969 में कर दिया गया। मात्र दो माह ससुराल में रहने के बाद पार्वती अपने पिता की बीमारी की खबर सुनते ही ससुराल वालों की मर्जी के खिलाफ मायके आ गईं। पिता के इलाज और छोटे भाई-बहनों की परवरिश के चलते वह फिर दोबारा ससुराल नहीं जा पाई। पिता की जगह अब पार्वती शक्कर कारख़ानों में लकड़ी बेचने का काम करने लगी। लेकिन समय पर लकड़ी न पहुंचा पाने के कारण व्यवसाय में होते नुकसान को देखते हुए उन्होंने स्वयं मगनलाल नामक व्यक्ति से ट्रक चलाना सीखा और 1978 में अपने जेवर बेचकर 38 हजार रुपए से एक पुराना ट्रक ख़रीद लिया। स्वयं ट्रक चलाकर बड़ी-बड़ी कंपनियों में लकड़ी पहुंचाने से व्यवसाय फलने फूलने लगा और कमाई भी बढ़ी।  इसी कमाई से उसने सभी भाई- बहनों को खूब पढ़ाया और उनकी शादी भी की। इनमें से एक भाई डॉ. श्याम कुमार आर्य आज जिला चिकित्सा अधिकारी हैं।
ट्रक चलाती हुई लड़की को देखकर लोगों को ताज्जुब हुआ, छींटाकशी भी हुई, लेकिन पार्वती ने हिम्मत नहीं हारी। उनकी नज़रों के सामने उनका ग़रीब परिवार था, जिनकी परवरिश उन्हें करनी थी। इस तरह समाज में पार्वती की एक अलग पहचान बन गई। समाज में महिलाओं के प्रति कड़े भेदभाव और दोहरे मापदण्ड वाली प्रक्रिया से त्रस्त पार्वती ने क्षेत्र के लोगों के कहने पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ा। दो बार 1993 और 1998 में सदस्य रहीं। सन् 2005 में ज़िला पंचायत की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। अपने तीनों कार्यकाल में उन्होंने तीन दर्जन से अधिक मिडिल और हाईस्कूल बनवाए, 6 पंचायत भवनों का निर्माण करवाया, पक्की सडक़ें बनवाई , विधवाओं को पेंशन और बेरोज़गारों को ऋण दिलवाये।
1979-1984 तक वे मंदसौर में कांग्रेस सेवादल की अध्यक्ष रहीं। उनकी सक्रियता और जीवटता को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें 1990 में सुवासरा (मंदसौर) विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह चुनाव हार गईं। उपलब्धियों, चुनौतियों, मुश्किलों, आशा-निराशाओं और उनके कारणों को तलाशते हुए आज पार्वती जिस मुकाम पर है यह उनकी हिम्मत और दिलेरी ही है। महिलाओं के प्रति बेहद संवेदनशील पार्वती का लक्ष्य है कि वे विधानसभा सदस्य बने और महिलाओं के मुद्दों को विधानसभा में प्रभावशाली ढंग से रखें ।
पार्वती आर्य इन दिनों (वर्ष 2020)अपने खेत में खुद काम करतीं हैं,  73 वर्ष की आयु में भी उनकी कर्मठता कम नहीं हुईं है। अपने घर से लगभग 4 किमी दूर खेत में वे अपने चार पहिया वाहन को स्वयं ही चला कर जातीं हैं।
उपलब्धियाँ
1. गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड में एशिया की पहली महिला ट्रक ड्राइवर के रूप में नाम दर्ज
2. 1987 में भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा सम्मानित
3. अखिल भारतीय रैगर महासभा की ओर से मानपत्र
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Chania