Friday, April 26th, 2024 Login Here
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अक्षरांजलि.....
   ( बकलम- ब्रजेश जोशी)

मन्दसौर।अब तो अक्षर भी थक गये हैं अपनों को अंजलि देते-देते... यह कलम कांपने लगी है लिखते-लिखते...! कोरोना ने  इतने अपनों को छीना है कि स्मृति पटल से ओझल ही नहीं हो रहे और इसी दौर में  अब  यह खबर भी आनी थी कि समिता बहन जी भी नहीं रहे। वे भी शिव बाबा की चरण-शरण हो गईं।
   समिता बहन जी के लिये क्या लिखूं उनका व्यक्तित्व स्नेह समर्पण और सृजन की त्रिवेणी था। अपने नाम के अनुरूप उनका स्वभाव रहा सबसे समता रखना स्नेहसिक्त हो कर सबको साथ ले कर चलना ।मन्दसौर में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की शाखा को एक छोटे से कमरे से तलेरा विहार कॉलोनी में आत्मकल्याण भवन तक पहुंचाने का उनका समर्पण और हर बार कुछ नया करने का उनका सृजनात्मक दृष्टिकोण कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह कहना बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं माना जा सकता कि मन्दसौर में राजयोग मिशन को इतनी ऊंचाइयां प्रदान करने में समिता बहन जी का योगदान सर्वाधिक रहा। कोई क्षेत्र ऐसा शेष नहीं है जिनके संवाहकों को आपने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राजयोग साधना से ना जोड़ा हो...शिक्षक,न्यायाधीश, विद्यार्थी, व्यापारी, उद्योगपति  एडवोकेट,मीडिया,समाजसेवी,
राजनीतिज्ञ, ग्रामीण खेतीहर सभी को अपने मिशन से आत्मसात किया। मुझे अच्छी तरह याद है 1994 में जब  नई आबादी में पुराने विद्युत मण्डल कार्यालय के पास राजयोग साधना केंद्र संचालित होता था तब समिता बहनजी व उनके साथ एक और बहनजी जिनका नाम भूल रहा हूँ जिन्हें  बाद में कोटा के केन्द्र की जिम्मेदारी दे दी गईं थीं ये दोनों ब्रह्माकुमारी बहनें नये भवन के लिये भूमि व निर्माण आदि के सिलसिले में  ऑटो रिक्क्षा से कलेक्टर कार्यालय व बंगले पर जातीं उस दौरान बहन जी से अनेक बार भेंट हुई। तत्कालीन कलेक्टर मनोज कुमार श्रीवास्तव जी ने समिता बहन जी की लगन व परिश्रम देख कर तमाम प्रशासनिक प्रक्रियाओं को शीघ्र पूरा किया और परिणाम यह हुआ कि आज आत्मकल्याण भवन अपने भव्य रूप में है। इसके निर्माण में  समिता बहन जी का त्याग परिश्रम और लगन पूरी तरह परिलक्षित होता है। यह भवन उन्हीं की देन है।
   समिता बहन जी के परिश्रम का ही परिणाम रहा है कि राजयोग साधना केंद्र की शाखाओं का जिले भर में विस्तार हुआ अनेकों लोग राजयोग से जुड़ कर व्यसन मुक्त ,तनाव मुक्त हुए और उनमें अध्यात्म का सृजन हुआ। आपने आत्मकल्याण भवन को आद्यात्म का एक ऐसा पूंज बनाया जहां आत्मिक व मानसिक शान्ति के लिये साधकों का सैलाब उमड़ने लगा। यही नहीं  बहनजी ने मन्दसौर के हर वर्ग के लोंगों को माउन्ट आबू मुख्यालय पर होने वाली कांफ्रेंस में भी शामिल होने को प्रेरित किया 1998 में मीडिया कान्फ्रेंस में समिता बहनजी के साथ ही हम चार पत्रकार श्री विक्रम विद्यार्थी, डॉ. घनश्याम बटवाल, यशपालसिंह सिसोदिया और मैं माउन्ट आबू गये थे वह चार दिनों की यात्रा और ज्ञान सरोवर में बिताये दिन हम चारों आज भी नहीं भूले हैं तब यशपालजी नई दुनिया के पत्रकार और नपा में पार्षद थे व जलकल सभापति का दायित्व उन्हें दिया गया था। उस यात्रा में मुझे अच्छी तरह याद है रास्ते में गाड़ी में डॉ. बटवाल साब ने यशपालजी को कहा था केवल पार्षद तक नहीं आपको भविष्य में विधायक भी बनना है बहनजी ने भी तत्काल कहा हां आप विधायक बन सकते हैं आपमें क्षमता है सर्वविदित है 2008 से यशपालजी निरन्तर विधायक हैं। बहनजी के सानिध्य में ज्ञान सरोवर माउन्ट आबू में बिताए चार दिनों में हमारी मुलाकात देश के अनेकों मूर्धन्य पत्रकारों से हुई थी बहनजी ने हमें मुख्य प्रशासिका प्रकाशमणिजी व रतनमोहिनी जी से भी मिलवाया था। उस यात्रा का विक्रमजी ,बटवाल साब,यशपालजी व मुझ पर इतना प्रभाव पड़ा था कि लंबे अरसे तक हम चार जब भी मिलते या फोन पर बात होती तो पहला संबोधन मुंह से यही निकलता ष्ओम शान्तिष्
  एक और प्रसंग याद आता है 2003 के विस चुनावों के बाद पुनः मंत्री बने श्री कैलाश चावला का सम्मान समारोह बहनजी ने आत्मकल्याण भवन में आयोजित किया था उस समारोह में आत्मीयता के वातावरण में चावला जी इतने भावुक हो गए थे कि माइक पर आते ही उनका गला रुंध गया व आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। वास्तव में आत्मकल्याण भवन के वाइब्रेशन ही इतने ऊर्जावान थे कि वहां जाते ही एक असीम शान्ति व आनन्द की अनुभूति होती थी। समिता बहनजी ने इंदौर विंग के मीडिया प्रभाग के प्रमुख ओमप्रकाश भाईजी व प्रख्यात पत्रकार कमल दीक्षित के साथ मन्दसौर में मीडिया कार्यशालाएं आयोजित कीं। मीडिया से जुड़ी कई बड़ी हस्तियों को आमंत्रित किया वे मूल्यपरक मीडिया की प्रबल पक्षधर थीं।
  बहनजी का  अवसान अध्यात्म जगत की अपूरणीय क्षति है। वे इस क्षेत्र की आद्यात्मिक ऊर्जा की आधार थीं उनकी वाणी की मिठास व  ज्ञान पूर्ण उद्बोधन कैसे भुलाया जा सकेगा। प्रत्येक प्रसंग में निहित आध्यात्मिक रहस्यों को उद्घाटित करती थीं। वे परम् विदुषी व बहुत श्रेष्ठ संगठक भी थीं। सबसे समान स्नेह रखतीं थीं।
उनका वात्सल्य भाव ममत्व से ओतप्रोत रहता था।
  समिता बहनजी का दुनिया से विदा होना अत्यन्त ही दुःखद है अभी तो लम्बा सफर बाकी था ऐसा लगता है वे जीवनयात्रा अधूरी छोड़ गईं।
 सादर विनम्र श्रद्धांजलि।।

Chania