Monday, May 6th, 2024 Login Here
इस सड़क में बड़ा दम है
कई साल पहले शहर में बीपीएल चौराहे से लेकर प्रतापगढ़ नाके तक एक सड़क बनी थी पता नहीं किस मटेरियल से यह सड़क बनी की आज तक उसका बाल भी बांका नहीं हो पाया सालों साल गुजर जाने के बावजूद वह सड़क वैसी की वैसी ही बरकरार है। कायदे से तो इस सड़क की जांच होना चाहिए कि ऐसे कैसे यह सड़क बनी जो अभी तक कितनी ही बारिश सह कर बिना गड्ढों के मजबूती से टिकी हुई है, यह जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इतने सालों में शहर में कितनी ही सड़कें बन गई पर एक भी नहीं टिकी हर साल कई सड़कों पर डामरीकरण के नाम पर लीपापोती होती है और बारिश में वह सड़के फिर जर्जर हो जाती हैं, गारंटी पीरियड में होने के बावजूद ठेकेदारों के आगे नतमस्तक अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं करते। कार्यवाहीयों के कागजी जहाज तो उड़ाए जाते हैं पर वह किसी सजा की मंजिल तक नहीं पहुंचते।शहर की सड़कों के सूरते हाल क्या है यह किसी से छिपे नहीं है बस मलाल यही है की ऐसी नेक नियती की सड़क क्यों नहीं बनती।
सारा शहर ही सब्जी मंडी है
गोल चौराहे की सब्जी मंडी को व्यवस्थित किया जा रहा है बढ़ते यातायात के दबाव, अव्यवस्थाओं और दुकानदारों की परेशानियों के मद्देनजर यहां सड़क पर खड़े रहकर व्यवसाय करने वाले सब्जी विक्रेताओं को पुरानी कृषि उपज मंडी के अंदर स्थापित किया जा रहा है वैसे देखा जावे तो सारा शहर ही सब्जी मंडी बना हुआ है,। हर गली मोहल्ले चौराहे पर अस्थाई सब्जी मंडी बनी हुई है, कई क्षेत्रों की तो हालत बहुत खराब है रहवासियों के साथ-साथ राहगीर भी परेशान हैं पर उनका कोई निकाल नहीं निकल पा रहा है गोल चौराहे पर पहले जहां सब्जी मंडी लगती थी उसे फूल मंडी बना दिया वहां पर जो कंपलेक्स बनाने की योजना थी वह अधर में ही लटक गई ऐसे में यहां से विस्थापित सब्जी वालों ने गोल चौराहे की मुख्य सड़क को ही सब्जी मंडी बना लिया। सारे शहर में प्रमुख सड़कों चौराहों पर फल और सब्जियों के ठलो का अतिक्रमण स्थाई दुकानों जैसा हो गया है जिनका निराकरण होना बहुत जरूरी है। एक सड़क को तो इस अतिक्रमण और अव्यवस्था से मुक्ति मिल गई बाकी सड़कों का नंबर कब आएगा.....
जन्मशताब्दी और खंडित नाम
संगठन अपने पित्र पुरुष की जन्म शताब्दी वर्ष मना रहा है बूथ स्तर तक विस्तारक योजना के तहत संगठन को तो समर्पण निधि से संगठन की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा रहा है। पूरे वर्ष पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे की स्मृति में आयोजन चलते रहेंगे मंदसौर के महाविद्यालय परिसर में इन्हीं कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर ऑडिटोरियम बना हुआ है जहां पर कई आयोजन होते हैं संगठन वालों का भी आना जाना लगा रहता है पर अभी तक किसी ने इस ऑडिटोरियम के नाम में हुई टूट-फूट पर ध्यान नहीं दिया जिनकी जन्मशताब्दी उत्साह से मना रहे हैं उन्हीं के नाम पर बने ऑडिटोरियम में उनका नाम खंडित हो रहा है। देखते हैं कब तक सुधर पाता है, शताब्दी समारोह के दौरान या शताब्दी समापन पश्चात.....
