Saturday, April 27th, 2024 Login Here
अयोध्या मामले में मध्यस्थता की मांग केवल इसलिए हैरान नहीं करती कि यह तब की जा रही है, जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर रहा है, बल्कि इसलिए भी करती है, क्योंकि दोनों ओर से केवल एक-एक सदस्य ही आगे आए हैं। मुस्लिम पक्ष से सुन्नी वक्फ बोर्ड और हिंदू पक्ष से निर्वाणी अखाड़ा ने मध्यस्थता समूह से फिर से बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया है। कहना कठिन है कि उनके अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट क्या मत व्यक्त करता है, लेकिन क्या यह अच्छा नहीं होता कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और साथ ही निर्वाणी अखाड़ा उन सभी को अपने साथ लेते जो इस मामले में वादी-प्रतिवादी की भूमिका में हैं? चूंकि बिना ऐसा किए मध्यस्थता की मांग कर दी गई, इसलिए यह अंदेशा होना स्वाभाविक है कि कहीं यह मामले को लटकाने की कोशिश तो नहीं है? इस अंदेशे का एक कारण यह भी है कि दोनों पक्षों के अन्य सदस्य ऐसी किसी मांग से अनभिज्ञता जता रहे हैं। कुछ तो नए सिरे से मध्यस्थता की जरूरत ही खारिज कर रहे हैं। स्पष्ट है कि जब तक दोनों पक्षों के सभी सदस्य मध्यस्थता की मांग नहीं करते, तब तक उस पर गौर करने का कोई कारण नहीं बनता। कम से कम मध्यस्थता की इस मांग के चलते अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई तो नहीं ही रुकनी चाहिए। वैसे भी इसकी संभावना कम ही है कि नए सिरे से मध्यस्थता के जरिए किसी सर्वमान्य नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। ऐसा तो तभी हो सकता है, जब दोनों पक्षों के सभी सदस्य न केवल फिर से मध्यस्थता के लिए तैयार हों, बल्कि उनके पास विवाद के हल का कोई ठोस फॉर्मूला भी हो। फिलहाल बेहतर यही होगा कि आपसी बातचीत से किसी समाधान तक पहुंचने की इच्छा रखने वाले पहले किसी फॉर्मूले पर सहमति बनाने का काम करें। इस बीच सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अपना काम जारी रखना चाहिए, क्योंकि वह 25 दिनों की सुनवाई पूरी कर चुका है। माना जाता है कि 50 प्रतिशत से अधिक सुनवाई पूरी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई रोकने के बजाय फैसले तक पहुंचने का काम इसलिए करना चाहिए, क्योंकि अगर नए सिरे से मध्यस्थता या फिर अन्य किसी कारण सुनवाई रुकती है तो मामला लटक सकता है। सुप्रीम कोर्ट इससे अवगत ही होगा कि इस मामले की सुनवाई में खलल डालने के लिए कैसे-कैसे जतन हुए हैं? चूंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में से किसी न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने की स्थिति में पूरी कवायद नए सिरे से करनी होगी, इसलिए ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे समय और संसाधन की बर्बादी हो।