Friday, April 26th, 2024 Login Here
मेरे प्रिय अनुज नीमच,
मैं तुम्हारा बड़ा भाई मन्दसौर.. आज यह पाती बहुत अपनेपन से लिख रहा हूँ...! मन भारी है लेकिन अपने अटूट रिश्ते की हिम्मत भी है इसीलिए मन की बात तुम्हें लिख रहा हूँ...
प्रिय, जब 20 साल पहले हमारा बंटवारा हुआ तब भी मन बहुत भारी था मैं कभी तुम्हे अपने से अलग होने की कल्पना मात्र से सिहर जाता था.. किंतु तुम्हारे मन की इस अभिलाषा से कि तुम भी अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व चाहते हो , उमंगों के आकाश में अपनी उड़ान भरना चाहते हो तो मैंने तुम्हारी हसरतों को प्रकारांतर में हौसला ही प्रदान किया, अपने अविभाजित स्वरूप को ही जेहन में रख कर सदैव स्नेहवत तुम्हारी हर उपलब्धि पर मैं भी पुलकित-प्रसन्न होता रहा...
इस भूमिका के साथ मैं सीधे अब मेडिकल कॉलेज के मुद्दे पर आता हूँ...प्रिय अनुज, मेडिकल कॉलेज नीमच में खुले तो मुझे उतनी ही प्रसन्नता होगी जितनी तुम्हें क्यों कि हम तो दो जिस्म एक जान हैं.. क्या तेरा क्या मेरा .... जो तेरा वो मेरा और जो मेरा वो तेरा ..... मेरा तो बस यह कहना है कि 1968 यानि 50 सालों से अविभाजित जिले के स्वरूप में मन्दसौर में मेडिकल कालेज की स्थापना की मांग अपन करते आ रहे हैं और लगातार अपने संघर्ष से व जन-जन की भावना के कारण अपने प्रयासों को यह सफलता मिली कि यहां उसके लिए जमीन सुरक्षित हो गई यहां का अस्पताल 600 बेड का हो गया है यहां इस प्रकल्प के लिए अन्य आवश्यक इकाई उद्यानिकी महाविद्यालय और फार्मेसी कॉलेज भी है... सर्वानुकूल स्थिति है।
नीमच में भी मेडिकल कॉलेज खुले तुम्हारी यह मांग बिल्कुल उचित है मैं भी तुम्हारी इस मांग का पूरजोर समर्थन करता हूँ।
पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से ऐसे स्वर उठ रहे हैं कि नीमच में ही मेडिकल कॉलेज हो ... बस इसी स्वर से मैं सिहर उठा हूँ और तुम्हें यह खत लिख रहा हूँ...मेरे भाई इस "ही" को "भी" में बदलना होगा यानि मन्दसौर के साथ नीमच में "भी" इस स्वर को बुलंद करना होगा।
अलग होने के 20 सालों के बाद यह अपनों में ही और भी का यह भेद नहीं हो बस यही मेरी भावना है...अन्यथा बिल्कुल मत लेना तुम अनुज हो अपना एक दूसरे पर पूरा अधिकार है तुम सब कुछ मांगो किन्तु "भी" की भावना रखो यदि "ही" के स्वर उठेंगे तो कहीं न कहीं अपनों के बीच दूरियां होने लगेगी जो मैं बिल्कुल नहीं चाहता।
प्रिय अनुज हम एक हैं एक ही रहेंगे अनुज हो फिर भी तुमसे विनती करता हूँ कि अपना हक पूरा जताओ पर मेरा हक मत मारो....। किसी से कुछ छीन कर पाना भी क्या पाना। यह भाव रखो कि तुम्हें भी मिले और मुझे भी मिले..। बस अभी इतना ही जरूरत पड़ेगी तो फिर और लिखूंगा..।
सदा-सर्वदा तुम्हारा
मन्दसौर
बकलम- ब्रजेश जोशी