शहर के ठिकाने नहीं, चले हाईवे सुधारने
शहर का यातायात अस्त व्यस्त है, यातायात महकमे का कोई भी प्रयास शहर के यातायात को नियंत्रण में रखने या सुधारने के लिए नजर ही नहीं आता है ऐसा लगता है जैसे यातायात विभाग अदृश्य हो गया हो पर शायद नए-नए साहब के सामने अपनी अच्छी इमेज बनाने के लिए विभाग ने शहर में तो कुछ किया नहीं बाईपास पर जाकर तेज गति वाहनों के चालान बना दिए और समाचारों के जरिए वाहवाही लूटने का प्रयास किया। शहर में वाहन चालकों की मनमानियां चरम पर है लेकिन उन्हें नियंत्रण करने वाला यातायात विभाग कहीं नजर नहीं आता है जहां इस विभाग का कोई रोल नहीं है वहां जाकर वह कार्य कर रहा है और जहां सुधार करना है वहां पर अदृश्य बन बैठा हुआ है।नवागत कप्तान जब खुद ही शहर के बिगड़ैल यातायात का हाल देखेंगे तो यातायात महकमे को नंबर दे ही देंगे।
अब भूतों के ग्रुप में शामिल कोरोना ?
जिस कोरोना से सब डरे हुए थे उसके बेअसर होने से सरकार ने सारे प्रतिबंध हटा दिए अब सब कुछ खुला खुला कर दिया जो चाहे मर्जी वह आयोजन करो लेकिन रात का कर्फ्यू जारी है। रात को भूतों का डर बताया जाता है यह भी ऐसा लग रहा है मानो रात को निकलने पर कोरोना भूतों की तरह पकड़ लेगा शायद किसी तांत्रिक की सलाह पर रात्रि कर्फ्यू कायम रखा गया है और कोरोना को भूत, प्रेत, चुड़ैल, भटकती आत्माओं के ग्रुप में शामिल कर दिया है कि दिन में तो भीड़ भाड़ बाजारों आयोजनों में यह असर नहीं करेगा लेकिन रात को सुनसान माहौल में लग सकता है। कोरोना की तीसरी लहर को लेकर काफी डर और दबाव का माहौल था, बीमारी आई भी सही लोग पॉजिटिव भी हुए पर मृत्यु दर नहीं होने के कारण इसका असर बेअसर ही रहा ऐसे में सरकार ने अब सारे आयोजनों की खुली छूट कर दी पर रात का कर्फ्यू ... यह समझ से परे है.....
कमाल की इंजीनियरिंग
निर्माण कार्यों में काम कर रहे इंजीनियरों की इंजीनियरिंग की दाद देना पड़ेगी, अभी तो मिड इंडिया अंडर ब्रिज बना ही नहीं है और समस्याएं दिखना शुरू हो गई है जमीन में से हो रहे जल रिसाव के कारण जलभराव की स्थिति जब इस मौसम में बन रही है तो बारिश के समय में क्या स्थिति रहेगी क्या बारिश के महीनों में यह पूरी तरह से बंद रहेगा ? जमीन से आ रहे पानी को रोकने की कोई तकनीक अमला क्यों नहीं इस्तेमाल कर पाया ना रेलवे का ना नपा का कोई भी इंजीनियर अपनी बुद्धि इस ब्रिज निर्माण में नहीं लगा पाया। पंप से पानी कितना फेकेंगे यह भी समझ से परे है। कमाल की नमूना भरी इंजीनियरिंग शहर में कई जगह चल रहे निर्माण कार्यों में देखने को मिल जाती है धन्य है यह डिग्रीधारी।
एनकाउंटर
कहा जाता है कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता हैष् पिछले साहब का 5 माह में ही वापस चले जाना दूध से जलने के समान सबक ही है। वैसे तो बहुत ही जल्दी जल्दी जिले के कप्तान बदले गए देखना है नए साहब कितनी लंबी पारी खेलते हैं
पोस्टमार्टम
मेडिकल कॉलेज ना हुआ टेबल टेनिस की बॉल हो गई कभी इधर कभी उधर, कभी कुछ बातें कभी कुछ बातें कुल मिलाकर भटकाव ही नजर आ रहा है। तरह-तरह की चर्चा में मेडिकल है। अभी जिस जमीन पर बन रहा है उस पर भी सवाल उठ रहे हैं ऐसे में इसका भविष्य क्या होगा .....
चलते चलते
मंडी में कभी किसानों का कभी हम्मालो का तो कभी ड्राइवरों का विवाद चर्चाओं में रहता है लेकिन इस बार व्यापारियों के अट्ठाविस गोडाउन खूब चर्चा में रहे, तरह-तरह की गुप्त बातें भी इन को लेकर होती रही जो भी हो पर सारे किए कराए पर पानी फिर गया मामला ऊपर तक जो पहुंच गया था। किसी की भी दाल नहीं गल पाई....
