Sunday, May 5th, 2024 Login Here
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लोकसभा चुनावों की रणभेरी किसी भी दिन बज सकती है। राजनीतिक दल चुनावी समीकरण बनाने और हार-जीत के गुणा-भाग में जुट गए हैं। एक-दूसरे पर शालीनता की हदें पार कर प्रहार कर रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों की नजर युवा मतदाताओं पर लगी हुई है। अन्तिम मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद यह तय है कि इस बार आम चुनावों में यंगिस्तान अहम भूमिका निभाएगा। युवा मतदाता ही माननीयों के भाग्य-विधाता बनेंगे। लोकसभा चुनावों में 8.1 करोड़ मतदाता ऐसे होंगे जिन्होंने 2014 के चुनाव के बाद 18 वर्ष की आयु पूरी की है। नए मतदाता चुनावी लड़ाई की दिशा बदल सकते हैं।

एक अनुमान के मुताबिक हर लोकसभा सीट पर औसतन 1.49 लाख मतदाता ऐसे होंगे जो पहली बार मतदान करेंगे। यह आंकड़ा 2014 में 297 सीटों पर जीत के अन्तर से ज्यादा है। इनमें से कुछ मतदाताओं ने 2014 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में वोट डाले होंगे। लोकसभा चुनाव 2019 में 29 राज्यों की 282 सीटों पर युवा निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है जिससे पता चलता है कि इन सीटों पर 2014 में जितना जीत का अन्तर था, 2019 में पहली बार वोट डालने वालों की संख्या उससे कहीं अधिक है। 1997-2001 के बीच जन्मा यह मतदाता 2014 के चुनाव में मतदान के योग्य नहीं था।

282 सीटों में से 217 सीटें देश के बड़े राज्यों में हैं जिनमें जीत के अन्तर से युवा मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में नए मतदाताओं की औसत संख्या 1.15 लाख है जो कि 2014 के लोकसभा चुनावों में यहां की सीटों के जीत के औसत अन्तर 1.86 लाख से कम है लेकिन उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से कम से कम 24 सीटें ऐसी हैं जिनकी तकदीर लिखने का काम युवाओं के हाथ में होगा। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में 12 करोड़ 36 लाख युवा पहली बार मतदान करेंगे। पहली बार वोट डालने जा रहे युवा मतदाता की सोच स्वतंत्र होती है और वह मतदान करने को लेकर काफी उत्साहित भी रहता है।

आज युवाओं के हाथों में मोबाइल है, बैग में लेपटॉप है, घर में कम्प्यूटर है। वह सोशल प्लेटफार्मों पर सक्रिय है इसलिए वह राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक घटनाचक्र की जानकारी रखता है। वह पुराने दौर के मतदाता से काफी अलग है। तकनीक से लैस युवा हर घटनाक्रम पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया भी दे देता है। आज वह फेक न्यूज और वास्तविक न्यूज के अन्तर को समझने लगा है। उसे फेक न्यूज का खुलासा करने में घंटों नहीं बल्कि चन्द मिनट लगते हैं। ऐसे में जरूरी नहीं कि वह अपने परिवार की विचारधारा के अनुरूप मतदान करे। हर राष्ट्रीय मुद्दे पर उनके विचार परिवार से अलग हो सकते हैं।

2020 तक भारत की 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की होगी और हम दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र बन जाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय युवा विश्व में अपनी योग्यता का लोहा मनवा चुके हैं और जिस तेजी से हम अपने देश की प्रगति का सपना देख रहे हैं, उससे हमारी युवा पीढ़ी हर क्षेत्र में सफलता के नए आयामों को छू रही है। इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कि स्वतंत्र भारत में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन के बाद से राजनीति में युवाओं की भागीदारी मुखर तो हुई, अनेक नेता आंदोलन से उपजे लेकिन समय के साथ-साथ बदलते सामाजिक ढांचे में राजनीति ने ऐसी छवि बनाई जिससे आधुनिक युवाओं ने दूरी बना ली।

अन्ना आंदोलन के बाद भी नए युवा नेता उभरे। कुछ सफल हुए तो कुछ अस्त भी हो गए। वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति ने युवाओं और देश की सक्रिय राजनीति में उनकी भागीदारी के बीच एक खाई बनाने का काम किया। इस सबके बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि युवाओं की राजनीति में गहराती दिलचस्पी ने लोकतंत्र का चेहरा अधिक उजला किया है।जरूरत है राजनीति में युवा चेहरों को लाए जाने की। सबसे बड़ा अहम सवाल यह है कि नए मतदाता किसे वोट देंगे? क्या वह जातिवादी राजनीति से ऊपर उठकर अपनी इच्छाओं के अनुरूप हर मुद्दे का सही विश्लेषण कर नई सत्ता चुनेंगे या नए मतदाताओं का इस्तेमाल केवल ट्रोलिंग के लिए किया जाएगा। राष्ट्रीय सुरक्षा, बेरोजगारी, सियासत में नैतिकता और सिद्धांतों की कमी जैसे मुद्दे उसे कितना प्रभावित करते हैं, यह देखना होगा। निश्चित रूप से वह मन्दिर-मस्जिद जैसे मुद्दों से उद्वेलित नहीं होता, उसके मुद्दे व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ राष्ट्र का विकास भी हैं। देखना है कि वह कैसा जनादेश देता है।

Chania