Sunday, May 5th, 2024 Login Here
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पाकिस्तान की हड़बड़ाहट और बौखलाहट का इसी से पता चलता है कि उसने ‘बालाकोट’ कार्रवाई का सैनिक जवाब देकर अपनी झुंझलाहट उतारने की कोशिश की। कश्मीर में नियन्त्रण रेखा के पास आज जो सैनिक गतिविधियां हुईं उसमें पाकिस्तान के एक एफ-16 लड़ाकू विमान को भारत में हमला करने से रोकने में भारत का एक मिग-21 विमान भी ध्वस्त हो गया लेकिन उसके एफ-16 विमान को उसी के इलाके में गिरा कर भारत के लड़ाकू वायु सैनिकों ने सिद्ध कर दिया कि उसकी गुस्ताखियों का हिसाब मय सूद के करने से भारत कभी पीछे नहीं रह सकता।
मगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह भारत-पाक के बीच बढ़ते तनाव का संज्ञान दुनिया के प्रमुख देश ले रहे हैं, उससे यही पता चलता है कि भारत अपना पक्ष पुरजोर तरीके से रखने में कामयाब हो रहा है मगर बीजिंग में ‘भारत-रूस-चीन’ के त्रिकोण के विदेश मन्त्रियों की बैठक के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ उसमें दहशत गर्दी का अड्डा बने पाकिस्तान का नाम न आने से भी कुछ चिन्ता पैदा होती है। हालांकि इस वक्तव्य में आतंकवाद को समाप्त करने का जिक्र किया गया है और उन देशों से आतंकवादी संगठनों को समाप्त करने की भी अपील की गई है जिनमें ये फल-फूल रहे हैं। मगर इसमें पाकिस्तान के नाम का उल्लेख न होना भारत के हक में नहीं कहा जा सकता।
चीन के विदेश मन्त्री ने बाद में जिस तरह अलग मीडिया से मुखातिब होकर भारत व पाकिस्तान दोनों को ही अपना मित्र बताते हुए संयम बरतने की अपील की उसके कूटनीतिक अर्थ दोनों से बराबर की दूरी और करीबी बनाये रखने के अलावा और कुछ नहीं निकाले जा सकते। पुलवामा हमले के बाद कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को ठीक उसी प्रकार अलग-थलग किये जाने की जरूरत है जिस प्रकार 26 नवम्बर 2008 में मुम्बई हमला होने के बाद तत्कालीन विदेश मन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी ने उसे इस्लामी मुल्कों तक मंे लावारिस बना कर छोड़ दिया था और उस पर आतंकवादी देश होने की तलवार राष्ट्रसंघ के माध्यम से ही लटका दी थी। मगर 2008 से अब तक रावी और सतलुज में बहुत पानी बह चुका है मगर पाकिस्तान के तेवरों में कोई खास फर्क नहीं आया है। उसने नाम बदल-बदल कर आतकंवादी संगठनों को पनाह देना जारी रखा और वहां की फौज ने उन्हें अपने दस्त-ओ-बाजू के तौर पर देखना बन्द नहीं किया।
पाकिस्तान में भारत विरोध को अपनी सियासत की धुरी बनाने वाले सियासतदानों ने कभी इस तरफ गौर करने की कोशिश नहीं की कि वे उस हिन्दोस्तान से लगातार दुश्मनी का माहौल क्यों बनाये रखना चाहते हैं जिसका 1947 तक वे खुद हिस्सा थे। अंग्रेजों के खिलाफ उस पूरे हिन्दोस्तान ने ही मिल कर लड़ाई लड़ी थी मगर वे खुद उन अंग्रेजों की चाल में फंस गये जिन्होंने अन्तिम मुगल बादशाह जफर के शहजादों के सिर थाल में सजा कर शहंशाह को तोहफे में देने की हिमाकत की थी। तब शहंशाह ने कहा था ‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तब तो लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दोस्तान की’ मगर क्या कयामत हुई कि हिन्दोस्तान से अलग होकर पाकिस्तान ने अपना ईमान पहले सिर्फ नफरत को बनाया और बाद में दहशतगर्दी को बना कर खुद को पूरी तरह नाजायज मुल्क में बदलने की तजवीज लिखनी शुरू कर दी।
जिस कश्मीर मसले का रोना पाकिस्तान अपने वजूद में आने के बाद से रोता रहता है उसकी हकीकत यह है कि राष्ट्रसंघ में ही स्वयं शेख अब्दुल्ला ने यह तकरीर देकर पूरी दुनिया को आइना दिखा दिया था कि कश्मीरियों का चुनाव भारत है, इसके अलावा कुछ नहीं। 1955 में जब रूस के नेता ख्रुश्चेव और बुल्गानिन भारत की लम्बी राजकीय यात्रा पर आये तो उनसे कश्मीर के बारे में जब सवाल पूछा गया तो ख्रुश्चेव ने उत्तर दिया था कि जम्मू-कश्मीर का फैसला हो चुका है, यह भारतीय संघ का हिस्सा है। ये सब ऐतिहासिक दस्तावेज हैं जिनसे किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। मगर मौजूदा वक्त में सबसे अहम मुद्दा यह है कि दोनों देशों के बीच रंजिश रहने के बावजूद यह समझदारी कमोबेश कायम रही है कि जब भी दोनों में से किसी मुल्क में चुनाव होने हों तो सीमाओं पर शान्ति का माहौल बना रहे।
पाकिस्तान ने ऐसा 1971 में करने की जुर्रत की थी जब उसने जनवरी महीने के आखिरी दिन श्रीनगर हवाई अड्डे से एक भारतीय विमान को दो बरगलाये हुए कश्मीरी युवकों की मार्फत अगवा कराकर लाहौर हवाई अड्डे पर जलवा दिया था। इसका नतीजा उसे इस तरह भुगतना पड़ा कि दिसम्बर महीने तक पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया था। अब जबकि भारत पुनः लोकसभा चुनावों के मुहाने पर बैठा है तो पाकिस्तान ने पुलवामा में हमारे 40 जवानों को हलाक करके हमारे हौंसलों को परखना चाहा है।
भारत ने इसका जवाब जितनी शाइस्तगी के साथ बालाकोट में जैश-ए- मोहम्मद के ठिकाने पर हमला करके दिया वह पाकिस्तान के वजूद पर हमला न होकर दहशतगर्दों की हस्ती पर हमला था, इसके बावजूद पाकिस्तान ने इसका फौजी जवाब दे डाला जिससे यही सिद्ध होता है कि आतंकवादी पाकिस्तानी फौज का ही एक अंग हैं। इससे बड़ा सबूत दुनिया को पाकिस्तान के दहशतगर्दी को पालने-पोसने का और क्या चाहिए? इसलिए जरूरी है कि पूरी दुनिया पाकिस्तान का सीधे नाम लेकर उसे दहशतगर्दों के सभी अड्डे खत्म करने के लिए कहे। भारत की लड़ाई तो उस दहशतगर्दी से है जिसे पाकिस्तान कश्मीर में पनपा कर पूरी दुनिया की इस जन्नत को जहन्नुम में बदलने का ख्वाब पाले बैठा है। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान अब इन सब कारनामों के बाद बातचीत की अपील कर रहे हैं तो सबसे पहले ऩ्हें उसे शिमला समझौते की शर्तें समझा दी जायें जिसमें साफ लिखा हुआ है कि लोकतान्त्रिक भारत की सार्वभौमिकता और संप्रभुता सर्वोच्च है।




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