कई साल पहले शहर में बीपीएल चौराहे से लेकर प्रतापगढ़ नाके तक एक सड़क बनी थी पता नहीं किस मटेरियल से यह सड़क बनी की आज तक उसका बाल भी बांका नहीं हो पाया सालों साल गुजर जाने के बावजूद वह सड़क वैसी की वैसी ही बरकरार है। कायदे से तो इस सड़क की जांच होना चाहिए कि ऐसे कैसे यह सड़क बनी जो अभी तक कितनी ही बारिश सह कर बिना गड्ढों के मजबूती से टिकी हुई है, यह जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इतने सालों में शहर में कितनी ही सड़कें बन गई पर एक भी नहीं टिकी हर साल कई सड़कों पर डामरीकरण के नाम पर लीपापोती होती है और बारिश में वह सड़के फिर जर्जर हो जाती हैं, गारंटी पीरियड में होने के बावजूद ठेकेदारों के आगे नतमस्तक अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं करते। कार्यवाहीयों के कागजी जहाज तो उड़ाए जाते हैं पर वह किसी सजा की मंजिल तक नहीं पहुंचते।शहर की सड़कों के सूरते हाल क्या है यह किसी से छिपे नहीं है बस मलाल यही है की ऐसी नेक नियती की सड़क क्यों नहीं बनती।
सारा शहर ही सब्जी मंडी है
गोल चौराहे की सब्जी मंडी को व्यवस्थित किया जा रहा है बढ़ते यातायात के दबाव, अव्यवस्थाओं और दुकानदारों की परेशानियों के मद्देनजर यहां सड़क पर खड़े रहकर व्यवसाय करने वाले सब्जी विक्रेताओं को पुरानी कृषि उपज मंडी के अंदर स्थापित किया जा रहा है वैसे देखा जावे तो सारा शहर ही सब्जी मंडी बना हुआ है,। हर गली मोहल्ले चौराहे पर अस्थाई सब्जी मंडी बनी हुई है, कई क्षेत्रों की तो हालत बहुत खराब है रहवासियों के साथ-साथ राहगीर भी परेशान हैं पर उनका कोई निकाल नहीं निकल पा रहा है गोल चौराहे पर पहले जहां सब्जी मंडी लगती थी उसे फूल मंडी बना दिया वहां पर जो कंपलेक्स बनाने की योजना थी वह अधर में ही लटक गई ऐसे में यहां से विस्थापित सब्जी वालों ने गोल चौराहे की मुख्य सड़क को ही सब्जी मंडी बना लिया। सारे शहर में प्रमुख सड़कों चौराहों पर फल और सब्जियों के ठलो का अतिक्रमण स्थाई दुकानों जैसा हो गया है जिनका निराकरण होना बहुत जरूरी है। एक सड़क को तो इस अतिक्रमण और अव्यवस्था से मुक्ति मिल गई बाकी सड़कों का नंबर कब आएगा.....
जन्मशताब्दी और खंडित नाम
संगठन अपने पित्र पुरुष की जन्म शताब्दी वर्ष मना रहा है बूथ स्तर तक विस्तारक योजना के तहत संगठन को तो समर्पण निधि से संगठन की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा रहा है। पूरे वर्ष पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे की स्मृति में आयोजन चलते रहेंगे मंदसौर के महाविद्यालय परिसर में इन्हीं कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर ऑडिटोरियम बना हुआ है जहां पर कई आयोजन होते हैं संगठन वालों का भी आना जाना लगा रहता है पर अभी तक किसी ने इस ऑडिटोरियम के नाम में हुई टूट-फूट पर ध्यान नहीं दिया जिनकी जन्मशताब्दी उत्साह से मना रहे हैं उन्हीं के नाम पर बने ऑडिटोरियम में उनका नाम खंडित हो रहा है। देखते हैं कब तक सुधर पाता है, शताब्दी समारोह के दौरान या शताब्दी समापन पश्चात.....
शहर के ठिकाने नहीं, चले हाईवे सुधारने
शहर का यातायात अस्त व्यस्त है, यातायात महकमे का कोई भी प्रयास शहर के यातायात को नियंत्रण में रखने या सुधारने के लिए नजर ही नहीं आता है ऐसा लगता है जैसे यातायात विभाग अदृश्य हो गया हो पर शायद नए-नए साहब के सामने अपनी अच्छी इमेज बनाने के लिए विभाग ने शहर में तो कुछ किया नहीं बाईपास पर जाकर तेज गति वाहनों के चालान बना दिए और समाचारों के जरिए वाहवाही लूटने का प्रयास किया। शहर में वाहन चालकों की मनमानियां चरम पर है लेकिन उन्हें नियंत्रण करने वाला यातायात विभाग कहीं नजर नहीं आता है जहां इस विभाग का कोई रोल नहीं है वहां जाकर वह कार्य कर रहा है और जहां सुधार करना है वहां पर अदृश्य बन बैठा हुआ है।नवागत कप्तान जब खुद ही शहर के बिगड़ैल यातायात का हाल देखेंगे तो यातायात महकमे को नंबर दे ही देंगे।
अब भूतों के ग्रुप में शामिल कोरोना ?
जिस कोरोना से सब डरे हुए थे उसके बेअसर होने से सरकार ने सारे प्रतिबंध हटा दिए अब सब कुछ खुला खुला कर दिया जो चाहे मर्जी वह आयोजन करो लेकिन रात का कर्फ्यू जारी है। रात को भूतों का डर बताया जाता है यह भी ऐसा लग रहा है मानो रात को निकलने पर कोरोना भूतों की तरह पकड़ लेगा शायद किसी तांत्रिक की सलाह पर रात्रि कर्फ्यू कायम रखा गया है और कोरोना को भूत, प्रेत, चुड़ैल, भटकती आत्माओं के ग्रुप में शामिल कर दिया है कि दिन में तो भीड़ भाड़ बाजारों आयोजनों में यह असर नहीं करेगा लेकिन रात को सुनसान माहौल में लग सकता है। कोरोना की तीसरी लहर को लेकर काफी डर और दबाव का माहौल था, बीमारी आई भी सही लोग पॉजिटिव भी हुए पर मृत्यु दर नहीं होने के कारण इसका असर बेअसर ही रहा ऐसे में सरकार ने अब सारे आयोजनों की खुली छूट कर दी पर रात का कर्फ्यू ... यह समझ से परे है.....
कमाल की इंजीनियरिंग
निर्माण कार्यों में काम कर रहे इंजीनियरों की इंजीनियरिंग की दाद देना पड़ेगी, अभी तो मिड इंडिया अंडर ब्रिज बना ही नहीं है और समस्याएं दिखना शुरू हो गई है जमीन में से हो रहे जल रिसाव के कारण जलभराव की स्थिति जब इस मौसम में बन रही है तो बारिश के समय में क्या स्थिति रहेगी क्या बारिश के महीनों में यह पूरी तरह से बंद रहेगा ? जमीन से आ रहे पानी को रोकने की कोई तकनीक अमला क्यों नहीं इस्तेमाल कर पाया ना रेलवे का ना नपा का कोई भी इंजीनियर अपनी बुद्धि इस ब्रिज निर्माण में नहीं लगा पाया। पंप से पानी कितना फेकेंगे यह भी समझ से परे है। कमाल की नमूना भरी इंजीनियरिंग शहर में कई जगह चल रहे निर्माण कार्यों में देखने को मिल जाती है धन्य है यह डिग्रीधारी।
एनकाउंटर
कहा जाता है कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता हैष् पिछले साहब का 5 माह में ही वापस चले जाना दूध से जलने के समान सबक ही है। वैसे तो बहुत ही जल्दी जल्दी जिले के कप्तान बदले गए देखना है नए साहब कितनी लंबी पारी खेलते हैं
पोस्टमार्टम
मेडिकल कॉलेज ना हुआ टेबल टेनिस की बॉल हो गई कभी इधर कभी उधर, कभी कुछ बातें कभी कुछ बातें कुल मिलाकर भटकाव ही नजर आ रहा है। तरह-तरह की चर्चा में मेडिकल है। अभी जिस जमीन पर बन रहा है उस पर भी सवाल उठ रहे हैं ऐसे में इसका भविष्य क्या होगा .....
चलते चलते
मंडी में कभी किसानों का कभी हम्मालो का तो कभी ड्राइवरों का विवाद चर्चाओं में रहता है लेकिन इस बार व्यापारियों के अट्ठाविस गोडाउन खूब चर्चा में रहे, तरह-तरह की गुप्त बातें भी इन को लेकर होती रही जो भी हो पर सारे किए कराए पर पानी फिर गया मामला ऊपर तक जो पहुंच गया था। किसी की भी दाल नहीं गल पाई....